आज विश्व की प्रमुख समस्या जलवायु परिवर्तन है लेकिन विडंबना यह है कि तमाम प्रमुख देश इस मामले में अपने उत्तरदायित्व का ठीक से निर्वहन नहीं कर रहे हैं। इससे समस्या सुलझने की जगह पर और अधिक उलझती जा रही है। इस बारे में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व के अमीर देशों को कटघरे में खड़ा किया और साफ कहा है कि उन्होंने विकासशील देशों को आर्थिक मदद देने का वादा नहीं निभाया।
उन्होंने कहा कि भारत अपनी सभी नीतियों के केंद्र में जलवायु परिवर्तन को रख रहा है। प्रधानमंत्री ने ऋग्वेद की दो पंक्तियों का उदाहरण दिया जिनका अर्थ है कि सभी आपस में मिल बैठकर चर्चा करें। उन्होंने कहा हमें पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली को वैश्विक मिशन बनाना होगा। हमारे यहां दुनिया की सत्रह फीसदी आबादी है लेकिन उत्सर्जन में हमारा हिस्सा सिर्फ पांच फीसदी है और फिर भी हम आगे बढ़ रहे हैं। पीएम ने कहा कि भारत उम्मीद करता है कि विकसित देश वादे के मुताबिक जलवायु कोष में जल्द से जल्द सौ अरब डॉलर की राशि उपलब्ध कराएंगे।
उन्होंने जलवायु परिवर्तन को भारत सहित ज्यादातर विकासशील देशों के लिए चुनौती करार दिया। उन्होंने कहा कि इस विषय पर आयोजित वैश्विक चर्चाओं में अनुकूलन को जलवायु के दुष्प्रभाव घटाने जितना महत्व नहीं दिया गया। यह जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित विकासशील देशों के साथ अन्याय है। मोदी ने अनुकूलन को विकास नीतियों और परियोजनाओं का मुख्य अंग बनाने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा वैश्विक जलवायु चर्चा में अनुकूलन को उतना महत्व नहीं मिला है जितना उसके प्रभावों को कम करने को। यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है जो जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित हैं। इस तरह यह स्पष्ट होता है। कि प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में विश्व के विकसित देशों के रवैये की आलोचना की है तथा इस बात को रेखांकित किया है कि अगर इसके खतरे से बचना है तो इन देशों को अपना रवैया बदलना होगा।