जंग जारी है लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध में स्थितियां अब आकार ले रही हैं। यूक्रेन का जुझारू संघर्ष अब रंग ला रहा है। पिछले सप्ताह रूस जिस तरह से यूक्रेन के खेरसान इलाके को खाली करके उल्टे पांव लौटने को मजबूर हुआ है, उससे लग रहा है कि कहीं न कहीं जंग के मैदान में वह कमजोर पड़ता जा रहा है। यह कोई मामूली घटना इसलिए नहीं है क्योंकि जंग के नौ महीने बाद पहली बार ऐसा हुआ जब रूस ने इस तरह से अपने कदम पीछे खींचे हैं।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के इस दावे कि उनके सैनिकों ने खेरसान क्षेत्र पर फिर से कब्जा कर लिया है और अपना झंडा फहरा दिया है, इस बात का संकेत माना जाना चाहिए कि आने वाले दिनों में युद्ध के मैदान में यूक्रेन का पलड़ा भारी हो सकता है। खेरसान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद रूस के कब्जे वाले यूक्रेन के दूसरे इलाकों पर भी इसका असर पड़ना तय है। इस लिहाज से देखा जाय तो यह रूस की एक तरह से अघोषित हार है।
गौरतलब है कि डेढ़ महीने पहले ही रूस ने यूक्रेन के चार इलाकों लुहांस्क, दोनेत्स्क, खेरसान और जेपोरीजिया पर न केवल कब्जा कर लिया था, बल्कि इन इलाकों को रूस में मिलाने की भी घोषणा कर दी थी। ऐसा कर रूस ने एक तरह से यूक्रेन पर जीत का संदेश देने की कोशिश की थी। इन इलाकों पर कब्जों के लिए रूस ने बाकायदा जनमत संग्रह करवाने का दावा किया था। लेकिन हकीकत यह है कि यह सब दिखावा था।
हालांकि रूस का कहना है कि वह अपनी समस्याओं के कारण पीछे हटा है। उसके लिए सबसे बड़ा संकट इस बात का खड़ा हो गया है कि सर्दियों में सैनिकों को रसद कैसे पहुंचाएगा। लेकिन उसकी इस बात में दम इसलिए नजर नहीं आता क्योंकि रूस की सेना तो हमेशा से प्रतिकूल मौसम में लड़ने की अभ्यस्त रही है।
खेरसान पर यूक्रेन का फिर से कब्जा किसी बड़ी जीत से कम नहीं है। अब रूस को समझ लेना चाहिए कि इस जंग में उसे बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है।