अकस्मात कहीं पर
सुख और दुःख की
मुलाकात हो गयी।
दुःख ने सुख से कहा
‘तुम कितने भाग्यशाली हो,
जो लोग तुम्हें पाने की
कोशिश में लगे रहते हैं…’
सुख ने मुस्कराते हुए कहा
‘भाग्यशाली मैं नहीं तुम हो…!’
दुःख ने हैरानी से पूछा –
‘वो कैसे?’
सुख ने दु:ख को जवाब दिया
‘ तुम्हें पाकर लोग
अपनों को याद करते हैं,
लेकिन मुझे पाकर सब
अपनों को भूल जाते हैं।’
– गौरव मिश्रा