व्यंग्य: अंशुमाली रस्तोगी
मुझे ‘टिक-टॉक’ की इतनी भर खबर है, जितनी एक पड़ोसी को दूसरे पड़ोसी की रहती है। मैं ‘टिक-टॉक’ से संचालित दुनिया में रहता जरूर हूं पर इसके असर से अनजान हूं। यह ठीक उसी तरह से है, जैसे आपके सोशल मीडिया पर हजारों की संख्या में मित्र रहते हो पर पड़ोस में आपके कौन रहता है, यह आपको पता नहीं होता।
अक्सर कभी बातचीत में कोई मित्र मुझसे ‘टिक-टॉक’ पर होने के बाबत पूछता है तो मैं साफ मना कर देता हूं कि मैं इस पर नहीं हूं। उस वक़्त मित्र के चेहरे का रिएक्शन कुछ ऐसा होता है मानो- मैंने यहां न होकर बहुत बड़ा ‘पाप’ कर दिया है।
ऐसा ही पाप मैंने तब भी किया था, जब एक मित्र से मेरा फेसबुक पर खाता न होने की बात कही थी। तब मित्र ने मुझे बेहद गरियाया था। बोला था- ‘तुम फेसबुक पर नहीं हो। कितने बड़े मूर्ख हो। आज तो हर कोई फेसबुक पर है। यहां होना स्टेटस सिंबल जैसा है। समझे’। तब मैंने हां में सिर हिलाकर इस पर आ जाने का वायदा किया था। बाद में आना ही पड़ा।
लेकिन ‘टिक-टॉक’ पर मैं चाहकर भी नहीं आ पा रहा। इससे मेरे मन में गहरा अपराधबोध घर करने लगा है। प्रायः अपराधबोध इतना बढ़ जाता है कि मैं कई-कई दिनों तक मोहल्ले में नहीं निकलता। क्या पता कोई मुझे सवाल ही कर बैठे कि ‘तुम टिक-टॉक’ पर आए की नहीं? उस वक़्त मेरे पास बगलें झांकने के सिवाय दूसरा रास्ता न होगा।
जो लोग ‘टिक-टॉक’ पर हैं, उनकी दीवानगी को मैंने देखा है। दिन-दिन भर उस पर अपना तरह-तरह की आवाजों-हरकतों के साथ वीडियो बनाते रहते हैं। बच्चे तो बच्चे बूढ़ों को भी मैंने ऐसा करते देखा है। यह तो मैं नहीं जानता ऐसा कर उन्हें क्या सुख मिलता होगा। पर कोई न कोई सुख तो जरूर ही मिलता होगा, जो वे यह सब करते हैं।
किसी को क्या दोष दूं, खुद मेरे घर में हर कोई ‘टिक-टॉक’ पर लगा रहता है। बीवी ने मुझे कई बार टोका कि तुम इस एप्प को मोबाइल में डाल लो। हम दोनों साथ में इस पर वीडियो बनाकर दोस्तों को शेयर किया करेंगे। और तो और अब तो यह कमाई का साधन भी बनता जा रहा है।
बीवी को ‘हां’ में सिर हिलाकर टालने की कोशिश करता हूं। साफ मना नहीं कर सकता न, नहीं तो रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। और यह मैं चाहता नहीं।
एक ‘टिक-टॉक’ ही नहीं इस जैसी जाने कितनी और एप्प हैं जो युवाओं को दीवाना बनाए हुए हैं। हर कोई अपने मजे किसी और से नहीं बल्कि खुद ही ले रहा है। किसी जमाने में अपना कार्टून बना देख लोगों को शर्म आती थी। आज आलम यह है कि किस्म-किस्म के चेहरे-मोहरों के साथ बंदा जब खुद को मोबाइल पर देखता है तो खुशी से फूला नहीं समाता।
एक मेरे जैसे इंसान है, जो न ‘टिक-टॉक’ पर हैं न ‘इंस्टाग्राम’ पर। मुझ जैसों को तो कहीं जाकर डूब मरना चाहिए। दुनिया इतनी तेजी से एप्प की शरण में जा रही है लेकिन मेरे जैसे आज भी खुद तक ही सीमित बने हुए हैं। लानत भेजिए मुझ पर।
जिस तेजी से ‘टिक-टॉक’ ने खासो-आम के बीच बड़ी जगह बनाई है मुझे यकीन है आगे आने वाले समय में पैदा होते ही बच्चा सबसे पहले खुद को इसी पर देखना चाहेगा। या यह भी हो सकता है कि बच्चा पैदा होते ही लोग शगुन के तौर पर मां-बाप को इसकी एप्प से बने वीडियो भेंट करें।
मैं आने वाले समय को बहुत एडवांस होते हुए देख रहा हूं। आगे चीजें ऐसी आएंगे कि हम अपने दांतों तले उंगलियां ही नहीं शायद जीभ को ही चबा डालें।
मैं ‘टिक-टॉक’ पर कब अवतार लूंगा नहीं जानता। पर जो लोग इस पर लगे रहते हैं, उन्हें यह करिश्मा मुबारक।