पंकज चतुर्वेदी
पूरा इलाका हाई अलर्ट पर था, पंजाब में पोस्टर लगाए गए थे कि जाकिर मूसा यहीं-कहीं छुपा है, उसके बावजूद अमृतसर में हवाई अड्डे के करीबी राजासांसी गांव में दिन में बारह बजे दो लड़के मोटरसाईकिल से निरंकारी प्रवचनस्थल पहुंचे, पिस्तौल दिखा कर दरवाजा खुलावाया, बम फैंका और फरार हो गए। तीन लोगों के मरने की खबर है। आतंकवादी कौन थे? यह तो खोजना जांच एजेंसी का काम है लेकिन यह तो तय है कि ऐसे पाशविक हरकत करने वालों के पंजाब में स्थानीय संपर्क है। सूचना हैं और संसाधन हैं, वरना जगह-जगह लगे सुरक्षा नाकों से बच कर लंबी दूरी से आ कर घटना को अंजाम देना संभव नहीं है। बीते कुछ सालों से पंजाब में अलगाववादियों को मजबूत बनाने में सीमापार के आतंकी लगातार सक्रिय हैं। एक तो इस समय कश्मीर में बरफ गिरने से घुसपैठ में दिक्कत है, दूसरा कश्मीरी आतंकियों के स्थानीय कैडर को सुरक्षा बलों ने बुरी तरह कुचल दिया है, सो जाहिर है कि भारत में अस्थिरता फैलाने के मंसूबे रखने वालों के लिए पंजाब मुफीद जगह है। यह किसी से छुपा नहीं है कि कनाड़ा व कई अन्य देशों में खालिस्तान की मांग वाले सक्रिय हैं।
कोई तीन साल पहले ही पहले देश की सबसे सुरक्षित माने जाने वाली बुढैल जेल में कई साल से समानांतर चल रही दुनिया का खुलासा हुआ था, जहां अपराधी फेसबुक पर पोस्ट लगा कर धमकियां दे रहे थे, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का मुखिया स्काईप पर पाकिस्तान बात करता था। यह अकेले एक जेल के हालात नहीं थे, राज्य में वे सभी जेल जहां जमींदोज हो चुके खालिस्तान आंदोलन से जुड़़े लेाग बंद थे, वहां हालात ऐसे ही थे। राज्य में सरकार बदलने के बाद हालात भी बदले और धीरे-धीरे सामने आने लगा कि किस तरह अकाली अपनी तयशुदा हर से बचने के लिए खाड़कुओं को षह दे रहे थे। यही नहीं सतलुज-यमुना लिंक विवाद के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद छोटे-छोटे गांव में इसे सिखों के साथ अन्याय व अलग देश की मांग एकमात्र हल जैसी सभाएं हुई, जिसे सरकार नजरअंदाज करती रही।
जनवरी 2016 में पंजाब के पठानकोट के अकालगढ में वायु सेना के शिविर पर हुए आतंकी हमले को ले कर कई बातें हवा में उड़ती रही और वहां मारे गए आतंकियों की पहचान अभी तक उजागर नहीं की गई। पूरे मामले में एक वरिश्ठ पुलिस अफसर की संदिग्ध भूमिका पर अभी भी षंकाओं के बादल छाए है, जिसकी गाड़ी ले कर आतंकी वायु सेना अड्डे तक पहुंचे थे। इस घटना के बाद मई में पंजाब की खुफिया एजेंसी ने एक रपट केंद्र को भेजी थी, जिसमें बताया गया था कि कनाड़ा में ब्रिटिश कोलंबिया के ‘‘मिशन सिटी’’ में पंजाब से भगोड़ा घोशित आतंकी हरदीप निज्जर खालिस्तान टेरर फोर्स के नाम से संगठन चला रहा है। जहां भारत के खिलाफ जहर उगलने व हथियारों की ट्रैनिंग भी दी जा रही है। रिपोर्ट में पाकसितान के रास्ते हथियार आने की भी चेतावनी थी। उधर खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के रंजीत सिंह नीता द्वारा पाकिस्तान में हिजबुल आतंकियों को सिख धर्म, परंपरा, गुरूमुखी, पंजाब के रास्तों, जंगलों का प्रशिक्षण देने के भी प्रमाण सरकार के पास हैं।
यह जीवट, लगन और कर्मठता पंजाब की ही हो सकती है, जहां के लोगों ने खून-खराबे के दौर से बाहर निकल कर राज्य के विकास के मार्ग को चुना व उसे ताकतवर बनाया । बीते एक दशक के दौरान पंजाब के गांवों-गांवों तक विकास की धारा बही है । संचार तकनीक के सभी अत्याधुनिक साधन वहां जन-जन तक पहुंचे हैं, पिछले कुछ सालों में यही माध्यम वहां के अफवाहों का वाहक बना है । फेसबुक या गूगल पर खोज करें तो खालिस्तान, बब्बर खालसा, भिंडरावाले जैसे नामों पर कई सौ पेज वबेसाईट उपलब्ध हैं। इनमें से अधिकांश विदेशों से संचालित हैं व कई एक पर टिप्पणी करने व समर्थन करने वाले पाकिस्तान के हैं। यह बात चुनावी मुद्दा बन कर कुछ हलकी कर दी गई थी कि पंजाब में बड़ी मात्रा में मादक दवाओं की तस्करी की जा रही है व युवा पीढ़ी को बड़ी चालाकी से नशे के संजाल में फंसाया जा रहा है।
सारी दुनिया में आतंकवाद अफीम व ऐसे ही नशीले पदार्थों की अर्थ व्यवस्था पर सवार हो कर परवान चढा हे। पंजाब में बीते दो सालें में कई सौ करोड़ की हेरोईन जब्त की गई है व उसमें से अधिकांश की आवक पाकिस्तान से ही हुई। स्थानीय प्रशासन ने इसे षायद महज तस्करी का मामला मान कर कुछ गिरफ्तारियों के साथ अपनी जांच की इतिश्री समझ ली, हकीकत में ये सभी मामले राज्य की फिजा को खराब करने का प्रयास रहे हैं।
31 मई 2017 को बठिंडा पुलिस ने एक महिला सहित चार ऐसे खालिस्तानी आतंकियो को हथियार सहित पकड़ा था जो कि दिल्ली में सज्जन कुमार और टाईटलर की हत्या करना चाहते थे। उनके भी तार कनाड़ा से जुड़े मिले हैं। जरा कुछ पीछे ही जाएं, सितंबर- 2014 में बब्बर खालसा का सन 2013 तक अध्यक्ष रहा व बीते कई दशकों से पाकिस्तान में अपना घर बनाएं रतनदीप सिंह की गिरफ्तारी पंजाब पुलिस ने की। उसके बाद जनवंबर- 14 में ही दिल्ली हवाई अड्डे से खलिस्तान लिबरेशन फोर्स के प्रमुख हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटू को एक साथी के साथ गिरफ्तार किया गया। ये लेाग थाईलैंड से आ रहे थे। यही मिंटू नाभा जेल से भागा व दिल्ली में 27 नवंबर को ही पकड़ लिया गया।
पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में सजायाफ्ता व सन 2004 में अतिसुरक्षित कहे जाने वाली चंडीगढ की बुढैल जेल से सुरंग बना कर फरार हुए जगतार सिंह तारा को जनवरी-2015 में थाईलैंड से पकड़ा गया। एक साथ विदेशों में रह कर खालिस्तानी आंदोलन को जिंदा रखने वाले षीर्श आतंकवादियों के भारत आने व गिरफ्तार होने पर भले ही सुरक्षा एजेंसिंयां अपनी पीठ ठोक रही हों, हकीकत तो यह है कि यह उन लोगों का भारत में आ कर अपने नेटवर्क विस्तार देने की येाजना का अंग था। भारत में जेल अपराधियों के लिए सुरक्षित अरामगाह व साजिशों के लिए निरापद स्थल रही है।
बीच में रावी नदी है। इस तरफ है गुरदासपुर का गुरूद्वारा डेरा बाबा नानक और नदी के दूसरे तट पर है पाकिस्तान के नारोवाल जिले का गुरूद्वारा करतारपुर। यहां बाबा नानक के अंतिम सांस ली थी। भले ही ये दो अलग मुल्क दिखते हैं, लेकिन रावी पार कर इधर से उधर जाना कोई कठिन नहीं है। देानों देश के सिख सुबह-सुबह अपने गुरूद्वारे से दूसरे को सीस नवांते हैं। यहीं सक्रिय है चार संगठन – खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (रणजीत ंिसह), खलिस्तान टाईगर फोर्स(जगतार सिंह तारा), बब्बर खालसा इंटरनेशनल(वधवा सिंह) और खालिस्तान लिबरेशन फोर्स(हरमिंदर सिंह मिंटू)। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत द्वारा वांछित सूची के कई आतंकवादी यदि उस पार सुकून की जिंदगी बिता रहे हैं तो यह उस सरकार की रजामंदी के बगैर हो नहीं सकता। बीते एक दशक के दौरान पंजाब में युवाओं का खेती से मोह भंग हुआ, कनाड़ा व दीगर देशों में जाने का लालच बढ़ा और अचानक ही सीमापार से अफीम व अन्य मादक पदार्थों की आवक बढ़ी।
अफगानिस्तान हो या पूर्वी अफ्रीका या फिर पंजाब, हर जगह आतंकवाद हर समय नशाखोरी पर सवार हो कर ही आया है। पंजाब में नशे की तिजारत को ले कर खूब सियासत भी हुई, कई बड़े-बड़े नामों तक इसकी आंच भी गई। गौर करें कि सन 1993 में पंजाब से लगी पाकिस्तान की 466 किलोमीटर की सीमा पर कंटीली बाढ़बंदी व फ्लड लाईटें लगाने का काम पूरा हो गया था, और उसके बाद वहां कभी भी घुसपैठ की कोई शिकायत आई नहीं। बेअंत सिंह की हत्या के बाद राज्य में यही बड़ी आतंकवादी घटना हुई है।
याद करें कश्मीरी आतंकी जाकिर मूसा की खोज के सबसे ज्यादा पोस्टर दीनानगर के आसपास लगाए गए। दीनानगर महज सीमा के करीब ही नहीं है है, असल में यह कस्बा कभी महाराज रणजीत सिंह की राजधानी रहा है। इसके आसपास गुरू नानकदेव व अन्य सिख गुरूओं से जुड़ी कई यादें हैं व सीमा से सटे पाकिसतान के गांवों में खासी सिख आबादी भी है। यह भी संभव है कि इस घटना में खालिस्तानियों का हाथ ना हो लेकिन इसने उनके लिए उत्प्रेरक का काम तो किया ही है। पंजाब में सत्ताधारी दल जिस तरह से भुल्लर की आवभगत कर रहा है, राज्य से चार सांसद लोने वाले आम आदमी पार्टी के कुछ नेता सरेआम खालिस्तान के पक्ष में नारेबाजी करते रहे हैं, इससे साफ जाहिर है कि राज्य में कुछ अपराधियों, कुछ विघ्नसंतोशियों व कुछ देशद्रोहियों को एकजुट कर जहर घाोलना कतई कठिन नहीं है। अभी समय है और साधन भी वरना पंजाब जैसे तरक्कीपसंद, जीवट वाले राज्य को फिर से आतंकवादियों का अड्डा बनने से रोका जाना आसान भी है और जरूरी भी।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं