प्रेरक कहानी: राहुल कुमार गुप्ता
किसी भी क्षेत्र में सतत संघर्ष, ईमानदार संघर्ष आपको उस क्षेत्र के शिखर तक जरूर लेकर जाता है। सफलता और असफलता का दौर प्रत्येक के जीवन में जीवन पर्यन्त बना रहता है कहीं कम कहीं ज्यादा। लेकिन अपने क्षेत्र में अपने संघर्षों के कारण शिखर चूमना एक आत्म संतुष्टि का बोध जरूर कराती है। यह आत्म संतुष्टि सबके लिए उपलब्ध है लेकिन सबके लिए दुर्गम भी। कुछ खास लोगों को ही ऐसी उपलब्धि हासिल होती है।
आपका जीवन स्वस्थ खुशहाल और संयमित होना चाहिए। समाजिक प्राणी होने के नाते समाज में एक दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना भी होनी चाहिए। जिससे स्वस्थ समाज के निर्माण को संबल मिलता रहता है।
रजनीश और सोमरतन गुप्ता। दो छोटे से बच्चे। डेढ़ दो दशक पहले उनके संघर्षों की कहानी यूपी के बांदा जिले के एक कस्बे बबेरू से शुरू होती है। बबेरू के सभी बाशिंदे व आस पास के कई इलाकों के कई लोग भी सोमरतन वह रजनीश के संघर्षपूर्ण जीवन से चिर परचित जरूर हैं। बचपन से ही बसों में पानी के पाउच, गुटखा बेच-बेच कर उन्होंने अपना बचपन खोकर बचपन को एक युवा की तरह ही जिया। अपने परिवार की जिम्मेदारियों का कंधा वो बचपन से ही उठाने लगे। साथ में उन्होंने पढ़ाई भी पूरी की। सोमरतन ने बताया कि इस वर्ष उसका ग्रेजुएशन पूरा हो जाएगा। व्यवहार शैली में भी वो कुशल है।
सोशल मीडिया में पूर्ण रूप से सक्रिय। आज सोमरतन और उसके बड़े भाई रजनीश ने बबेरू में बांदा रोड में बस स्टाप के पास अपनी खुद की एक बड़ी ब्रेकरी शाप, आइसक्रीम और कोल्डड्रिंक की शाप खोल रखी है। अपनी मेहनत और व्यवहार कुशलता के चलते बेहतरीन तरीके से अपनी दुकान चला रहे हैं। पूर्व में कुछ गलतियां भी हुईं लेकिन उनसे सीख ले, वो प्रगति पथ पर निरंतर अग्रसर हैं।
ईमानदारी और मेहनत का कोई काम छोटा नहीं।
संघर्षों के बाद ही आता निखार इसमें कोई धोखा नहीं।।