‘बाबा ने अपने फैसला आने से पहले ही उत्तेजक माहौल बनाकर देश की न्याय प्रणाली को यह चेतावनी देने की कोशिश की कि यदि निर्णय उनके खिलाफ आया तो देश अराजकता के हवाले कर दिया जाएगा। उसके सभी भक्त भारत का नामोनिशान मिटा देंगे।’
धर्म के मायावी तिलिस्म में आस्था के दुष्परिणाम क्या होते हैं, यह हमने रामपाल के डेरे में देखा। यही नहीं खुद को बड़ा बापू बताने वाला आसाराम भी किस तरह अपनी मायावी दुनिया के मोहपाश में महिलाओं को यूज करता था, यह भी हम देख चुके हैं। बीते बरस से ही बापू अपने बेटे नारायणस्वामी के साथ सलाखों की हवा खा रहे हैं। आशाराम बापू, राधे मां, गुरुमीत, इच्छाधारी सरीखे धर्मगुरूओं ने धर्म और नैतिकता के नाम पर जो कुछ भी किया है वह अक्षम्य है और कभी संत महात्माओं के लिए जाना जाने वाला भारत आज इन राम रहीम सरीखे पाखंडी बाबाओं के कारण शर्मसार हो रहा है।
बाबा ने अपने फैसला आने से पहले ही उत्तेजक माहौल बनाकर देश की न्याय प्रणाली को यह चेतावनी देने की कोशिश की कि यदि निर्णय उनके खिलाफ आया तो देश अराजकता के हवाले कर दिया जाएगा। उसके सभी भक्त भारत का नामोनिशान मिटा देंगे। किसी जीवंत लोकतंत्र में ऐसी हिंसा किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जा सकती, जहाँ न्यायपालिका के निर्णय को ठेंगा दिखाते हुए लोग कानून को अपने हाथ में ले लें। शुक्रवार को जब अदालत ने बाबा गुरमीत को दोषी करार दिया तो पांच मिनट के भीतर हरियाणा समेत दिल्ली, हिमाचल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अनेक जगहों से आगजनी व तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आने लगीं। देखते-देखते करोड़ों की संपत्ति नष्ट कर दी गई और नियंत्रण के उपाय में पुलिस व सुरक्षाबलों की गोलीबारी में 38 लोगों की मौत हुई और एवं 250 से अधिक लोग घायल हो गए। किसी भी सभ्य समाज में ऐसी हिंसा नहीं होनी चाहिए। हरियाणा की मनोहरलाल सरकार ने पिछली घटनाओं से सबक नहीं लिया। रामपाल और जाट आंदोलन के दौरान भी हमने देखा कि किस तरह सरकार इससे निपटने में नाकाम साबित हुई और बाबा रामरहीम के मसले पर भी पूरी सत्ता, पुलिस और प्रशासन नतमस्तक हुआ दिखा। जबकि चंडीगढ़ के डीजीपी ने 22 अगस्त को ही डेरा के अनुयायियों के इरादों को भांप लिया था। सरकार चाहती तो वह फैसले से पहले खामोशी से डेरा समर्थकों को पंचकूला कूच करने से रोक सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पंचकूला में बाबा के सैकड़ों समर्थकों ने बड़ी बड़ी गाड़ियों में अपना शक्ति प्रदर्शन किया। डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम पर यौन शोषण का आरोप सिद्ध हुआ तो उनके सर्मथकों ने उत्तरी भारत में हिंसा का तांडव रचकर जता दिया कि अदालती आदेश के उनके लिए कोई मायने नहीं हैं और अदालत उनके बाबा पर फैसला नहीं कर सकती क्योंकि उनका बाबा मेसेंजर आफ गाड है।
हैरानी की बात यह है कि चंडीगढ़ प्रशासन और हरियाणा एवं पंजाब की सरकारों को पता था कि 24 अगस्त को यह फैसला आना है और उनके समर्थक तीन दिन पहले से ही पंचकूला में धारा 144 लगाए जाने के बाबजूद लाखों की संख्या में आना शुरू हो गए तब उनको नियंत्रित क्यों नहीं किया गया। बड़ी संख्या में पुलिस के अलावा अर्ध-सैनिक बलों के 15 हजार जवान तैनात थे। थल सेना गश्त कर रही थी। इसके बावजूद बाबा के समर्थक लाठी, हथियार और पेट्रोल व डीजल, ए के 47 लेकर संवेदनशील क्षेत्रों में घुस आए। खुफिया एजेंसियां को भी इनकी मंशा की भनक तक नहीं लग पाई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एजेंसियों के अधिकारी-कर्मचारियों ने क्षेत्र में जाकर न तो समर्थकों से बातचीत की और न ही उनकी तलाशी ली। यहाँ तक की डेरा अनुयायियों ने एक रणनीति के तहत अपने लोगो के खाने पीने के पूरे बंदोबस्त किये हुए थे।
डेरा मामले में खुफिया एजेंसियों की बड़ी चूक है। साथ ही सरकार की डेरा से निकटता के चलते पुलिस भी तमाशबीन बनी रही, इसलिए उन्हें भी इस हिंसा के लिए दोषी ठहराए जाने की जरूरत है। धारा 144 लगाने का मतलब है 4 से 5 लोग एक ग्रुप में साथ साथ नहीं रह सकते लेकिन हरियाणा के पर्यटन मंत्री पंडित रामविलास शर्मा ने तो हद ही कर दी। मीडिया के सामने आकर उन्होंने यह कहा 144 धारा डेरा अनुयायियों पर लागू नहीं होती। वह तो शांतिप्रिय लोग हैं और उनके खाने पीने की व्यवस्था करना सरकार का काम है। राजनीति कैसे इन बाबाओं के सामने नतमस्तक हो जाती है यह इस प्रकरण से हम बखूबी समझ सकते हैं। साफ है खट्टर सरकार ने भी अपने वोट बैंक के मद्देनजर डेरा अनुयायियों पर सख्ती नहीं बरती। यहाँ तक कि पुलिस भी डेरा से आने वाले लोगों की आवभगत में जुटी रही।इस पूरे मामले में हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार कोर्ट की तरफ से पड़ी जिसमें उसने साफ किया कि सरकार इस मामले पर सख्ती दिखाए और अगर वह ऐसा नहीं करती तो क्यों न डीजीपी को ही बर्खास्त कर दिया जाए। कोर्ट ने तो हिंसा करने वालों को सीधे गोली मारने के आदेश भी दिए थे लेकिन इसके बाद भी सरकार अगर रेंग नहीं पायी तो इसे वोट बैंक के आईने में देखना होगा, जहाँ भाजपा, कांग्रेस, इनेलो सब डेरे के आसरे अपनी चुनावी बिसात हर चुनाव में अपने अनुकूल बिछाते रहे। पंजाब की तकरीबन 27 तो हरियाणा की तकरीबन तीन दर्जन सीटों पर डेरा का खास प्रभाव है। पड़ोसी राज्य राजस्थान में गंगानगर संभाग भी पूरी तरह डेरा के वोट से घिरा हुआ है, जहाँ राम रहीम के बिना चुनाव में पत्ता भी नहीं हिलता। डेरा हर चुनाव में जिस पार्टी की ओर इशारा करता है हवा का रुख उस पार्टी की तरफ मुड़ जाता है और वह पार्टी सत्ता का सुख भोगती है। सरकार खट्टर की रही हो या चौटाला या हुड्डा की, गाहे बगाहे डेरा के आगे हरियाणा की पूरी सरकारें नतमस्तक रही हैं।
1948 में शाह मस्ताना ने डेरा सच्चा सौदा की नीव रखी। सिरसा में डेरा सच्चा सौदा का ये आश्रम करीब सात सौ एकड़ में फैला हुआ है। एक हवाई पट्टी भी है, जिसपर बाबा राम रहीम का प्लेन लैंड और टेकआॅफ करता है। महंगी बाइक और इंपोर्टेड कार गुरमीत बाबा राम रहीम के लिए मानो जिद की हद तक के शौक हैं। बाबा की दुष्कर्म की दुनिया ऐसी जहाँ उनके दुष्कर्म को पिताजी की माफी कहा जाता था। बाबा ने अपने इस आश्रम में अपनी रसूख और सरकार में दखल का फायदा उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले ने साबित कर दिया कि लोगों की आस्था ने जिसे अब तक एक पहुंचा हुआ बाबा माना था, वो असल में बलात्कारी से ज्यादा कुछ भी नहीं था।
एक संस्मरण याद है की जब गुरुनानक के पिता कालू मेहता ने जब अपने बेटे नानक को व्यापार करने के लिए 20 रुपये दिए तो गुरूजी ने उन पैसों से व्यापार का सौदा न खरीदकर भूखे साधुओं को भोजन करा दिया था। पिता के थप्पड़ मारने पर गुरुनानक ने कहा था, मैं दुनिया में कोई झूठा सौदा भी नहीं करना चाहता हूँ। उन रुपयों से साधुओं की भूख मिटाकर मैंने सच्चा सौदा किया है लेकिन किसे पता था सच्चे सौदे और गुरु के नाम पर खुद को राम रहीम और इंसा कहने वाला गुरुमीत एक दिन अपनी काली करतूतों से न केवल खुद को बल्कि पूरी मानवता को शर्मसार कर देगा।