गौतम बुद्ध के बाद कबीर ही तर्कसंगत बात करने वाले संत थे….जिनके बाद इस खाली जगह को कोई नही भर सका। उनके हर एक दोहा पाखंडवाद और कुरीतियों पर सवाल भी करता है और चोट भी करता है।
मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में
न तीरथ में, न मूरत में, न एकांत निवास में
न मंदिर में, न मस्जिद में, न काशी कैलाश में
न मैं जप में, न मैं तप में, न मैं बरत उपास में
न मैं किरिया करम में रहता, नहीं योग संन्यास में
खोजी होए तुरत मिल जाऊँ, एक पल की तलाश में
कहे कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूँ विश्वास में
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