उदारवादी नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देना देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान का सम्मान है। बहुत कम राजनेता राजनीति में रहते हुए भी सब तरह के विवादों से ऊपर तथा देश व समाज के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। लालकृष्ण आडवाणी भी इसी श्रेणी में आते हैं। भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य होने के बावजूद वह सभी लोगों के लिए सम्माननीय रहे हैं।
उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन का आरंभ किया और पूर्व जनसंघ व वर्तमान भाजपा के अति प्रमुख नेता के रूप में कार्य करते हुए देश के गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री पदों को सुशोभित किया। अपने अभिन्न साथी, भाजपा के सह संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ वह करीब सात दशकों तक पार्टी की राजनीति की धुरी रहे और इसे देश की बड़ी राजनीतिक शक्ति बनाने में केंद्रीय भूमिका निभाई। गौर करने की बात यह है कि वाजपेयी की पहचान जहां उदारवादी नेता के रूप में थी, वहीं आडवाणी पार्टी की हिंदुत्ववादी राजनीति का चेहरा रहे । व्यक्तित्वों की इस भिन्नता के बाद भी दोनों में गजब का सामंजस्य था।
आडवाणी की हिंदुत्ववादी सोच का ही नतीजा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मुहिम को एक आंदोलन का रूप तब मिला जब उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली और बिहार में गिरफ्तार कर लिए गए। इस घटना से ही राम मंदिर निर्माण अभियान और तेज हुआ। यहीं से भाजपा की शिखर यात्रा आरंभ हुई और आडवाणी जी इस यात्रा के सारथी बने ।
आडवाणी देश हित के लिए भी काफी सजग रहे और इस मुद्दे पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी उन्होंने काफी प्रतिष्ठा अर्जित की। उन्होंने हमेशा राष्ट्रीय मूल्यों और सम्मान को सर्वोपरि रखा और इस मामले में दलगत स्वार्थों को भी आड़े नहीं आने दिया । उनको भारत रत्न दिया जाना वास्तव में राष्ट्रीय अस्मिता का सम्मान है और उससे राजनीति में आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी।