जब ट्विंकल ने खेल-खेल में शेर खान का दरबार सजाया, बहुत अच्छा लगा राजा को एक उच्च स्थान दिया, सभी जानवरों में प्रेम का एक अध्याय सा दिखा। वहीं दूसरी ओर फिर उसने कुछ और कारस्तानी की मानवीयकृत खतरनाक मशीनों और दीवारों के अंदर उन्हें बंदी बना लिया और जंगल को तथा जंगल के राजा को पता न चला।
सहसा मेरी नन्ही परी बोली अब ” इन सब जानवलों तो ये गाड़ी माल देंगी अब कैसे होगा?” फिर उसने अपनी बनायी दीवारें तोड़ दीं और कहा, अब सब भग जायेंगे। इस दृश्य और वक्तव्य ने आमेजन के जंगलों पे लगायी गयी आग और जंगलों पर हो रहे मानवीय अत्याचार (जिससे बेजुबानों की ज़िंदगी, जातियाँ और वंश दाँव पर लगे हैं) की बरबस याद दिला दी, यह याद आज चित्र को देखकर आयी। कल खेल के आगे मैं नन्हीं बच्ची की बड़ी बातें समझ न पाया था।
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मेरी नन्हीं परी ने खेल-खेल में मानवीय संवेदनाएं भी जाहिर की, और अपने खेल में जानवरों को बचाने का प्रयास भी किया खुद आईडिया भी लगाया। पर हम बड़े लोग निष्ठुर से हो चुके हैं। रोज की आपाधापी में संवेदनहीन हो चुके हैं। जंगलों के प्रति बढ़ती आर्थिक दृष्टिकोण की तरफ से इंसानी लालसा शैतानों और हैवानों को भी शर्मसार कर देने वाली हैं। आमेजन के जंगलों पर लगी आग से मैं वास्तव में कतई चिंतित नहीं था इसलिये की यह होता रहता है सोच कर टाल दिया। किन्तु कल जब मेरी नन्हीं बिटिया ट्विंकल ने शेर खान का दरबार सजाया और कुछ बातें कहीं तब मन ने खुद से एक सवाल पूछा हम कहाँ आ गये हैं???