आपको पता है कि अदभुत खखरामठ खजुराहो के सभी मंदिरों से बड़ा है। इसका आधार 42 फुट और ऊंचाई 103 फुट है और इसका निर्माण 1129-1163 ईस्वी के मध्य हुआ। यह चंदेल नरेश मदन वर्मन की वास्तुकी सौन्दर्य प्रियता का नायाब नमूना है। खजुराहो शैली में बना यह शिवालय मदनसागर सरोवर के सौन्दर्य में चार चांद लगा देता है। महोबा जनपद में पर्यटन की कितनी अपार संभावनाएं हैं, खखरामठ को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है।
मध्य काल में मुस्लिम आक्रांताओं के हमले से भारत की तमाम ऐतिहासिक व धार्मिक धरोहरें नष्ट हो गयीं, ऐसे में खखरामठ सिर्फ इसलिए बच गया क्योंकि वह मदनसागर सरोवर के बीच में था और वहां तक पहुंचना आसान नहीं था वरना उसकी दशा भी महोबा के सूर्य मंदिर जैसी हो जाती लेकिन अंग्रेज खखरामठ की सभी मूर्तियां जरूर उठाकर ले गए।
सामाजिक कार्यकर्ता तारा पाटकर के अनुसार एक हजार साल के इतिहास को खुद में समेटे खखरामठ वीरभूमि महोबा की शान है और हर व्यक्ति वहां पहुंचने के लिए लालायित रहता है लेकिन पुल न होने की वजह से अभी तक लोगों के लिए ये सिर्फ सपना था। महोबा के लोगों का यह सपना अब जल्दी ही पूरा होने वाला है। पुल बनकर तैयार हो चुका है, बस टिकट काउंटर बनते ही फ्लोटिंग पुल आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा। मदनसागर सरोवर के सौन्दर्यीकरण के लिए केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय ने 3 करोड़ 87 लाख रुपये दिये थे। इस धनराशि से मदनसागर के घाटों व नेहरू पार्क का जीर्णोद्धार भी किया जा रहा है। – वरिष्ठ पत्रकार तारा पाटकर
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