रोज अजगर की तरह बढ़ती महंगाई से पस्त आम आदमी को फिलहाल राहत के आसार नहीं है प्राइवेट सर्विस में लोगों को घटती आए, या फिर नौकरी से हाथ धोना और उसके बाद घर चलाना कितना कष्टदायी बनता जा रहा है यह तो एक आम आदमी ही समझ सकता है।
वैसे तो महंगाई एक निरंतर चलने वाली अवधारणा है लेकिन जरूरत इस बात की होती है कि इसे नियंत्रण में रखा जाय। महंगाई को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कारण जिम्मेदार होते हैं जिनको नियंत्रण में रखने के लिए जरूरी कदमों को उठाया जाना जरूरी होता है। इस बात के अभाव में स्थिति नियंत्रणहीन हो जाती है और आम लोगों को परेशानियां उठानी पड़ती हैं जो किसी भी कल्याणकारी राज्य के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है। स्थिति यह है कि जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ते जा रहे हैं और इनको काबू में रखने के प्रयास बेकार साबित होते जा रहे हैं।
सहालग से पहले सरसों, रिफाइंड तेल से आटा, चीनी समेत सभी वस्तुओं के दाम करीब बीस फीसदी तक बढ़ गए हैं। मात्र दस दिनों के भीतर सरसों तेल, सोयाबीन 15 रुपए प्रति लीटर महंगा हो गया है। सूरजमुखी 30, पामोलीन 15 रुपए महंगा हो गया है जबकि सरसों का तेल 145-150 से बढ़कर 160-165 रुपए प्रति लीटर हो गया है।
सोयाबीन 130-140 से बढ़कर 145-155 रुपए प्रति लीटर हो गया है। आटा तीन रुपए, चीनी की कीमतों में दो रुपए प्रति किलो का इजाफा हो चुका है। कारोबारियों का कहना है कि रूस-यूक्रेन के बीच तनाव से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आई है। भारत में खाद्य तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर काफी निर्भर करते हैं। लिहाजा खाद्य तेलों में महीने भर में पंद्रह से तीस रुपए प्रति लीटर की तेजी है।
सबसे ज्यादा तेजी सूरजमुखी में 25 फीसदी की है। दस दिनों में आटा 3500 रुपए प्रति कुंतल हो गया है। खुले बाजार में गेहूं 2600 रुपए प्रति कुंतल से 2800 रुपए प्रति कुंतल हो गया है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए यह आवश्यक है कि कीमतों को काबू में रखने के उपाय किए जाएं।