मुलायम सिंह यादव की सीट रही मैनपुरी से समाजवादी पार्टी ने लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव को मैदान में उतारा है। इस सीट पर यादव परिवार से ही धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव जैसे नेताओं के नाम चर्चा में थे, लेकिन अखिलेश ने पत्नी डिंपल पर भरोसा जताया है। इस तरह नेताजी की खास विरासत को अखिलेश यादव अपने परिवार में ही बनाए रखेंगे।
यही नहीं डिंपल को जीत दिलाने के लिए समाजवादी पार्टी ने पूरी फील्डिंग भी सजा ली है। गुरुवार को डिंपल के टिकट का ऐलान हुआ है और उससे पहले बुधवार को पूर्व मंत्री आलोक शाक्य को मैनपुरी का जिलाध्यक्ष बनाया गया है। मैनपुरी जिले में कुल 17.4 लाख मतदाता हैं और इनमें से 7 लाख की संख्या यादव वोटरों की है। दूसरे नंबर शाक्य मतदाता हैं, जिनके करीब 3 लाख वोटर हैं। इस तरह अखिलेश यादव ने यादव बिरादरी के अलावा शाक्यों को भी साधने की कोशिश की है ताकि चुनावी जीत में सेंध की कोई आशंका न रहे। इससे पहले भाजपा ने 2019 के आम चुनाव में मुलायम सिंह यादव के मुकाबले प्रेम सिंह शाक्य को उतारा था, जिन्हें 4 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। वहीं मुलायम सिंह को 5 लाख ज्यादा मत मिले थे और जीत का अंतर 1 लाख से भी कम था।
माना जाता है कि भाजपा कैडिडेट को शाक्य वोटरों के अच्छे खासे वोट मिले थे। ऐसे में इस बार किसी भी तरह से वोट न बंट पाए, दम्पकी कोशिश अखिलेश यादव ने पहले से ही शुरू कर दी है। 2019 के आंकड़े को देखते हुए ही कहा जा रहा था कि मुलायम सिंह यादव के गढ़ को बनाए रखना इतना आसान भी नहीं है। हालांकि इस बार सपा को सहानुभूति का वोट भी मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा शाक्य जिलाध्यक्ष के जरिए शाक्यों के बीच भी पैठ की आस है। भाजपा इस साल की शुरुआत में ही सपा की गढ़ कही जाने वाली रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है। इसलिए सपा के लिए मैनपुरी जीतना अब प्रतिष्ठा का भी सवाल है। गौरतलब है कि डिंपल यादव ने पहली बार 2012 में संसद का रुख किया था। उन्होंने लोकसभा उपचुनाव में कन्नौज सीट से जीत हासिल की थी, जिसे सीएम बनने के बाद अखिलेश यादव ने छोड़ा था। इसके बाद 2014 के आम चुनाव में भी डिंपल को जीत मिली थी, लेकिन 2019 में वह भाजपा के ब्रजेश पाठक हाथों हार गई थीं।
अब यदि डिंपल यादव को मैनपुरी में विजय मिलती है तो उनकी लोकसभा में तीसरी पारी होगी। अखिलेश यादव ने डिंपल यादव को यहां से चुनावी मैदान में उतारकर परिवार के झगड़ों को तो खत्म किया ही हैं। साथ ही साथ चाचा शिवपाल यादव को भी साधने की कोशिश कर ली है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को अपने पास रखने का फैसला लिया है। तभी डिंपल यादव को मैनपुरी से चुनावी मैदान में उतारा गया है।
उन्होंने नहीं तो अपने किसी चाचा या चचेरे भाई को या भतीजे को टिकट दिया। उन्होंने साफ तौर पर इसे अपनी पत्नी को दिया है। कन्नौज में हार के बाद से डिंपल यादव के लिए समाजवादी पार्टी एक सुरक्षित सीट तलाश रही थी। मैनपुरी में यह तलाश भी पूरी होती दिखाई दे रही है। डिंपल यादव पहले कन्नौज से सांसद रह चुकी हैं। हालांकि, मोदी लहर में यह सीट भाजपा के पास चली गई और लगातार भाजपा ने वहां से दो चुनाव जीती हैं।
डिंपल यादव को राज्यसभा भेजने की भी तैयारी थी। लेकिन गठबंधन की मजबूरी की वजह से राज्यसभा सीट जयंत चौधरी को दी गई। लेकिन अब मैनपुरी सीट डिंपल यादव के लिए सुरक्षित भी है और मुफीद भी है। मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह यादव पहली बार 1996 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। तब से यह सीट यादव परिवार के ही पास रहा है। शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव में रिश्ते सामान्य नहीं है। अगर अखिलेश यादव किसी और को मैनपुरी से टिकट देते तो शिवपाल यादव भी यहां से अपना दावा ठोक सकते थे।
अपर्णा पर दांव लगा सकती है बीजेपी
लखनऊ। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर 5 दिसंबर को होने वाले उपचुनाव में बीजेपी अपर्णा यादव पर दांव लगा सकती है। अगर ऐसा होता है तो समाजवादी पार्टी की इस परंपरागत सीट पर नेताजी की दो बहुएं आमनेसामने होंगी। दरअसल समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को खड़ा किया है।
ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि बीजेपी मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को उम्मीदवार बना सकती है। अपर्णा यादव मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं। अपर्णा ने साल 2017 में लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वो बीजेपी की रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थी।
बाद में अपर्णा यादव ने बीजेपी का दामन थाम लिया। अपर्णा लखनऊ के सरोजनीनगर इलाके में जीव आश्रम नाम का एक एनजीओ चलाती हैं जहां गाय, भैंस और कुत्तों की देखभाल की जाती है। अपर्णा यादव के पिता पत्रकार हैं और पूर्व राज्य सूचना आयुक्त रह चुके हैं।