पंकज चतुर्वेदी
हाथियों और मानव के बीच बढ़ते संघर्ष को देखते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय , प्रोजेक्ट एलीफैंट के तहत 22 राज्यों में जंगल से सटे गांवों को “अर्ली अलर्ट सिस्टम” से जोड़ने जा रहा है ताकि गांव के आसपास हाथियों की हलचल बढ़ने पर उन्हें सतर्क किया जा सके। उधर केरल सरकार ने वायनाड़ के आसपास हिंसक हाथियों के विरुद्ध जन आक्रोश को देखते हुए जानवरों के हमले को “राज्य विशेष आपदा” घोषित का दिया है । फिलहाल सरकार जो भी कदम उठा रही है , वह हाथियों के हिंसक होने के बाद मानवीय जिंदगी बचाने पर अधिक है लेकिन सोचना तो यह पड़ेगा कि आखिर घर-घर में पूजनीय हाथी की इंसान के प्रति नाराजी बढ़ क्यों रही है ?
बीते एक महीने के दौरान में झारखंड और उससे सटे छत्तीसगढ़, बिहार और मध्य प्रदेश में कई ऐसी घटनाएँ हो चुकी हैं जब गुस्सैल हाथियों के झुण्ड ने गाँव या खेत पर हमला कर नुकसान किया और इनमें कम से कम दस लोग मारे जा चुके हैं . यह स्थापित तथ्य है कि जब जंगल में हाथी का पेट नहीं भर पाता तो वह बस्ती की तरफ आता है. समझना होगा कि किसी भी वन के पर्यावरणीय तंत्र में हाथी एक अहम् कड़ी है और उसके बैचेन रहने का असर समूचे परिवेश पर पड़ता है, फिर वह हरियाली हो या जल निधियां या फिर बाघ या तेंदुए . बीते कुछ सालों में हाथी के पैरों टेल कुचल कर मरने वाले इंसानों की संख्या बढती जा रही है. सन 2018 -19 में 457 लोगों की मौत हाथी के गुस्से से हुई तो सन 19-20 में यह आंकडा 586 हो गया . वर्ष 2020-21 में मरने वालों की संख्या 464, 21-22 में 545 और बीते साल 22-23 में 605 लोग मारे गए . केरल के वायनाड जिले, जहां 36 फ़ीसदी जंगल है , पिछले साल हाथी- इंसान के टकराव की 4193 घटनाएं हुई और इनमें 27 लोग मारे गए. देश में उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असं, केरल, कर्णाटक सही 16 राज्यों में बिगडैल हाथियों के कारण इन्सान से टकराव बढ़ रहा है. इस झगड़े में हाथी भी मारे जाते हैं .
पिछले तीन सालों के दौरान लगभग 300 हाथी मारे गए हैं. कहने को और भले ही हम कहें कि हाथी उनके गांव-घर में घुस रहा है, हकीकत यही है कि प्राकृतिक संसाधनों के सिमटने के चलते भूखा-प्यासा हाथी अपने ही पारंपरिक इलाकों में जाता है. दुखद है कि वहां अब बस्ती, सड़क का जंजाल है. ‘द क्रिटिकल नीड आफ एलेफेंट’ डब्लूडब्लूएफ-इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में इस समय कोई 50 हजार हाथी बचे हैं इनमें से साठ फीसदी का आसरा भारत है. देश के 14 राज्यों में 32 स्थान हाथियों के लिए संरक्षित हैं. यह समझना जरूरी है कि धरती पर इंसान का अस्तित्व तभी तक है जब तक जंगल हैं और जंगल में जितना जरूरी बाघ है उससे अधिक अनिवार्यता हाथी की है.
दुनियाभर में हाथियों को संरक्षित करने के लिए गठित आठ देशों के समूह में भारत शामिल हो गया है. भारत में इसे ‘राष्ट्रीय धरोहर पशु’ घोषित किया गया है. इसके बावजूद भारत में बीते दो दशकों के दौरान हाथियों की संख्या स्थिर हो गई हे. जिस देश में हाथी के सिर वाले गणेश को प्रत्येक शुभ कार्य से पहले पूजने की परंपरा है , वहां की बड़ी आबादी हाथियों से छुटकारा चाहती है .
पिछले एक दशक के दौरान मध्य भारत में हाथी का प्राकृतिक पर्यावास कहलाने वाले झारखंड, छत्तीसगड़, उड़िया राज्यों में हाथियों के बेकाबू झुण्ड के हाथों कई सौ इंसान मारे जा चुके हैं. धीरे-धीरे इंसान और हाथी के बीच के रण का दायरा विस्तार पाता जा रहा है. कभी हाथियों का सुरक्षित क्षेत्र कहलाने वाले असम में पिछले सात सालों में हाथी व इंसान के टकराव में 467 लोग मारे जा चुके हैं. झारखंड की ही तरह बंगाल व अन्य राज्यों में आए रोज हाथी को गुस्सा आ जाता है और वह खड़े खेत, घर, इंसान; जो भी रास्ते में आए कुचल कर रख देता है . दक्षिणी राज्यों के जंगलों में गर्मी के मौसम में हर साल 20 से 30 हाथियों के निर्जीव शरीर संदिग्ध हालात में मिल रहे हैं .
जानना जरूरी है कि हाथियों केा 100 लीटर पानी और 200 किलो पत्ते, पेड़ की छाल आदि की खुराक जुटाने के लिए हर रोज 18 घंटेां तक भटकना पड़ता है . गौरतलब है कि हाथी दिखने में भले ही भारीभरकम हैं, लेकिन उसका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है . थेाड़ी थकान या भूख उसे तोड़ कर रख देती है . ऐसे में थके जानवर के प्राकृतिक घर यानि जंगल को जब नुकसान पहुँचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिडंत होती है . साल 2018 में पेरियार टाइगर कन्जर्वेशन फाउंडेशन ने केरल में हाथियों के हिंसक होने पर एक अध्ययन किया था . रिपोर्ट में पता चला कि जंगल में पारंपरिक पेड़ों को कट कर उनकी जगह नीलगिरी और बाबुल बोने से हाथियों का भोजन समाप्त हुआ और यही उनके गुस्से का कारण बना . पेड़ों की ये किस्म जमीन का पानी भी सोखती हैं सो हाथी के लिए पानी की कमी भी हुई .
वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को सहेज कर रखने में गजराज की महत्वपूर्ण भूमिका हैं. पयार्वरण-मित्र पर्यटन और और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान में भी हाथी बेजोड़ हैं. अधिकांश संरक्षित क्षेत्रों में, आबादी हाथियों के आवास के पास रहते हैं और वन संसाधनों पर निर्भर हैं. तभी जंगल में मानव अतिक्रमण और खेतों में हाथियों की आवाजाही ने संघर्ष की स्थिति बनाई और तभी यह विशाल जानवर खतरे है.
एक बात जान लें किसी भी जंगल के विस्तार में हाथी सबसे बड़ा ‘बीज-वाहक होता है. वह वनस्पति खाता है और उसकी लदी भोजन करने के 60 किलोमीटर दूर तक जा कर करता है और उसकी लीद में उसके द्वारा खाई गई वनस्पति के बीज होते हैं. हाथी की लीद एक समृद्ध खाद होती है और उसमें बीज भली-भांति प्रस्फुटित होता है. जान लेें जगल का विस्तार और ारंपरिक वृक्षों का उन्नयन इसी तरह जीव-जंतुओं द्वारा नैसर्गिक वाहन से ही होता हैं.
यही नहीं हाथी की लीद , कई तरह के पर्यावरण मित्र कीट-भृगों का भोजन भी होता है. ये कीट ना केवल लीद को खाते हैं बल्कि उसे जमीन के नीचे दबा भी देते हैं जहां उनके लार्वा उसे खाते हैं. इस तरह से कीट कठोर जमीन को मुलायम कर देते है. और इस तरह वहां जंगल उपजने का अनुकूल परिवेष तैयार होता हैं.
घने जंगलों में जब हाथी ऊंचे पेड़ों से पत्ती तोड़ कर खाता है तो वह एक प्रकार से सूरज की रोशनी नीचे तक आने का रास्ता भी बनाता है. फिर उसके चलने से जगह-जगह जमीन कोमल होती है और उस तरह जंगल की जैव विविधता को फलने-फूलने का मौका मिलता हैं.
हाथी भूमिगत या सूख चुके जल-साधनों को अपनी सूंड, भारीभरकम पैर व दांतों की मदद के खोदते हैं. इससे उन्हें तो पानी मिलता ही है, जंगल के अन्य जानवरों की भी प्यास बुझती हैं. कहना गलत ना होगा कि हाथी जंगल का पारिस्थितिकी तंत्र इंजीनियर है. उसके पद चिन्हों से कई छोटे जानवरों को सुरक्षित रास्ता मिलता है. हाथी कि विषाल पद चिन्हों में यदि पानी भर जाता है तो वहां मेंढक साहित कई छोटे जल-जीवों को आसरा मिल जाता हैं.
यह वैज्ञानिक तथ्य है कि जिस जंगल में यह विषालकाय शाकाहारी जीव का वास होता है वहां आमतौर पर शिकारी या जंगल कटाई करने वाले घुसने का साहस नहीं करते और तभी वहां हरियाली सुरक्षित रहती है और साथ में बाघ, तेंदुए, भालू जैसे जानवर भी निरापद रहते हैं.
कई-कई सदियों से यह हाथी अपनी जरूरत के अनुरूप अपना स्थान बदला करता था . गजराज के आवागमन के इन रास्तों को ‘‘गज-गलियारा ’’ कहा गया . जब कभी पानी या भोजन का संकट होता है गजराज ऐसे रास्तों से दूसरे जंगलों की ओर जाता है जिनमें मानव बस्ती ना हो. देश में हाथी के सुरक्षित कोरिडोर या गलियारे की संख्या 88 हैं, इसमें 22 पूर्वोत्तर राज्यों , 20 केंद्रीय भारत और 20 दक्षिणी भारत में हैं. दरअसल, गजराज की सबसे बड़ी खूबी है उनकी याददाश्त. आवागमन के लिए वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी परंपरागत रास्तों का इस्तेमाल करते आए हैं.
बढ़ती आबादी के भोजन और आवास की कमी को पूरा करने के लिए जमकर जंगल काटे जा रहे हैं. उसे जब भूख लगती है और जंगल में कुछ मिलता नहीं या फिर जल-स्त्रोत सूखे मिलते हैं तो वे खेत या बस्ती की ओर आ जाते हैं . नदी-तालाबों में शुद्ध पानी के लिए यदि मछलियों की मौजूदगी जरूरी है तो वनों के पर्यांवरण को बचाने के लिए वहां हाथी अत्यावश्यक हैं . मानव आबादी के विस्तार, हाथियों के प्राकृतिक वास में कमी, जंगलों की कटाई और बेशकीमती दांतों का लालच; कुछ ऐसे कारण हैं जिनके कारण हाथी को निर्ममता से मारा जा रहा है . हाथी का जंगल में रहना कई लुप्त हो रहे पेड़-पौधों, सुक्ष्म जीव, जंगली जानवरों और पंक्षियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है.
कैसी विडंबना है कि हम तस्वीर वाले हाथी को कमरों में सजावट के लिए इस्तेमाल करते हैं. हाथी के मुंह वाले गणपति को मांगलिक कार्यों मे सबसे पहले पूजते हैं लेकिन धरती पर इस खुबसूरत जानवर को नहीं देखना चाहते, उसके घर-रास्तों को भी नहीं छोड़ रहे. जबकि हाथी मानव-अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं.