जी के चक्रवर्ती
पहले गलवान घाटी और फिर डोकलाम में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय क्षेत्र में ज़मीन हथियाने के इरादे से घुसे चीनी सैनिकों को भारतीय सीमा पर मौजूद सैनिकों ने कटीले तार लिपटे लाठि- डंडों से पीट- पीट कर भगा जरूर दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि चीन की इस तरह की हरकतों को भारत कब तक बर्दाश्त करता रहेगा?
एक लम्बे समय से चीन की निगाहें भारतीय एलएसी पर रही हैं, लेकिन अरूणाचल प्रदेश के तवांग जिले को लेकर उसका मंसूबा हमेशा से कुछ ज्यादा ही तल्ख़ रहा है ऐसा क्यों?
दरअसल यहां आपको बता दें कि युद्ध-नीति-विषयक जानकारों का कहना है कि वर्ष 1962 में जब चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ था, उस वक़्त चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के आधे से भी अधिक भू भाग पर कब्ज़ा कर लिया था, लेकिन ठीक उसी समय चीन ने एकतरफ़ा युद्ध विराम घोषित कर मैकमोहन रेखा से पीछे वापस लौट गई थी।
Kudos to the #IndianArmy for thwarting Chinese PLA’s attempts to invade India’s territory! India must never allow the Chinese to even gain an inch. India does not share a border with China; India shares borders with East Turkistan & Tibet. Go home China!
pic.twitter.com/F19LncrOgD— Salih Hudayar (سالىھ خۇدايار) (@SalihHudayar) December 13, 2022
चीन आज तक अक्सर यही कहता रहता है कि वो अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता क्योंकि यह इलाक़ा उसके ‘दक्षिणी तिब्बत का इलाका है। यही कारण है कि तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा हों या फिर भारत के प्रधानमंत्री के अरुणाचल दौरे पर जाने की बात पर चीन आपत्ति उठाता रहता है।
शायद चीन इस मामले को आजतक भूला नहीं पाया और वह जब-तब अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहता है तो फिर सवाल है कि आख़िरकार वह वर्ष1962 की लड़ाई के दौरान इस इलाके के सीमा रेखा से पीछे क्यों हटा?
वहीं जब हम अपने देश के राजनीतिक पार्टियों से लेकर नेताओं की बात करें तो चीनी घुसपैठ को लेकर स्वयं हमारे देश के राजनीतिक पार्टियों से लेकर उनके नेताओं के मध्य मतैक्य नही है, बल्कि ऐसे समय में तो देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को एक जुटता का परिचय देते हुए जोरदार विरोध करना चाहिए था लेकिन इसके स्थान पर चीन के पक्ष में नरमी के रुख की प्रदर्शन होने से वह पार्टी किसी अन्य देश की पार्टी दिखने लगती है। इस बात से तो यह स्पष्ट होता है कि चीन और अन्य भारत विरोधी शक्तियां कहीं इसी आपसी फुट का लाभ उठा कर भारत को कमजोर करने में न लग जाये।
जहां तक कांग्रेस के साथ विपक्षियों द्वारा संसद में सरकार को कठघरे में खड़ा करने की उसकी कोशिशो से जहां दुनिया और विशेष रूप से चीन को कोई सख्त और स्पष्ट संदेश नही जाएगा।
भारत चीनी घुसपैठ को लेकर आपसी मत एक नहीं है। यह बड़ी विचित्र और दुःख की बात है कि जब देश के सभी राजनेताओं से लेकर जनता सभी को एकजुटता का परिचय देना चाहिए, लेकीन उसके स्थान पर सब कुछ विशेषकर राजनीतिक पार्टियां बिखरी हुईं ही नजर आ रही है, जबकि देश के राजनीतिक नेतृत्व को एकजुटता का प्रदर्शन करना चाहिए था, तो वहीं वह बिखरा हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि चीन व अन्य भारत विरोधी शक्तियां इसका लाभ उठाने की कोशिश करने लगे तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं। लेकिन संसद में सरकार को कठघरे में खड़ा करने की उसकी कोशिश से दुनिया और विशेष रूप से चीन को कोई सही संदेश नही जाएगा।
ऐसे सभी परिस्थितियों में सत्तापक्ष के साथ विपक्ष को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि कहीं आपसी राजनीति के चक्कर मे कहीं विश्व समुदाय को ऐसा संदेश नही चला जाये कि भारत चीन से निपटने को लेकर स्वयं आपस मे मतैक्य नहीं है।
हां यहां निःसंदेह तंवाग में चीनी सैनिकों के साथ हुई मुठभेड़ वाली बात को लेकर विपक्ष के कुछ प्रश्न हो सकते हैं इसका अर्थ यह कदापि नहीं होना चाहिए कि संसद में सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करने वालीं बात से दुनिया और विशेष रूप से चीन को कोई सही व कड़ा संदेश तो नही जाएगा जबकि तवांग में चीनी सेना के साथ झड़प के बाद देश-दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं कि भारत इस पर क्या रुख अख्तियार करेगा, ऐसे में चीन से निपटने को लेकर संसद में हंगामा खड़ा करना किसी भी द्रष्टिकोण से सही नहीं कहा जा सकता है।