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एक दहकता जंगल है
मेरे संघर्ष की प्रवक्ता..
मेरे कर्म की साक्षी.
इसके पृष्ठों में रखता जाता हूं
एक चुटकी आग
अक्षर-अक्षर शब्द तपते हैं..
.. बाहर मैं.
जब मद्धम पड़ने लगती है आंच,
डायरी के किसी पन्ने को खोल
जितनी चाहिए उठा लेता हूं आग
डायरी
एक दहकता जंगल है
मेरे लिए.
– आनंद अभिषेक