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    पुत्रवती महिलाओं के लिए ख़ास है अहोई अष्टमी व्रत, जान लें पूजा करने की विधि और इसकी कहानी

    ShagunBy ShagunOctober 16, 2022Updated:October 16, 2022 Ahoi Ashtami fast No Comments6 Mins Read
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    नीतू सिंह

    अहोई अष्टमी क्या है और यह क्यों मनाया जाता है इस बार यह कब पडेगा ? तो बता दें कि इस बार यह व्रत सोमवार 17 अक्टूबर को पड़ रहा है। यह व्रत पुत्रवती महिलाओं के लिए बेहद खास है। अगर आप इस बारे में कुछ नहीं जानती हैं और नेट पर सर्च कर जानकारी ढूंढ रही है और जानकारी नहीं मिल रही है तो आप हमारी वेबसाइट https://shagunnewsindia.com/ पर आकर आपको इस बारे सम्पूर्ण जानकारी मिल सकती है। आपको बता दें कि इस दिन देश में बालिका दिवस भी मनाया जाता है।

    वैसे तो कार्तिक मास की शुरूआत ही शरद पूर्णिमा से होती है और अंत होता है कार्तिक पूर्णिमा या देव दीपावली से। इस बीच करवा चौथ, अहोई अष्टमी, रमा एकादशी, गौवत्स द्वादशी, धनतेरस, रूप चर्तुदशी, दीवाली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, सौभाग्य पंचमी, छठ, गोपाष्टमी, आंवला नवमी, देव एकादशी, बैकुंठ चर्तुदशी, कार्तिक पूर्णिमा या देव दीपावली को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दौरान देव उठानी या प्रबोधिनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के पश्चात उठते हैं। इस दिन के बाद से सारे मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।

    कार्तिक महीने का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। यह मास शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा पर खत्म होता है। इस महीने में दान, पूजा-पाठ तथा स्नान का बहुत महत्व होता है तथा इसे कार्तिक स्नान की संज्ञा दी जाती है। यह स्नान सूर्योदय से पूर्व किया जाता है। स्नान कर पूजा-पाठ को खास अहमियत दी जाती है। साथ ही देश की पवित्र नदियों में स्नान का खास महत्व होता है। इस दौरान घर की महिलाएं नदियों में ब्रह्ममूहुर्त में स्नान करती हैं। यह स्नान विवाहित तथा कुंवारी दोनों के लिए फलदायी होता है। इस महीने में दान करना भी लाभकारी होता है। दीपदान का भी खास विधान है। यह दीपदान मंदिरों, नदियों के अलावा आकाश में भी किया जाता है। यही नहीं तुलसी दान, आंवला दान तथा अन्न दान का भी महत्व होता है।

    हिन्दू धर्म में इस महीने में कुछ परहेज बताए गए हैं। कार्तिक स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को इसका पालन करना चाहिए। इस मास में धूम्रपान निषेध होता है। यही नहीं लहुसन, प्याज और मांसाहर का सेवन भी वर्जित होता है। इस महीने में भक्त को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए अगर हो सके तो भूमि पर ही शयन करना चाहिए। इस दौरान सूर्य उपासना विशेष फलदायी होती है। साथ ही दाल खाना तथा दोपहर में सोना भी अच्छा नहीं माना जाता है।

    कार्तिक महीने में तुलसी की पूजा का खास महत्व है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी जी भगवान विष्णु की प्रिया हैं। तुलसी की पूजा कर भक्त भगवान विष्णु को भी प्रसन्न कर सकते हैं। इसलिए श्रद्धालु गण विशेष रूप से तुलसी की आराधना करते हैं। इस महीने में स्नान के बाद तुलसी तथा सूर्य को जल अर्पित किया जाता है तथा पूजा-अर्चना की जाती है। यही नहीं तुलसी के पत्तों को खाया भी जाता है जिससे शरीर निरोगी रहता है। साथ ही तुलसी के पत्तों को चरणामृत बनाते समय भी डाला जाता है। यही नहीं तुलसी के पौधे का कार्तिक महीने में दान भी दिया जाता है। तुलसी के पौधे के पास सुबह-शाम दिया भी जलाया जाता है। अगर यह पौधा घर के बाहर होता है तो किसी भी प्रकार का रोग तथा व्याधि घर में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। तुलसी अर्चना से न केवल घर के रोग, दुख दूर होते हैं बल्कि अर्थ, धर्म, काम तथा मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।

    व्रत कब और कैसे:

    यह व्रत कार्तिक मास के लगते ही अष्टमी को किया जाता हैं जिस बार की दीपावली होती है, अहोई आठे भी उसी दिन को पड़ती है। इस व्रत को वे ही स्त्रियाँ करती हैं जिनके संतान होती है। बच्चो की माँ दिन भर व्रत रखें, सायंकाल पर अष्ट कोष्ठ की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाये। उस पुतली के पास सेई तथा सेई के बच्चे के चित्र भी बनाएंया अहोई अष्टमी का चित्र मंगवाकर द्वार पर लगा लें।

    तथा उसका पूजन कर सूर्यास्त के बाद अर्थात् रात के तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा करने से पहले पृथ्वी को पवित्र करके चौक बनाकर एक लोटे में जल भरकर एक कलश की भाँति रखकर पूजा करें। अहोई माता का पूजा करके मातायें कहानी सुनें।

     

    पूजा के लिये मातायें पहले एक दिन चांदी की अहोई बनायें, जिसे स्याऊ भी कहते है और उसमें चांदी के दाने (मोती) डलवा लें। इस प्रकार जैसे गले में पहनने के हार में पेंडल लगा होता है उसी भाँति चाँदी की अहोई डलवा लें और डोरे में चांदी के दाने डलवा लें। फिर अहोई का रोली, चावल, दूध व भात से पूजन करें। जल में भरे लोटे पर सतिया बना लें। एक कटोरी में हलुवा तथा रूपये का बायना निकालकर रख लें और सात दानें गेहूँ के हाथ में लेकर कहानी सुनें। कहानी सुनने के बाद अहोई स्याऊ की माला को गले में पहन ले। जो बायना निकालकर रखा था उसे सासूजा के पाँव लगकर आदरपूर्वक उन्हें दे दें।

    इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन करें। दीपावली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसको गुड़ से भोग लगावें और जल के छीटें देकर मस्तक झुकाकर रख दें। जितने बेटे हो उतनी बार तथा जितने का विवाह हो गया हो, उतनी बार चांदी के दो-दो दाने अहोई में डालती जावें ऐसा करने से अहोई देवी प्रसन्न होकर बच्चों को दीर्घायु करके घर में नित नए मंगल करती रहती है।

    अहोई का उद्यापन कैसे करें –

    जिस स्त्री के बेटा हुआ हो, अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूड़िया रखकर उन पर थोड़ा थोड़ा हलुवा रखें, इसके साथ ही एक पीली साड़ी और ब्लाउज सासू जी के पाँव लगकर, यह सामान सास को दे। साडी तथा रूपये सास अपने पास रख लें तथा हलुवा पूरी का बायाना बांट दें। बहन-बेटी के यहाँ भी बायना भेजना चाहिए।

    अहोई (अशोकाष्टमी) का व्रत कैसे रखें –

    यह वत प्रायः कार्तिक बदी अष्टमी को उसी बार में किया जाता है। पर वार दीपावली होती है। इस दिन स्त्रियों को अरोग्यता और दीर्घायु प्राप्ति कलिए अहोई मांडकर या दीवार पर चित्र लगाकर पूजन करना चाहिए। विधि- अहोई का व्रत दिन भर किया जाता है, जिस समय तारा मण्डल आकाश में उदय हो जाए उस समय वहाँ पर जल का लोटा रखकर चांदी की स्याऊ और दो गुड़ियाँ रखकर मौलीनाल में पिरो लेवे। तत्पश्चात गेली चावल से अहोई माता के सहित स्याऊ मात को अरचे और शिरा आदि का भोग लगाकर सुने।

    दोस्तों यह पोस्ट लम्बी हो रही इस लिए कथा नीतू सिंह की अगली नयी पोस्ट देखे:-

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