छठ का पर्व सामाजिक मान्यताएं
छठ पर्व पहले पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वीछठ पर्व उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता था, लेकिन आजकल अब इसे पूरे देशभर में मनाया जाने लगा है। पूर्वी भारत के लोग जहां कहीं भी रहते हैं, वहीं इसे पूरी आस्था से मनाते हैं।
हिन्दू धर्मालंबियों में छठ पूजा एक चार दिवसीय उत्सव है। जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी के दिन समापन होता है।
हिंदुओं का प्रमुख त्योहार छठ महापर्व 31 अक्टूबर से शुरू हो चुका है। चार दिनों तक चलने वाला इस महापर्व का प्रथम दिन नहाय खाय के साथ शरू होता है और अगले चार दिनों तक भगवान सूर्य देव और छठ मइया की विधिवत पूजा अर्चना करने का प्राविधान है। इस पर्व की प्रमुख आकर्षण रौनक बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं हमारे पड़ोसी देश नेपाल में इस दिन पूजा अर्चना करते लोगों को देखा जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा करने से छठी मैया के प्रशन्न होने पर इंसानो के सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि विभिन्न नामों से पुकारा व मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाये जाने का प्रचलन है।
छठ पूजन की तारीखें:
31 अक्टूबर – नहाय-खाय
1 नवंबर – खरना
2 नवंबर – सायंकालीन सूर्यअर्घ्य अर्पण करना
3 नवंबर – प्रातः कालीन सूर्यअर्घ्य अर्पण करना
छठ का पहला दिन- छठ पूजा के प्रथम दिन यानिकि कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय से प्रारंभ होती है। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण कर शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। व्रती व्यक्ति के भोजन करने के पश्चात घर के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
छठ का दूसरा दिन- यह दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी का होता है और इस दिन व्रत किया जाता है। इस दिन व्रती दिन में केवल एक बार यानिकि सायं के वक्त भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने वाला पूरे दिन निर्जला रह कर व्रत का पालन किया जाता हैं तत्पशयचात शाम के समय चावल एवं गुड़ की खीर बनाकर ग्रहण खाया जाता है। चावल के पिट्ठे एवं घी लगी हुई रोटीयां ग्रहण करने के पश्चात बाकी के अवशेष को प्रसाद के रूप में लोगों में वितरीत कर दिया जाता है।
छठ का तीसरा दिन- यह दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी का होता है और इस दिन को भी पूरे दिन निर्जला व्रत रखने का प्रावधान है। छठ पूजा अर्चना करने के पश्चात प्रसाद तैयार कर सब लोगों में वितरित किया जाता हैं। इस दिन व्रत रखने वाला संध्या समय किसी नदी, तालाब के पानी में खड़े होकर अस्त होते हुये सूर्याअर्घ्य देते हैं और इस दिन रात भर जागरण करना पड़ता है।
छठ अन्तिम चौथे दिन- इस दिन यानि कि कार्तिक शुक्ल सप्तमी की प्रातः काल पोखर या नदी के पानी में खड़े होकर उदित सूर्याअर्घ्य दिये जाने का प्राविधान है। सूर्याअर्घ्य देने के पश्यचात व्रती खड़े होने के स्थान का सात बार परिक्रमा करके एक दूसरे को प्रसाद देने के पश्चात व्रत का समापन किया जाता है।
वैसे तो छठ पूजा से जुड़ी हुई अनेकों कथायें प्रचलित है उनमे से एक जो राम-सीता से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने भी सूर्य देवता की आराधना की थी। इस कथा के अनुसार श्रीराम और माता सीता जब 14 वर्ष का वनवास से लौटे थे, तब सीता जी ने इस व्रत को किया था। पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान राम सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता सूर्य देव थे। इस कथा के अनुसार रावण वध के बाद जब राम और सीता अयोध्या लौटने लगे तो पहले उन्होंने सरयू नदी के तट पर अपने कुल देवता सूर्य की उपासना करने का निश्चय किया और व्रत रखकर अस्त होते सूर्य की पूजा की थी। वह तिथि कार्तिक शुक्ल की षष्ठी थी। राजा राम के द्वारा इस पूजा को करने के बाद से अयोध्या की प्रजाओं ने भी यह पूजन करना प्रारम्भ कर दिया। उसी समय से हमारे यहाँ भी छठ पूजन की परम्परा की शरुआत हुई।
छठ पर्व में प्रयोग होने वाले सामग्रियों का महत्व:
छठ की पूजा में बांस एवं बांस की बनी टोकरी का विशेष महत्व होता है। वैसे भी हिन्दुधर्मांलम्बियों में बांस को आध्यात्म से जोड़ कर देखा जाता इसलिये इसे शुद्ध माना जाता है। छठ पूजा अर्चना में ठेकुआ (ठेकुआ बनाने के लिए मुख्य रूप से गेहूं के आटे, चीनी या गुड़ और घी का प्रयोग किया जाता है। स्वाद और सुगन्ध को बढ़ाने के लिए इलायची और नारियल के बुरादे का उपयोग भी किया जाता है।) को प्रसाद के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस प्रसाद के बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है। छठ की पूजा में गन्ने का भी विशेष महत्व है। सूर्यअर्घ्य देते वक्त पूजा अर्चना की सामग्रीयों में गन्ने का होना परम आवश्यक मान जाता है। कहा जाता है कि यह छठी मैय्या को बहुत प्रिय है।
1. व्रती छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें।
2. छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर ही सोएं।
3. व्रती और घर के सदस्य छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली का सेवन न करें।
4. पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें।
5. छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें।
इस तैयोहार से जुड़ी कई कथाएं एवं मान्यताएं हैं। इन्हीं कथाओं में से एक दूसरी कथा के अनुसार देवासुर संग्राम में जब देवताएं परास्त हो गये तब देव माता अदिति ने पुत्र प्राप्ति के लिए जंगलों में छठ मैया की पूजा अर्चना की थी। उनके इस पूजा अर्चना से प्रसन्न होकर छठ मैया ने आदिति को एक पराक्रमी पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। उसके पश्चात छठ मैया की देन स्वरूप इस पुत्र ने सभी देवतागणों को विजयश्री दिलाई थी। तभी से ऐसी मान्यता चली आ रही कि छठ मैया की पूजा-अर्चना करने से सभी मनुष्यों के दुखों का निवारण होता है और संतान की प्राप्ति होती है।
1. छठ पर्व के दिन व्रत रखने वाला चारों दिन नए कपड़े पहनते हैं।
2. छठ पूजा के चारों दिन व्रत धारण काने वाला व्यक्तिबजमीन पर ही सोते है।
3. व्रती और घर के सदस्य को छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली इत्यादि का सेवन वर्जित है।
4. पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है।
5. छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना का विशेष ध्यान रखा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजन पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सर्वप्रथम सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा किये जाने से इसकी शुरूआत हुई थी। कर्ण भगवान सूर्य के पुत्र होने के कारण उनके परम भक्त थे। वह प्रतिदिन गंगा नदी घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य के आशीर्वाद और कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बने। उसी समय से आज तक छठ में सूर्यअर्घ्य दान की यही परंपरा चली आ रही है।
वैसे तो हिन्दुधर्मालम्बियों मे अनेको व्रत रखने उपासना करने और त्यौहार मनाने की परम्परा वर्षों से चली आ रही है लेकिन सभी तरह के व्रतों में से छट पूजा की व्रत अबसे कठिन माना जाता है।
– संकलन: जी के चक्रवर्ती