डॉ दिलीप अग्निहोत्री
कश्मीर घाटी से लाखों हिंदुओं का पलायन जगजाहिर था। लेकिन इसके पीछे की त्रासदी को द कश्मीर फाइल्स ने उजागर किया है। प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति पर्दे पर वह मंजर देख कर आहत हुआ। यंत्रणा झेलने वालों की पीड़ा का सहज अनुमान लगाया गया। लेकिन वोटबैंक की सियासत करने वालों की बेरुखी भी एक बार सामने आई है। इसका एक दिलचस्प संयोग है। जो नेता संसद में अनुच्छेद 370 को कायम रखने के लिए जमीन आसमान एक कर रहे थे, वही इस समय कश्मीर की सच्चाई से मुंह छिपा रहे है। भाजपा शासित राज्यों की किसी एक निंदनीय व अप्रिय घटना पर हंगामा करने वाले घाटी के लाखों हिंदुओं की पीड़ा का मखौल बना रहे है। वह बता रहे है कि पुरानी घटनाओं को छोड़ कर आगे बढ़ना चाहिए। इस वोटबैंक सियासत में आप प्रमुख सबसे आगे निकल गए।
उन्होंने फिल्म को झूठा बता कर लाखों पीड़ितों के जख्मों पर नमक लगाया है। वहां से जो लोग जीवित निकले है,वह आजीवन उस दौर को भूल नहीं सकते। केजरीवाल के लिए ऐसे बयान देना आसान है। उनका राजनीतिक वजूद वोटबैंक सियासत से जुड़ा है। जो नेता इसे पुरानी बात कह कर नजरअंदाज करने की सलाह दे रहे है,उन्हें पश्चिम बंगाल व केरल के वर्तमान को देखना चाहिए। यदि वर्तमान सरकार दृढ़ता ना दिखती तो सब कुछ पहले की तरह ही चलता रहा है।
यूपीए सरकार के समय प्रधानमंत्री अपने आवास पर कश्मीरी अलगाववादियों का स्वागत करते थे। कुछ भी हो इस समय देश में द कश्मीर फाइल्स की धूम है। यह दीवानगी हॉल में जाकर फ़िल्म देखने तक सीमित नहीं है। बल्कि यहां देशभक्ति का एक ज्वार भी दिखाई दे रहा है। इस आधार पर यह फ़िल्म बेमिसाल है। इसके पहले अधिकतम मुनाफा कमाने वाली किसी भी फ़िल्म के प्रति ऐसा जन उत्साह दिखाई नहीं दिया था। फ़िल्म से अधिक इस जनभावना को समझने की आवश्यकता है। इसमें किसी भारतीय नागरिक या किसी वर्ग के विरोध का भाव नहीं है। लेकिन आतंकी हिंसा व अलगाववाद के प्रति वितृष्णा अवश्य है। इसको वर्ग क्षेत्र की लाइन से ऊपर उठकर देखने की आवश्यकता है। देश में शांति सौहार्द एकता व अखंडता चाहने वालों को इस पर सहमत होना चाहिए। इसमें किसी के प्रति बदले का भी विचार नहीं है। लेकिन अलगाववादियों मंसूबो से सबक लेने का सन्देश अवश्य है। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार की स्थिति देश के किसी भी क्षेत्र में पैदा ना हो।
इस लिहाज से पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा अवश्य विचलित करने वाली है। जो लोग कश्मीर के अतीत पर चर्चा से बचना चाहते है,उनको पश्चिम बंगाल के वर्तमान पर नजर डालनी चाहिए। यहां भी विधानसभा चुनाव के बाद खास स्थानों को लक्ष्य बना कर आतंक का वातावरण बनाया गया था। शासन व प्रशासन की भूमिका को लेकर भी सवाल उठे थे। ऐसा ही कभी कश्मीर घाटी में हुआ करता था। वहां भी आतंकियों व अलगाववादियों की गतिविधियों के सामने शासन प्रशासन नकारा साबित हुआ था। इसी सच्चाई को द कश्मीर फाइल्स में दिखाया गया है। जम्मू कश्मीर में अलगाववाद की जड़ आर्टिकल 370 था। यह संविधान का अस्थाई अनुच्छेद था। लेकिन पिछली सरकारों ने वोट बैंक के लिए इसे हटाने की हिम्मत नहीं की।
मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर के लोगों के हित के लिए यह फैसला लिया है। तब गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि जम्मू कश्मीर में एक लंबे रक्तपात भरे युग का अंत अनुच्छेद 370 हटने से होगा। इसके कारण ही सत्तर वर्षों तक जम्मू-कश्मीर,लद्दाख और घाटी के लोगों का बहुत नुकसान हुआ है।यह आतंकवाद की जड़ बन गया था। फ़िल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि यह कश्मीर में हुए नरसंहार में मारे गए लोगों श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है। अभिनेता पुनीत इस्सर ने कहा कि फिल्म में दिखाया गया हिन्दुओं का नरसंहार कड़वी सच्चाई है।
कश्मीर पर बनी ‘हैदर’ और ‘मिशन कश्मीर’ जैसी फ़िल्में अजीब नेरेटिव सेट करती आई हैं। इन फिल्मों में अन्याय होने की वजह से घाटी के मुस्लिमों को हथियार उठाए दर्शाया गया है। जबकि यह सच्चाई नहीं है। विभाजन के समय पाकिस्तान के लाखों हिन्दू परिवारों का सब कुछ लूट लिया गया था। लेकिन हिंदुओं ने कभी हथियार नहीं उठाए। हथियार उठाने को मजबूरी और विवशता का चोला पहनाकर हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता। नरेंद्र कश्मीर फाइल्स फिल्म की चर्चा चल रही है,जो लोग हमेशा फ्रीडम आफ इंप्रेशन के झंडे लेकर घूमते हैं वह पूरी जमात बौखला गई है।
यह फिर तथ्यों के आधार पर आर्ट के आधार पर उसकी विवेचना करने के बजाय उसको दबाने की कोशिश में लगे हुए हैं। कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 हटाने का जमकर विरोध किया था। अब वह कश्मीर फाइल्स पर वैसा ही हंगामा कर रही है।उसने कहा कि मोदी सरकार झूठ बोलकर हमेशा राजनीतिक फायदा तलाशती रही है।जबकि विरोध कर रही पार्टियों को स्वीकार करना चाहिए कि अनुच्छेद 370 से केवल दो तीन राजनीतिक कुनबों को ही भरपूर लाभ पहुंच रहा था।
आमजन को तो इससे नुकसान ही हो रहा था। उस दौर में कश्मीर घाटी में चार दिन की बंदी की गई थी। उसमें हिंदुओं को घाटी छोड़ कर चले जाने की हिदायत दी जा रही थी। तब अलगाववादी सैयद अली शाह जिलानी ने कहा था कि कश्मीर में सेकुलरिज्म नहीं चलेगा। डेमोक्रेसी नहीं चलेगी। उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी व जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला थे। उस समय यहां पकिस्तान के स्वतन्त्रता दिवस पर यहां जश्न मनाया जाता था। भारत के स्वतन्त्रता दिवस पर आयोजन की मनाही थी। उसी समय लोकसभा चुनाव में अलगाववादियों ने मतदान के बहिष्कार का आदेश जारी किया था। आज कश्मीर फ़िल्म का विरोध करने वाले उस खामोश थे।
वर्तमान सरकार ने घाटी में प्रजतन्त्र को सच्चे रूप में बहाल किया है। जम्मू कश्मीर में सकारात्मक बदलाव हुआ है। अलगाववाद का दशकों पुराना अध्याय समाप्त है। उसकी जगह मुख्यधारा का प्रभाव है। पंचायत चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी इसका प्रमाण है। केंद्र की कल्याणकारी योजनाएं इन प्रदेश को भी लाभान्वित करने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां आयुष्मान योजना का शुभारंभ किया था।
जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक सुधार के बाद पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव थे। इसको लेकर आशंका व्यक्त की जा रही थी। अलगाववादी गुपकर ने पहले इसके बहिष्कार का आह्वान किया था। बाद में जनता का मिजाज देखकर वह चुनाव में उतरे। लेकिन इनके मनसूबे पूरे नहीं हुए। अब यही लोग सच्चाई पर आधारित फिल्म का विरोध करके अपना असली रूप दिखा रहे है। जबकि पंचायत चुनाव में इन लोगों को जबाब मिला था। केसर की घाटी में कमल खिला था। भाजपा यहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।