लखनऊ, 29 मई। विशिष्ट हस्तियों के सम्मान से अभिभूत प्रेक्षकों को एक अतिविशिष्ट अदबी शख्सियत साहिर लुधियानवी को बेहद जज्बाती ढंग से नाट्य संरचना ‘परछाइयां’में ढला देखने का आनन्द आज शाम संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर में मिला।
मशहूर शायर के जन्म शताब्दी वर्ष के संदर्भ में नौशाद संगीत डेवलपमेण्ट सोसायटी की ओर से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को सहेजता सुहैल वारसी के लेखन-निर्देशन में हुआ। मुख्य अतिथि के तौर पर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने रंग निर्देशक पद्मश्री राज बिसारिया, अभिनेता रजा मुराद, शायर हसन कमाल, गायिका मालती जोशी फाजली, लेखक-निर्देशक सुहैल वारसी, अभिनेता मोहम्मद इदरीस, लेखक-रंगनिर्देशक सलीम आरिफ, रूसी भाषा विशेषज्ञ प्रो.साबिरा हबीब, लेखक-रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया, रंगकर्मी गोपाल सिन्हा, रंगकर्मी प्रदीप श्रीवास्तव, कलाविद् डा.त्रिनेत्र बाजपेयी, लखनवी इतिहासविद् नवाब जाफर मीर अबदुल्ला, रंगकर्मी प्रेमशंकर भारती और पत्रकार कुलसुम तलहा व ब्रजेश मिश्र को दसवें’ नौशाद सम्मान-2022′ से अंगवस्त्र, प्रमाणपत्र व स्मृति चिह्न इत्यादि देकर अलंकृत किया गया।
इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री ने कहा कि कला व साहित्य में योगदान करने वालों का सम्मान जितनी बार सम्भव हो, होना ही चाहिए। यह युवा प्रतिभाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा। इससे पहले अतिथियों का स्वागत करते हुए सोसायटी के अध्यक्ष अतहर नबी ने संगीतकार नौशाद से जुड़े कुछ संस्मरण रखे। प्रो. आलोक कुमार राय के साथ ही अन्य वक्ताओं ने भी विचार रखे।
इस अवसर पर डा. निकहत के संग्रह ‘यादों का मौसम’ और डा.त्रिनेत्र बाजपेयी व अंशुला बाजपेयी की अंग्रेजी पुस्तक ‘द अनफारगेटेबल्स’का विमोचन भी हुआ। नाटक का आगाज साहिर की यादों से बढ़ते हुए पीछे यानी फ्लैशबैक में लुधियाना कालेज के दृश्यों में ‘तल्खियां’जैसी किताब रचने वाले नौजवान साहिर से रचनात्मक तेवरों से शुरू होता है, जहां उसकी एक अनाम माशूका (प्रेक्षा) है और उनके बीच मजहब के संग और भी कई अदृश्य दीवारें खड़ी हो जाती हैं। यहीं से साहिर की शख्सियत के संग ही उनके क्रिएशन को हम गीत-संगीत और नृत्य में मंच पर सिर्फ देखते ही नहीं महसूस भी करते हैं।
‘परछाइयां’की खासियत यह है कि इसमें नौजवान साहिर (ओम सिंह), बुजुर्ग साहिर (मसूद अब्दुल्लाह) और उनकी शायरी के संग हर रंग में सिर्फ साहिर ही हैं। दरिया सरीखी तेज बहाव वाली इस प्रस्तुति में गीत, संगीत, भंगड़ा, कथक, रूमानी दृश्य, सुख-दुख, बटवारे का हौलनाक मंजर, है तो केन्द्र में सिर्फ साहिर हैं।