जी के चक्रवर्ती
किसान आंदोलन को रोकने या खत्म करने के लिये वास्तव में केंद्र सरकार क्या चाह रही है? या क्या कर रही है? यह बात सभी के समझ से दूर है। बीते साल 20 और 22 सितम्बर को भारत की संसद ने कृषि संबंधी तीन विधेयकों को पारित किया था और 27 सितंबर को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन विधेयकों को मंजूरी दे दी, जिसके बाद से देश मे यह तीनों क़ानून बन गए। इन क़ानूनों के प्रवाधानों के विरोध में देश की राजधानी के सीमा पर किसानों द्वारा धरना-प्रदर्शन किया जा रहा हैं।
पिछले 25 नबम्बर से दिल्ली की सीमा पर पंजाब, यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा एवं कुछ दूसरे राज्य के किसानों का सम्मिलित होकर धरना प्रदर्शन खुले आसमान के नीचे इस कड़कती हुई ठंडक और बारिश में लगातार जारी रखे हुये हैं।
इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच अभी तक कई दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन जिसमे कोई भी नतीजा नहीं निकला और फिलहाल अभी भी हल निकलता नजर नहीं आ रहा है।
तो सभी को पता है कि किसान द्वारा तीनों क़ानून को वापस लेने की मांग लगातार की जा रही है जबकि केंद्र सरकार क़ानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों में संशोधन करने की बात कर रही है आखिर सवाल उठता है कि जब सरकार इस बिल के कुछ विवादास्पद मुद्दों को स्वीकार कर रही है तो केंद्र सरकार ऐसे विवादास्पद मुद्दों को कृषि बिल के पास करने से पहले ही उसे बिल से क्यों नही हटाया गया? उस पर तुर्रा यह कि सरकार अभी भी दावा कर रही है कि नए क़ानूनों से किसानों का कोई नकुसान नहीं होगा। ऐसे में पुनः यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसी वह कौन सी वजह थी जिसके कारण कृषि बिल को आनन- फानन में पास कराने की आवश्यकता पड़ी?
जाकर कहते हैं कि यदि कृषि बिल को पास करने से पहले ही देश के किसान नेताओं एवं अर्थशास्त्रियों से सलाह करके इस बिल को पास किया जाता तो शायद आज इस स्थिति की नौबत ही नही खड़ी होती।
जहां एक तरफ कुछ किसानों ने इस धरना प्रदर्शन में अपनी जान तक गवां दी ऐसे में उनके मृतक किसानों के लिये मात्र श्रद्धांजलि अर्पित कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेना मौजूदा सरकर द्वारा औपचारिकता भर ही कहलायेगा। ऐसे में यह पार्टी अपने को पाक-साफ नही कह सकती और जहां तक प्रधानमंत्री के अभी तक के सभी तरह के किये गये अच्छे निर्णयों पर एक कृषि बिल ने पानी फेर कर रख दिया। अब यदि सरकार इस बिल को वापस भी ले लेती है तो भी वह अपने आप को कभी सही साबित नही कर पायेगी।
सरकार का यह कहना कि हम मंडियों में सुधार करने के दृष्टिकोण से कृषि कानूनों को लेकर आये हैं, लेकिन यदि सच कहा जाये तो इन कानूनों में कहीं पर भी मंडियों के समस्याओं की सुधारे जाने जैसी बातों का उल्लेख तक नही मिलता है। ऐसे में किसानों द्वारा किये जा रहे धरना-प्रदर्शन कर कृषि बिल को वापस लेने की मांग को गलत नही कहा जा सकता है। फिलहाल समस्या का हल निकलना बेहद जरुरी है !