जी के चक्रवर्ती
यह बेहद ही अहम् व सराहनीय कदम है कि पाकिस्तानी डिग्री से भारत में नौकरी करने के सपने देख रहे कश्मीरी छात्रों को अब भारत में नौकरी व अन्य व्ययसाय सम्बन्धी चीजें नहीं हासिल हो सकेंगी। उन्हें अब भारत में रहकर ही अपने सपने पूरे करने होंगें।
पिछले दो दशकों से सैकड़ों भारतीय कश्मीरी छात्रों ने पाकिस्तान स्थित शिक्षण संस्थानों में पढ़ने के लिये दाखिला ले रहे हैं। वे वहाँ के कॉलेजों में वृत्तिक पाठ्यक्रम भी चुनते हैं और वहीं से उच्च शिक्षा लेने का विकल्प का भी चुनाव करते हैं। अब यहां यह प्रश्न का उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार कश्मीर के भारतीय छात्र अपनी व्यवसायिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई के लिये पाकिस्तान का ही चुनाव क्यों कर रहे हैं?
दरअसल कुछ समाचार चैनलों के हवाले से ऐसी जानकारी है कि पाकिस्तान जाने वाले छात्रों को वहां आतंकवादी ट्रेनिग दे कर इन्हें वापस भारत के कश्मीर राज्य में आतंकवाद फैलाने के लिये भेज दिया जाता है। यह सिलसिला एक लम्बे समय से चल रहा है वैसे भले ही सभी छात्र ऐसे ट्रेनिग कैम्प में शामिल होने भले ही नही जाते हो बल्कि सही के साथ लग कर ऐसे उग्रवादी संगठनों में शामिल होने वाले छात्र भी आसानी से पकिस्तान पहुँच जाते हैं क्योंकि इस तरह उन पर किसी को शक भी नही होता है।
इन्ही चीजो को ध्यान रखते हुए अभी पिछले ही दिनों यानिकि 5 मई 2022 को भारत सरकार की एक संस्था “नेशनल मेडिकल कमीशन” (NMC) जैसी देश की सबसे बड़ी मेडिकल एजुकेशन रेगुलेटरी बॉडी ने पाकिस्तान में जाकर एमबीबीएस (MBBS) व बीडीएस (BDS) कोर्स करने वाले छात्रों के लिए चेतावनी जारी कर कहा है कि उन विद्यार्थियों को भारत में वयवसाय या कार्य करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। एनएमसी (NMC) ने यह चेतावनी ऐसे वख्त जारी की है जब एक हफ्ते पहले यूजीसी और एआईसीटीई ने छात्रों से पड़ोसी देशों में जाकर उच्च शिक्षा न लेने का आग्रह किया है।
जबकि पाकिस्तान में ऐसे व्यवसायिक पाठ्यक्र की पढ़ाई भारत की अपेक्षा बहुत सस्ता होने के कारण बहुत कम पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इस समय तो कई कश्मीरी छात्र पाकिस्तान के शिक्षण संस्थान से अपनी चिकित्सिय पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन कई कश्मीरी छात्र अपने पढ़ाई के लिए दूसरे पाठ्यक्रमों जैसे इंजीनियरिंग का भी चुनाव कर रहे है और इन्ही में से कुछ छात्र अपने लिये देश विरोधी गुटों में शामिल होने का रास्ता भी अख्तियार कर लेते है।
पहले भारत के लोगों में यह मानसिकता या राय आम हुआ करती थी कि बच्चों को यदि डॉक्टरी की पढ़ाई करानी है तो उन्हें यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका या रूस जैसे देशो में भेजा जाये, लेकिन आज के समय मे माता-पिता अपने बच्चों को पाकिस्तान व अन्य देशों में भी भेजने लगे हैं क्योंकि एक तो यह भारत से लगा हुआ देश है साथ ही यहां इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं की उपलब्धता होना भी इसका प्रमुख कारण होने के साथ ही साथ यहां के मेडिकल विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने के लिये कोई डोनेशन फीस नहीं देनी पड़ती है। इसलिये कुछ कमजोर छात्रों के माता पिता अपने बच्चों को इन देशों में चिकित्सा अध्ययन कराने भेजने के लिये मजबूर हैं।
क्या ऐसे छात्र-छात्रायें जो इन छोटे-छोटे देशों से डॉक्टर इंजीनियर बन कर जब भारत लौटते हैं तो वे या तो यहाँ नौकरी करेंगे या बाहर अपनी क्लिनिक या कॉन्ट्रक्शन कम्पनी खोलेंगे। ऐसी अवस्था मे क्या भारत सरकार इतने लोगों को अपने देश मे नौकरी देने में सक्षम है? और यदि नही तो एसे में यह लोग बाहर अपना व्यवसाय करेंगे तो क्या उनके द्वारा किया जाने वाला चिकित्सा और चिकित्सक या इंजीनियर भारत मे सफल हो पाएंगे? कियूंकि भारत की जलवायु ,परिवेश और रहन-सहन से लेकर बहुत सारी चीजें विदेशी संसाधनों से पृथक होने के अलावा भारत जैसे देश मे मेडिकल से सम्बंधित कोई भी व्यवसाय करने के लिए बहुत बड़ी धन राशि खर्च करने की आवश्यकता होगी। एसे में बहुत ही कम माता पिता अपने बच्चों को विदेश भेज कर पढ़ाई-लिखाई करने के खर्चो को उठाने के बाद क्या उन्हें अपने देश मे इस स्तर की रोजगार कराने में सक्षम हो पाएंगे?
दरअसल, भारत सरकार के नियमानुसार विदेशों से मेडिकल की पढ़ाई कर आने वाले उन्हीं छात्र-छात्राओं का मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) रजिस्ट्रेशन करना होता है, जो FMGE परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते हैं। FMGE परीक्षा उत्तीर्ण नहीं करने वाले छात्रों को देश में मेडिकल प्रैक्टिस या आगे की पढ़ाई करने का भी मौका प्रदान नहीं किया जाता है, जो छात्र FMGE परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते हैं, उन्हें ही भारतीय कानून के अनुसार डॉक्टर माना जाता है। गौरतलब है कि FMGE का आयोजन राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड की ओर से एक साल में दो बार आयोजित की जाती है। यह परीक्षा जून और दिसंबर महीने में आयोजित की जाती है। परीक्षा में वे छात्र ही सफल माने जाते हैं जिन छात्रों ने कम से कम 50 प्रतिशत तक का अंक हासिल किया हो। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका से पढ़ने वाले छात्रों को FMGE परीक्षा पास करने की आवश्यकता नहीं होती है।
वैसे आपको बता दें कि इन संस्थानों में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए अच्छा माना जाता है। यूनाइटेड किंगडम में विश्वविद्यालयों की एक विशेष श्रृंखला है, जो एमबीबीएस का कोर्स प्रदान करती है। यूके के विश्वविद्यालयों ने एमबीबीएस के विशेष कोर्स प्रदान करने में क्यूएस, टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में अपना 100 वीं सूची में नाम भी दर्ज कराया है। एमबीबीएस का कोर्स 4 से 6 वर्षों तक का होता है। कोर्स के सफल समापन के बाद एक सर्टिफिकेट ऑफ कंप्लीशन ट्रेनिंग (सीसीटी) प्रदान की जाती है।
ऐसी सभी तरह की परिस्थिति में इस समस्या पर सरकार को अभी से ही ध्यान देने की आवश्यकता है और इसके लिये भी अब सख्त नियम-कानून के साथ ही साथ देश मे बहु संख्या में अस्पताल खोले जाने की भी आवश्यकता है।