जी के चक्रवर्ती
आज चीन और यूरोपियन देशों बिजली संकट से जूझ रहे हैं तो वहीं भारत मे भी बिजली संकट गहराने की ओर अग्रसर है। बता दें कि इस समय चीन अभूतपूर्व बिजली के संकट का सामना कर रहा है वैसे इसके लिए चीन स्वमं ही जिम्मेदार है क्योंकि चीन का ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार संघर्ष चल रहा है। चीन पहले से ही आस्ट्रेलिया से अपने देश के बिजली घरों के लिये कोयला खरीदता रहा है लेकिन इस बार चीन ने ऑस्ट्रेलिया को सबक सिखाने के उद्देश्य से उसके कोयले को नहीं खरीदा, वहीं कोयले से लदी ऑस्ट्रेलियाई मालवाहक जहाजें चीनी बंदरगाहों पर खड़ी चीन की ओर से कोयले खरीद की हामी भरने का इंतजार कर रही थी इस तरह ऑस्ट्रेलिया को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा था तो ऐसे में भारत ने ऑस्ट्रेलिया से 20 लाख टन कोयला खरीदकर अपने मित्र देश को राहत की सांस दी तो दूसरी ओर भारत द्वारा इस कोयले को खरीदकर चीन को एक करारा झटका दिया है।
चूंकि भारत सम्पूर्ण विश्व मे कोयला उत्पादक देशों में 5 नम्बर पर होने के बावजूद अपने कोयले से चलने वाली बिजली संयंत्रों के लिये विदेशों से कोयला आयात करता है।
आप लोगों को शायद याद होगा कि 1979 में काला पत्थर नाम से एक हिन्दी फिल्म का निर्माण हुआ था। इस फिल्म की कहानी धनबाद में वर्ष1975 के चासनाला के खान दुर्घटना से प्रेरित थी। वैसे यहां इस फिल्म की बात को एक उदाहरण के तौर पर उद्धत करने के लिये उठाया गया है। लेकिन स्थिति कुछ वैसी ही बन रही है।
भारत में कोयला खनन का कार्य ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने वर्ष1774 में दामोदर नदी के पश्चिमी छोर पर बसे रानीगंज में कोयले का वाणिज्यिक खनन आरम्भ किया था। जो कि आज भी विधिवत जारी है। इसके बाद से लगभग एक शताब्दी तक कोयला खनन का कार्य अपेक्षाकृत धीमी गति से चलता रहा क्योंकि कोयले की मांग उस समय तक बहुत अधिक नही थी लेकिन जब वर्ष1853 में सर्वप्रथम भाप से चलने वाली इंजन गाड़ियों के संचालन का सिलसिला शुरू हुआ तो देश मे कोयले की मांग बढ़ने लगी ऐसे में खनन कार्य को प्रोत्साहित किया गया जिसके फलस्वरूप देश मे कोयले का उत्पादन लगभग 1 मिलियन मेट्रिक टन प्रति वर्ष हो गया। वर्ष1946 तक आते-आते कोयले का उत्पादन 30 मिलियन मेट्रिक टन हो गया। भारत में विश्व का 4.7% कोयले का उत्पादन होता है।
आज देश में कोयले की कमी के कारण बिजली संयंत्रों से पर्याप्त बिजली उत्पादन नही हो पा रहा है जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है। यह चिंता उस समय और भी अधिक हो जाती है, जब देश के कई हिस्सों में बिजली की किल्लत पैदा होने की दशा में उधोग-धंधे प्रभावित होते हैं। देश मे कहीं-कहीं तो अभी भी बिजली की किल्लतो से बिजली कटौती का दौर चल रहा है।
अब एक ऐसे समय में जब देश की अर्थव्यवस्था ने थोड़ी सी रफ्तार पकड़ना शुरू किया था तो वहीं त्यौहारों के कारण बिजली की मांग बढ़ना स्वाभाविक है, एसे में उसकी कमी दूर करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने पड़ेंगे। यदि देश मे कोयले की कमी जल्दी दूर नहीं हुई और कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत बिजली पैदा करने वाले कोयला आधारित बिजली संयंत्र कोयले के अभाव में या तो कम उत्पादन करेंगे या पूरी तरह बन्द हो जाएंगे।
कोरोना के बाद से अर्थव्यवस्था पर तो बहुत बुरा प्रभाव पड़ा ही हैं तो वहीं पर साधारण जनजीवन भी प्रभावित हुआ है एसे में यदि कोयले की कमी के मामले में इस समय हम नही जागे तो आगे आने वाले दिनों में कठिन परिस्थिति से गुजरने वाली बात से इन्कार नही किया जा सकता है। यहां यह समझना बहुत कठिन है कि जब हमारे देश के उच्च पदों पर बैठे लोगों को एक अर्सा पहले ही यह स्पष्ट हो गया था कि आने वाले समय में बिजली की मांग बढ़ेने से कोयले की कमीयों के कारण बिजली संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि पहले से ही अग्रिम कोयला भंडारण क्यों नहीं किया गया कि कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र को कोयले की कमी का सामना न करना पड़े? जब एक ओर अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के दावे किए जा रहे थे, तब यह क्यों नहीं समझा गया कि ये दावे तभी पूरे हो सकेंगे जब देश में बिजली की मांग के अनुरूप बिजली उत्पादन हो सके?
इस समय यह मुद्दा अलग है कि हमारे देश मे वर्षा जल भराव एवं अन्य कारणों से कोयला खदानों से अपेक्षित मात्र में कोयले खनन नहीं हो पाने से कोयले की कमी होना स्वाभाविक सी बात है लेकिन क्या देश मे कोई यह देखने वाला नहीं है कि इससे बिजली संयंत्रों के सामने बहुत बड़ा संकट पैदा होने की स्थिति में हम क्या करेंगे?
यहां यह भी प्रश्न है कि क्या बारिश इसी वर्ष हुई है? आखिरकार इस बार ही हमे इसकी कमी का सामना क्यों करना पड़ा रहा है? वैसे इस बार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले के दाम बढ़ जाने से आयात में कमी जरूर आई है तो दूसरी तरफ देश में कोयले के कारण पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पाना इसकी मुख्य वजह है।
इस समय दुनिया में प्राकृतिक गैस के महंगे होने के कारण कोयला एवं पेट्रोलियम पदार्थो पर देश की निर्भरता बढ़ जाने से देश को ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ रहा है और यदि इस स्थिति पर शीघ्र लगाम नही लगा तो देश मे स्थिति और भी अधिक खराब हो सकती है।