कश्मीर में रह रहे सवा लाख हिंदू पाकिस्तान को खटक रहे हैं। इनमें एक लाख के करीब घाटी के विभिन्न हिस्सों में रह रहे प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद अलगाववादियों का खेल खत्म हो गया। पत्थरबाज दूर रहने लगे। सुरक्षा बलों की सख्ती से स्थानीय आतंकी भी किनारा करने लगे हैं।
ऐसे में पाकिस्तान को पिछले तीन दशकों की आतंकी फसल के नष्ट होने का खतरा सताने लगाने है। इस खेती को हरा-भरा रखने के लिए अब उसने टारगेट किलिंग का आखिरी दांव खेला है। मकसद घाटी में अशांति रहे, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान केंद्रित हो सके कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य नहीं है।
कश्मीरी पंडितों की वापसी प्रक्रिया को भी खराब माहौल की आड़ में बाधित किया जा सके। सरकार ने सुरक्षित माहौल बनाने तथा विश्वास बहाली के लिए पिछले दिनों खोले गए पोर्टल के जरिये उनकी जमीनों से कब्जे हटाने की प्रक्रिया शुरू की है। टारगेट किलिंग से इसे बाधित करने की साजिश है। सुरक्षा बलों से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि टारगेट किलिंग चुनौती बन गई है। इसमें शामिल ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) तथा हाइब्रिड आतंकियों के नेटवर्क का सफाया करने के लिए अभियान चलाया गया है। जल्द ही सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों ने बताया कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद ढाई साल से अधिक समय में पाकिस्तान को अपने सभी दांव उलटे पड़ते नजर आए। कश्मीर में माहौल सामान्य होने लगा। अलगाववादी गायब हो गए। जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियां लगभग ठप पड़ गईं। आतंकी घटनाओं और पत्थरबाजी में कमी आई। पर्यटन बढ़ा और आर्थिक गतिविधियां तेजी से रफ्तार पकड़ने लगी। घाटी में युवा अब पत्थर और बंदूक छोड़कर आत्मनिर्भर बनने और करिअर पर फोकस करने लगे हैं।
ऐसे में कश्मीर में शांति पाकिस्तानी आकाओं को चुभ रही। अब बरगलाने के बाद भी युवा जल्दी हथियार और पत्थर उठाने को तैयार नहीं हो रहा। ऐसे में पाकिस्तान ने आखिरी दांव खेलते हुए टारगेट किलिंग को हथियार बनाया। खौफ पैदा करने के लिए अल्प संख्यक समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जाने लगा है। इनमें कश्मीरी पंडित कर्मचारी से लेकर शिक्षक, बैंककर्मी, राजपूत बिरादरी, प्रवासी मजदूर शामिल रहे।