गौतम चक्रवर्ती
सनद रहे छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवम्बर वर्ष 2000 के दिन हुआ था तब से यह भारत का 26वां राज्य बन गया। आज इस प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की भूपेश बघेल सरकार सत्तासीन है।
दरअसल पहले यह राज्य मध्य प्रदेश के अन्तर्गत आता था। वैसे ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ ‘चेदीशगढ़’ का अपभ्रंश है। ऐसा कहा जाता हैं कि किसी समय इस क्षेत्र में 36 गढ़ हुआ करते थे, इसीलिये इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। वैसे आपको बता दें कि देश में दो राज्य ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल दिया गया – जिनमे से एक तो ‘मगध’ जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण “बिहार” बन गया और दूसरा ‘दक्षिण कौशल’ जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण “छत्तीसगढ़” बनया गया है। छत्तीसगढ़ भारत का एक ऐसा राज्य है जिसे ‘महतारी'(मां) का दर्जा प्राप्त है।
इस समय देश के छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित “हसदेव जंगल” चर्चा का विषय बना हुआ है, इस बख्त प्रदेश की तस्वीरें सिर्फ देश में नही बल्कि विदेशों तक में भी सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल हो रहा है। इन तस्वीरों में हसदेव बचाओ जैसे नारे लिखे दिखाई दे रहे है। आखिरकार इसे बचाने के लिए आंदोलन क्यों हो रहा है ?
छत्तीसगढ़ में सत्तासीन सरकार द्वारा 6 अप्रैल 2022 को एक प्रस्ताव की मंजूरी देकर हसदेव क्षेत्र में स्थित परसा ईस्ट कोल ब्लॉक और केते बेसिन कोल ब्लॉक का विस्तार किया जा रहा है इस विस्तार करने को लेकर यहां पर फैले जंगलों की कटाई किया जाना है। जिसे लेकर यहां के निवासियों की माने तो उनका कहना है कि यहां लगभग 2 लाख पेड़ों की कटाई की जाएगी वहीं सरकारी आंकड़े के अनुसार लगभग 95 हजार पेड़ ही काटें जाएंगे लेकिन यहां के निवासियों द्वारा ‘चिपको आंदोलन’ के तर्ज पर इस बन कटाई को लेकर एक लंबे समय से विरोध प्रदर्शन कर रहे है। दरअसल छत्तीसगढ़ में फैले घने जंगलों वाले इस क्षेत्र में कोयले की खदानों का विस्तार किया जाना है जिसे लेकर यहां के स्थानीय लोग विरोध पर उतारू हो गये हैं।
कांग्रेस सरकार ने उद्योगपतियों के समर्थन में इस जंगली क्षेत्र में बसे आदिवासियों को उजाड़ने जैसा आदेश यहां की राज्य सरकार द्वारा दिया गया है। हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन अब हसदेव क्रांति का रूप ले लिया है। कोयला पाने की जिद्द में हसदेव के जंगलों को काटने का कुचक्र चलाया जा रहा है।
हमारे देश मे आधुनिकता और औद्योगिकीकरण से पहले ही प्रचुर मात्रा में बन जंगलों का सफाया किया जा चुका है। भारत के मध्यप्रदेश राज्य से सटा यह राज्य पूरे भारत मे ही नही बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर बन सम्पदा के लिये बिख्यात है। एक तरफ जहां हम अंतराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मान कर बनसम्पदा को सुरक्षित करने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ अपने निजी स्वार्थ और धन कमाने के उद्देश्य से अपने ही बन, जंगलों को काटने का आदेश देते हैं एसे में यह प्रश्न उठता है कि इस तरह का दोहरा चरित्र क्यों ?