व्यंग्य: अंशुमाली रस्तोगी
हद करते हैं। दिसंबर-जनवरी में ठंड न पड़ेगी तो क्या मई-जून में पड़ेगी। ठंड पड़ रही है तो रजाई और गर्म कपड़े बेचने वालों की दुकानें चल रही हैं। चाय और हीटर की डिमांड बढ़ गई है। लोग जमकर खा-पी रहे हैं। मुझ जैसी आलसी हफ्ते भर तक नहा नहीं रहे।
उधर, चोर भाई सुकून से चोरी कर पा रहे हैं। यह सीजन तो चोरों के लिए ‘वरदान’ सरीखा होता है। लोग रजाईयों में पड़े सोते रहते हैं और चोर भाई चुपचाप हाथ साफ कर जाते हैं। भीषण ठंड में चोरी करना इतना आसान नहीं होता। भीतर तक के टांके कांप जाते हैं। लेकिन करते-करते आदत में आ ही जाता है। मैं चोरों की हिम्मत की दाद देता हूं।
वैसे, कई दफा मैंने भी सोचा कि मैं लेखन-वेखन छोड़कर किसी ‘प्रोफेशनल चोर गिरोह’ को जॉइन कर लूं। उनके साथ जाकर सर्दियों में चोरी करने की प्रैक्टिस किया करूं। किस घर में कैसे चोरी करनी है। किस कंपनी में चोरी कैसे करनी है। गहने कैसे चुराने हैं। ताला-कुंडी कैसे तोड़ने हैं। आदि।
ठंड में दफ्तर से दो महीने की छुट्टी लेता ही हूं। खाली समय में चोरियों की प्रैक्टिस कर हाथ भी रवां होगा और अपना खर्चा भी निकलता रहेगा। मोहल्ले में रौब जमेगा सो अलग।
बल्कि मैं तो चाहता हूं ठंड पूरे साल पड़ा करे। गर्मियों में उतने कायदे से चोरी नहीं हो पाती, जितनी सर्दियों में हो जाती है। एक तो सर्दियों की रातें सुनसान होती हैं। लोग कंबल में दुप्पकर घोड़े बेचकर सो रहे होते हैं। शोर-शराबा होता नहीं। चोर आराम से अपना काम कर जाता है। किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होती। और फिर एक बार में ही ढेर सारा रुपया हाथ लगने के बाद भला किस बेवकूफ को ठंड सताएगी। ठंड लगना तो दरअसल अमीरों के चोचले हैं। वे ही ‘ठंड है, बड़ी ठंड है’ कह-कहकर ठंड को सरेआम बदनाम करते हैं।
मैं तो चाहता हूं कि लोग मुझे बड़े लेखक के रूप में न जानकर बड़े चोर के रूप में जाने। लेखक से भला कौन डरता है। चोर से लोग थोड़ा डरते तो हैं। यहां तो इतने बरस लिखकर बीता दिए एक स्कूटर तक न सीख सका। चोरी करने से कम से कम एक कार आदि की तो जुगाड़ हो ही जाएगा। है कि नहीं…।
तय किया है, इस दफा लोगों के कहे पर जाऊंगा ही नहीं। लोगों का क्या है, वे तो ठंड को भी बदनाम करते हैं और चोर को भी। जहां जिस काम में दिल रमेगा मैं तो वही करूंगा। बता दूं, लेखक बनने से ज्यादा कठिन है चोर बनना। अपनी बीवी के पर्स में से दस का एक नोट निकालकर ही देख लीजिए, पता चल जाएगा।
बहुत हुआ। रजाई का मोह छोड़कर मैं अपने मोहल्ले के चोरों के सरदार से जाकर मिलता हूं। उनसे अपनी चोर बनने की इच्छा व्यक्त करता हूं। मुझे उम्मीद है कि वे मुझे अपना चेला बना लेंगे। निराश कतई न करेंगे।
ठंड का क्या है, इसे तो पड़ना ही है। क्यों न मैं भी चोर बनकर इसका फायदा उठाऊं। ठीक रहेगा न…।