उपेन्द्र नाथ राय
बात 1989 के लोकसभा चुनाव की है। बोफोर्स का मुद्दा जोर पकड़ रहा था। वीपी सिंह कांग्रेस से अलग होकर इसको तूल देने में जुटे थे। उस चुनाव से पूर्व एबीवीपी ने इस मुद्दे को हवा देने में महती भूमिका निभाई थी। जैसा कि बैठक में रहने वाले एक पदाधिकारी ने चर्चा के दौरान बताया था कि इस पर पहली बैठक डीयू में हुई थी, जिसमें प्रमुख रूप से एक वरिष्ठ पत्रकार और एक भाजपा के एक वरिष्ठ नेता शामिल थे। अब मामला गरम होता चला गया। इसी बीच कांग्रेस इस मुद्दे को ठंडा करना चाहती थी। उसकी इच्छा थी कि संघ और एबीवीपी इस मुद्दे पर मौन रहे, आगे का काम हम कर ले जाएंगे।
उस मुद्दे पर भाजपा के वरिष्ठ नेता से कांग्रेस के एक अल्पसंख्यक व राजीव गांधी के चहेते नेता ने बात की और मुलाकात करने की इच्छा जताई। दोनों लोगों की बैठक एक अंधेरे कमरे में हुई, जिसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता ने विद्यार्थी परिषद और संघ के मौन रहने के मुद्दे को सिरे से नकार दिया, लेकिन उस बीच एक दांव भाजपा को मिल गया। वह था, अल्पसंख्यक कांग्रेसी नेता के साथ आये एक आईबी अधिकारी का भाजपा के थिंक टैंक से मुलाकात।
उस समय आईबी का अधिकारी कांग्रेस के वार रूम में रहता था। वह कांग्रेस की हर गतिविधि से परिचित था। उसने धीरे से भाजपा नेता को एक पर्ची पकड़ाई। उसमें उसने लिखा, ‘यदि आप चाहें तो मैं आपसे मिलकर कुछ वार्ता करना चाहता हूं, जो आपकी पार्टी के लिए फायदेमंद रहेगा। उसमें उसने मोबाइल नम्बर भी लिखा था। वह अधिकारी उस समय पंजाब में कांग्रेस द्वारा चलाए गये अभियान से नाराज था।
इसके बाद भाजपा नेता ने अंधेरी कोठरी में फिर उस अधिकारी से बुलाकर वार्ता की (ऐसी वार्ता के लिए अंधेरी कोठरी का प्रयोग इस कारण किया जाता है, जिससे कि कोई विडियो या फोटो न बना सके।) उसने बताया कि हम कांग्रेस के वार रूम में हैं, जहां पर हर एक गोपनीय योजना बनाई जाती है। हम आपको पूरी खबर किसी अभियान से पहले ही दे देंगे। बात पक्की हो गयी।
कांग्रेस कोई भी अभियान चलाने को सोचती, भाजपा को पता हो जाता और उसके अनुसार पहले से ही पार्टी तैयार हो जाती और पहली बार किसी भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के दहाई में सदस्य निर्वाचित हुए। भाजपा दो लोकसभा से 83 सीटें प्लस करते हुए 85 सीटें जीत सकी। इसके साथ ही वीपी सिंह की पार्टी 143 सीटें आयी। कांग्रेस की 207 सीटें कम हो गयी और 197 पर ही जीत सकी। उसमें बोफोर्स की अहम भूमिका तो थी ही, जिसे सब जानते हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण भूमिका आईबी अधिकारी की भी थी,, जिसे लोग नहीं जानते।
यह हकीकत बताने की पीछे का मकसद सिर्फ एक है, वर्तमान में भी ऐसा आभास होता है कि भाजपा के वार रूम तक “आम आदमी पार्टी” की पहुंच हो गयी है, जिससे भाजपा की अधिकांश गतिविधियों के शुरू होने से पूर्व ही अरविंद केजरीवाल को चल जाता है। मनीष सिसोदिया पर ताबड़तोड़ छापेमारी से बहुत पहले ही अरविंद केजरीवाल ने इसकी घोषणा कर दी थी। अब यदि कोई खुद इसे कह रहा है कि हमारे यहां छापा पड़ने वाला है। उसके कई माह बाद छापा पड़े तो क्या संभव है, उसके यहां कोई सुबूत भी मिल पाएगा। सिसोदिया के यहां छापा के बाद अभी तक तो यही हकीकत भी देखने को मिल रही है।
आज की तिथि में यह भी देखने को मिल रहा है कि यदि नेताओं में अपनी बात को त्वरित गति से बदलने वाला कोई नेता है तो वह अरविंद केजरीवाल हैं। क्षेत्रीय पार्टियों में दो राज्यों में सरकार बनाने वाली कोई पार्टी है तो आप है। यह तो मानना ही पड़ेगा कि आने वाले समय के अभी तक विपक्षी हीरो अरविंद केजरीवाल ही दिख रहे हैं। इसका एक अंदरूनी कारण आईएएस लाबी में उनकी ज्यादा पहुंच का होना जान पड़ता है।
हालांकि बिहार के बेताज बादशाह, गठबंधन के नया-नया फार्मूला अपनाने वाले नितीश कुमार की वर्तमान स्थिति देखा जाय तो संभव है कि आने वाले कुछ दिनों में अरविंद केजरीवाल का भी लोक आकर्षण कम हो जाय, लेकिन यदि वे गुजरात विधानसभा चुनाव में कुछ भी विधायकों को जीताने में कामयाब हो जाते हैं तो आने वाले पांच सालों तक तो उनकी चमक को फीका करने वाला कोई नहीं रह जाएगा।
दूसरे ओर वादा और काम के बारे में देखा जाय तो भाजपा ने बहुत काम किये, लेकिन जो प्रमुख मुद्दों पर चुनाव लड़ती है। उसमें से कई को चुनाव बाद खुद भुला देती है। आमजन भी भूल जाता है। जैसे 2014 के चुनाव में हमें याद है, नरेन्द्र मोदी के अधिकांश चुनाव में कहा करते थे, मनमोहन सिंह जी के उम्र के बराबर डालर की कीमत बढ़ती जा रही है। आज डालर और रूपये की कोई तुलना ही नहीं करता। हालांकि 370, राम मंदिर या अन्य ऐसे कई एजेंडे भाजपा के गठन के बाद से ही चले आ रहे थे, जिसे नरेन्द्र मोदी ने निपटा दिया। स्वच्छता अभियान जैसे मुद्दों पर भी उन्होंने मुहिम छेड़ी और आज अधिकाशं आमजन जागरूक दिखते हैं।
दूसरी ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ महाआंदोलन से निकली चिंगारी के रूप में पैदा हुई आम आदमी पार्टी को देखा जाय तो सर्वाधिक आप के नेता ही भ्रष्टाचार में फंसते नजर आ रहे हैं। इसके बावजूद जनाधार बढ़ता जा रहा है। इसका कारण है, लोगों का दिमाग इधर से उधर मोड़ने में अरविंद केजरीवाल माहिर हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ चले अन्ना आंदोलन में शामिल होने वाले अरविंद केजरीवाल का अपने नौकरी के दौरान भी कोई ऐसा इतिहास नहीं मिलता, जिसमें उन्होंने किसी भ्रष्टाचारी के खिलाफ ठोस कार्रवाई की हो। जब नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बनारस से लोक सभा चुनाव का पर्चा भरने के लिए अरविंद केजरीवाल दिल्ली से चले थे तो आम आदमी दिखाने के लिए ट्रेन से सफर किया लेकिन गुजरात का चुनाव प्रचार चार्टर्ड प्लेन से कर रहे हैं। इसके बावजूद आमजन का दिल जीतने में सफल हैं।
यूं कहें कि नरेन्द्र मोदी तो कई बेहतर काम कर चुके लेकिन अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली में बिना नये स्कूल खोले भी बेहतर शिक्षा का माहौल बनाने में कामयाब रहे। इन सबको देखकर ऐसा लगता है कि आने वाले समय में भाजपा को कांग्रेस से नहीं आम आदमी पार्टी से सजग रहने की जरूरत पड़ेगी।
(लेखक-वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं, मोबाईल नम्बर- 9452248330)