कहते है पौष पूर्णिमा पर सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। फिर वरुण देव को प्रणाम कर किसी पवित्र नदी या फिर कुंड में डुबकी लगाएं और सूर्यमंत्र के साथ सूर्यदेव को अघ्र्य दें। इसके बाद किसी ब्राह्मण या गरीब को भोजन कराएं, साथ ही तिल, गुड़, कम्बल और ऊनी वस्त्र का दान करें।
पवित्र संगम की पवित्र रेती पर लगे अध्यात्म, आस्था और आनंद के महामेले के दूसरे महास्नान की शुभ बेला आ गयी। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का दिन खास माना जाता है मगर पौष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। मोक्ष की कामना रखने वालों के लिए यह स्नान पर्व खास है। इस तिथि को सूर्य और चंद्रमा का संगम भी कहा जाता है।
पौष का महीना सूर्यदेव का होता है और पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। चंद्रमा के साथ पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है।धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि पौष पूर्णिमा बाकी आम पूर्णिमा से इसलिए खास होती है, क्योंकि यह मोक्ष दिलाती है। इस दिन किये गये जप-तप का महत्व तो है ही, साथ ही दान खासतौर पर महत्वपूर्ण होता है। इस बार पौष पूर्णिमा को लेकर श्रद्धालुओं में कुछ संशय है। दरअसल, इस बार पूर्णिमा 20 जनवरी को शुरू हो जाएगी और यह 21 जनवरी तक चलेगी। ऐसे में लोग कंफ्यूज सा हैं कि आखिर पूर्णिमा के स्नान, ध्यान और दान का सही समय क्या है।
ज्योतिषाचार्य ने जो इसका समय बताया है, उसमें कुछ भिन्नता है। वैसे, माना यह गया है कि पौष पूर्णिमा 20 जनवरी को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट से शुरू होगी और 21 जनवरी को 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। ऐसे में स्नान-दान के लिए 21 जनवरी को शुभ माना गया है। एक अन्य अन्य स्थान पर उल्लेख मिलता है कि पूर्णिमा का मान 20 जनवरी को एक बजकर 25 जनवरी को लगेगी और यह अगले दिन 21 जनवरी को 11 बजकर 15 मिनट तक व्याप्त रहेगी।
ज्योतिषाचार्य का मानना है कि पौष पूर्णिमा 20 जनवरी को दोपहर एक बजकर 24 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 21 जनवरी को पूर्वाह्न 11 बजकर 18 मिनट तक रहेगी। उधर, ज्योतिषाचार्य पं. गिरिजा शंकर शास्त्री पौष पूर्णिमा की शुरुआत 1.30 बजे से बताते हैं। उनका कहना है कि 21 जनवरी को ब्रह्म मुहूर्त में मकर राशि सूर्य में प्रवेश कर जाएगा और इस दिन उदया तिथि है, इसलिए स्नान, ध्यान और दान ब्रह्म मुहूर्त से शुरू होकर दिनभर चलेंगे। पौष पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान का विधान बताया गया है।
मान्यता है कि आस्था की एक डुबकी मोक्ष तो दिलाती ही है, कई तरह के पापों से भी मुक्ति दिलाती है। माना गया है कि इस दिन चंद्रमा को नामित व्रत करने से चंद्रमा का विपरीत प्रभाव कम हो जाता है। पौष पूर्णिमा पर प्रयागराज के पावन संगम और वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर डुबकी लगाना शुभ और पवित्र माना गया है। इसके अलावा इस दिन हरिद्वार, गंगासागर के साथ मोक्षदायिनी गंगा में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा को ही मां भगवती दुर्गा जी के शाकम्भरी स्वरूप का जन्म हुआ था, इसलिए इसे शाकम्भरी पूर्णिमा भी कहा गया है।
बहरहाल, पौष पूर्णिमा पर पवित्र संगम में डुबकी लगाने की लालसा लिए श्रद्धालुओं की आमद शनिवार शाम से ही हो शुरू हो गयी और रविवार को जैसे-जैसे रात गहराती गयी, वैसे-वैसे उनकी तादाद में इजाफा होता गया। मेला प्रशासन का अनुमान है कि पौष पूर्णिमा पर कोई 55 लाख तीर्थयात्री यहां स्नान को पहुंचेंगे लेकिन जिस तरह भीड़ बढ़ती दिखी, उससे साफ लग रहा है कि प्रशासन के अनुमान से ज्यादा यहां श्रद्धालुओं की आमद हो सकती है। तमाम स्नानार्थियों ने एक हाथ में झोला या बैग संभाल रखा था तो दूसरे हाथ से मोबाइल से सेल्फी ले रहे थे। चेहरे पर मुस्कान लिए हर उम्र के श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचते ही सबसे पहला काम इंस्ट्राग्राम, ट्विटर और फेसबुक पर स्टेटस अपडेट किया। कुंभ की दिव्यता और भव्यता को देखकर वे हैरान सा दिखे। रात में कई लाख दूर-दराज से आये श्रद्धालु डेरा जमा चुके हैं। यहां की रात बहुत दिव्य और सुख पहुंचाने वाली है।
संत-महात्माओं के शिविर में सत्संग चल रहे थे। वे पौष पूर्णिमा के स्नान-ध्यान और दान का महत्व का बखान करते रहे। देर रात लाखों श्रद्धालु संगम नोज और उसके आसपास नजर आये। एलईडी की रंग-बिरंगी रोशनी से नहायीं गंगा की लहरों को लोग निहारते ही रह गये। जैसे-जैसे रात गहराती गई, कुंभ मेले की दिव्यता बढ़ती गई। इस बार के कुंभ के इफरात रंग हैं। कुंभ मेले की इस बार गजब ब्रांडिंग हुई है। इस वजह से देश-दुनिया के लाखों लोगों में इसको लेकर उत्सुकता बढ़ी है।