लखनऊ की हिंदू धर्म जनता के मन में देवियों के पूजन के प्रति बड़ी आस्था रही है। यहां बख्शी के तालाब के पास चंद्रिका देवी, चौक स्थित बड़ी काली व छोटी काली, चौपटिया से संदोहन देवी, सहादतगंज स्थित मसानी देवी तथा मेहंदी गंज स्थित शीतला माता मंदिरों की लखनऊ में बड़ी मान्यता रही है। यह मंदिर अति प्राचीन हैं और यह सभी देवियां मिलकर पांचो देविन अर्थात पांच देवियां कहलाती हैं।
इनमे से शीतला माता का मंदिर लखनऊ के मेहंदीगंज मोहल्ले में स्थित है। इतिहास की माने तो धर्म धर्मान्ध मुसलमान आक्रमणकारियों ने इस मंदिर में स्थित देवी की मूर्ति तोड़ डाली थी। बाद में बंजारों ने यहां मूर्ति पुनर्स्थापित की। इसलिए यहां पर देवी की मूर्ति पिण्ड के रूप में विद्यमान है और उसी की पूजा की जाती है। प्रदेश के लगभग सभी अंचलों में तीज-त्योहारों के अवसर पर मेले लगते चले आ रहे हैं। लखनऊ भी इससे अछूता नहीं है। लखनऊ के साढ़े तीन मेले बहुत मशहूर है। उनमे से पहले मेला कार्तिक मास में अलीगंज पुल के पास गोमती के किनारे एक मास तक लगने वाला कतिकी का मेला है।
‘आठों का मेला’ की है बड़ी मान्यता:
दूसरा होली के बाद शीतला माता के मंदिर पर आठ दिनों तक लगने वाला आठों का मेला है। जहां पर पुराने जजमाने से भारी भीड़ जुटती चली आ रही है। अपने समय में राजा टिकैतराय यहां पर आये थे। उन्होंने देखा मेले में बहुत से लोग आये हुए हैं। उन्होंने देखा कि मेले में पानी का बड़ा अभाव है और इससे लोग बहुत परेशान हैं। लोगों के कष्ट को देखकर उन्होंने मंदिर के पास दो पक्के तालाब बनवाये जो टिकैतराय के बड़े और छोटे तालाब के नाम से मशहूर हुये। इसी के साथ उन्होंने अपने आराध्य भगवान राम का रामजानकी मंदिर भी बनवाया।
तीसरा मेला ईद के लगने वाला ईद की टर्र मेला कहलाता है। एक मेला आधे दिन का होता था। जिसमे खूब फूहड और मल्लाहि गालियां गाने के रूप में सुनाई जाती थी। अब यह मेला लगना बन्द हो गया है।
पहले होली के बाद चेचक बहुत निकलती थी और इसको देवी का प्रकोप माना जाता था। शीतला माता को एक दिन पहले बना शीतल भोजन शीतला माता को चढ़ाया जाता था। जिसे ”बसौढ़ा” कहते हैं। ताकि माता का कोप शांत रहें और घर में किसी को भी चेचक न निकले। यदि किसी के घर में चेचक हो भी जाती थी तो लोग देवी को प्रसाद चढ़ा कर मरीज को ठीक करने की प्रार्थना करते थे। यह सिलसिला अब तक जारी है।
हिंदुओं में एक परंपरा रही है कि वे लोग अपने बच्चों का मुण्डन संस्कार देवी मंदिरों में या गंगा जैसी नदियों के किनारे ही करते हैं क्योंकि नदियों को भी देवी का रूप माना जाता है। इसलिए सीता माता लोक जीवन में सबसे अधिक जनमानस से जुड़ी हुई माता है। इनकी पूजा राजपूतों, भारशिवों और प्रतिहारों ने की है। लखनऊ के कश्मीरी ब्राह्मणों के परिवार भी शीतला माता को अपनी आराध्य देवी मानते हैं। होली की अष्टमी के अलावा दोनों नवरात्रों में भी भक्तों की भीड़ शीतला माता मंदिर पर जुटती है और लोग अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं। इस अवसर पर महिलाएं देवी गीत गाती हैं:- गाय का दूध मैया कैसे चढ़ाऊं, बछड़े ने डाला है जूठार।