किसी भूखे को खिलाने के लिए आप अपना बचा हुआ भोजन दे सकते हैं। अपने घरेलू सहायक के बच्चों की फीस भरने में मदद कर सकते हैं। अगर आपको दान के पात्र नहीं मिल पा रहे हैं तो किसी ऐसे फाउंडेशन में जाना सबसे अच्छा है जो समाज में जरूरतमंद लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा है।
भगवद्गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, ‘जब हम दान करते हैं तो हमारे मन में भगवान के दूत के रूप में वंचितों का सहारा बनने की भावना होनी चाहिए। दान हमें सांसारिक चीजों का मोह छोड़ना सिखाता है। विशेष तौर पर धार्मिक स्थल पर आप कुछ दान कर रहे हैं तो आप अपने दान को बिलकुल शुद्ध मन से भगवान को समर्पित करें। बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना सिर्फ सद्भावना के साथ जब यह काम संपन्न होता है, तभी दान कहलाता है।
कहा गया है, दान या अच्छे कर्म इतने चुपचाप करने चाहिए कि आपके बाएं हाथ को भी पता न चले कि आपका दाहिना हाथ क्या कर रहा है लेकिन आजकल दान देने से पहले ही चर्चा शुरू हो जाती है। दाता के गुणगान होने लगते हैं। जिस काम को अच्छी नीयत से किया जाना है, उसमें व्यक्तिगत लाभ या प्रशंसा का घालमेल क्यों होना चाहिए। हमारे पास जो धन है, उसमें से कुछ जरूरतमंद व्यक्ति को देना समाज और ईश्वर के प्रति हमारा परम कर्तव्य है। हमारे पास हमारी आवश्यकता से ज्यादा जो भी है, हम उसे समाज को वापस दे देते हैं ताकि कोई और अच्छा जीवन जी सके।