रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को करीब सवा साल हो गए हैं लेकिन इसके खत्म होने के आसार नहीं हैं। बल्कि यह और भी संगीन होता जा रहा है रूस ने यूक्रेन और अमेरिका पर आरोप लगाया है कि क्रेमलिन पर किए गए हमले का मकसद राष्ट्रपति पुतिन को मारना था। हालांकि यूक्रेन ने इस आरोप से इंकार किया है। मगर रूस ने इस आधार पर जवाबी कार्रवाई तेज कर दी है।
यूक्रेन में कई जगहों पर हमले किए गए हैं जिसमें अनेक लोगों के मरने की बात कही जा रही है। इस तरह यह युद्ध और भी गंभीर होता जा रहा है। सवा साल के बाद भी इसको रोकने का कोई रास्ता नहीं निकल सका है। अब तो पश्चिमी देश भी खुलकर यूक्रेन के समर्थन में आ गए हैं। इससे रूस की नाराजगी और बढ़ गई है। क्रेमलिन पर हमले की बात को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह क्रेमलिन की सुरक्षा चाक चौबंद है, उसमें सेंध लगाना इतना आसान कैसे हो गया । यह भी तर्क दिया जा रहा है कि इस मामले का ताना-बाना खुद रूस ने तैयार किया हो।
इस घटना के पीछे उसका मकसद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी यह दिखाना हो सकता है कि गलती उसकी नहीं, बल्कि यूक्रेन की ही है जो अब आतंकवादी हरकतों पर उतर आया है। इस युद्ध को लेकर एक सवाल बार-बार उठता है कि आज के समय में राष्ट्रों की हैसियत उनकी आर्थिक संपन्नता से आंकी जाती है और युद्ध का आखिरकार कोई हल निकलता नहीं तब दोनों देश इतने लंबे समय से अपना धन क्यों इस पर बहा रहे हैं। फिर इस युद्ध को रोकने के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की प्रासंगिकता क्या रह गई है। रूस पहले भी यूक्रेन को डराने-धमकाने में पीछे नहीं रहा है।
यूक्रेन अपनी ज्यादातर ताकत का इस्तेमाल अभी बचाव में कर रहा है। फिलहाल जरूरत इस बात की है कि इस वैश्विक खतरे को कम किया जाना चाहिए। हमला चूंकि | रूस ने किया है, इसलिए सबसे ज्यादा जिम्मेदारी भी उसी की है। रूस को इस युद्ध की समीक्षा करनी चाहिए कि क्या उसे अब भी कोई फायदा है।