मार्च 2018 में बड़े भैया का फोन आया, “अनिल, कभी हम दोनों भाई एक साथ अकेले कहीं बाहर नहीं गए हैं। मैंने ताडोबा टाइगर रिजर्व का प्रोग्राम बनाया है। तुम चलोगे ?” बड़े भैया कोलकाता में रहते हैं। पिता नहीं हैं, तो वही घर के बड़े हुए।
बड़े भाई के आग्रह और आदेश में कोई फर्क नहीं होता। ना कहने का न सवाल था और न मन। फट से सहमति का सर्टिफिकेट मैंने दे दिया। तय हुआ कि नागपुर में 26 को मिलेंगे, वहां से चंद्रपुर चला जाएगा, जहां से ताडोबा नजदीक है। हम दोनों भाई नागपुर पहुंचे। वहां हमारी गाड़ी तैयार खड़ी थी। वहां से हम दोनों ताडोबा के पास बम्बू फारेस्ट रिसोर्ट पहुंचे, जहां ठहरने की व्यवस्था थी। कमाल की बात यह है – कि जिस गांव में रहते हुए हम शर्मिंदगी महसूस करते हैं, वैसा ही – वातावरण शहर के रेसार्ट में जब उपलब्ध करवाया जाता है, तो हम बहुत खुश होते हैं।
अगले दिन से हमारा टूर शुरू हुआ। हम ताडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व में सुबह की सफारी पर गए। इसमें हमें कोर यानी बीच के हिस्से की बुकिंग नहीं मिली। हमें बफर जोन में जाना पड़ा। यह जंगल काफी बड़ा था और खास बात यह थी कि यहां अधिकांश वृक्ष बांस के थे। जंगल बेहद सुंदर और रास्ते बेहद साफ थे।
कुछ देर तो हम निराश हुए, पर जब यह सूचना मिली कि इस इलाके की रानी जूनाबाई आसपास ही घूम रही है, तो मन को कुछ शांति मिली। आखिर कई जानवरों से मिलने के बाद उस इलाके की रानी बाघिन जूनाबाई के बच्चे से मुलाकात हुई। फिर जंगली कुत्तों को एक जंगली सुअर का शिकार करते अपनी आंखों से देखा। हिरन, सांभर स्पॉटेड डियर, जंगली भैंसा और नील गाय आदि के भी आसानी से दर्शन हुए। खास बात यह है कि हम इनसानों को देखकर ये जानवर अब भागते नहीं। उन्हें पता है, हम उन्हें देखने आए हैं। इसलिए हमें अनदेखा कर वे चरते रहते हैं या अपनी राह चले जाते हैं। खैर, प्रथम दौर में हमेंयही कुछ देखने को मिला।
उसी दिन दोपहर को कोर क्षेत्र की बुकिंग थी। इस बार हमारा मन बल्लियों उछल रहा था, क्योंकि गाइड के अनुसार इस बार हमें उस क्षेत्र के बाघिन के परिवार को देखने का मौका मिलने वाला था। वही हुआ। पहले हम उस क्षेत्र की महारानी बाघिन माया के दो बच्चों से मिले। दोनों भाइयों को आपस में दुलार से लड़ते-खेलते देखा। फिर आगे बढ़ने पर उनके पिता बाघ मटकासुर को देखा। लौटते समय माया को अपने बच्चों के साथ झील के पानी में अठखेलियां करते देखना का सुख मिला।
असली मजा तो बाकी था। अगले दिन सुबह हम फिर कोर क्षेत्र में गए। पर गाइड से कहकर इलाका बदलवाया। हम पहुंचे बाघिन शबनम के क्षेत्र में। उसके भी दो बच्चे हैं। जब हम विशाल झील के किनारे पहुंचे, पता चला, शबनम पानी पीकर जा चुकी है। गाइड ने भरोसा दिलाया कि वह लौटेगी। यही हुआ और क्या गजब हुआ। हमारी खुली जिप्सी और दूसरे जिप्सी के बीच मे 40 मीटर की दूरी थी।
शबनम जंगल से बाहर निकलकर हमारे रोड पर ठीक हमारी जिप्सी के करीब 15 मीटर पीछे आ गई। यही नहीं, वह मस्त चाल से हमारी जिप्सी की ओर बढ़ने लगी। जिप्सी खुली हुई थी। हम उसकी एक छलांग की जद में थे। गाइड ने यह कहकर और डरा दिया कि शबनम को अभी शिकार नहीं मिला है और उसका पेट खाली है। हम दोनों भाई दम साधे उसे देख रहे थे। मैं फोटो खींच रहा था और भैया वीडियो बना रहे थे।
इस बीच एक दो बार शबनम से मेरी आंखें मिलीं, पर उसने मनुष्य को ओछा समझकर कोई भाव नहीं दिया और अपनी धुन में बढ़ती रही। खतरा भांपकर ड्राइवर ने धीरे-धीरे गाड़ी आगे बढ़ाई। मैं उसे कैमरे से शूट करता रहा, वीडियो भी बनाता रहा और भैया तो उसकी वीडियो बनाने में खोए हुए थे। करीब 10 मीटर तक शबनम बाघिन हमारे पीछे सधी हुई चाल से चलती रही। फिर हमें अनदेखा कर घास की ओर उतर गई और झील में पानी पीने चली गई। पानी पीकर वह तैरकर दूसरे किनारे शिकार करने चली गई।
उसके जाते ही बाकी टूरिस्टों ने हमें घेर लिया। सब मेरे कैमरे की फोटो देखकर आहें भरने लगे।
लोगों को हमारे भाग्य से जलन हो रही थी कि हमें शबनम का फ्रंट व्यू मिला। उन्हें हम दोनों भाई क्या बताते कि फोटो खींचते समय परलोक सिधारने का खयाल भी हमारे दिल में आ रहा था। हमारा टूर खत्म हुआ। सुबह के 10 बजे हम जंगल से बाहर – निकले। मैंने आंखें भरकर ताडोबा के जंगल को देखा। मन कर रहा था कि वहीं रह जाऊं, पर यह संभव नहीं था, इसलिए लौट पड़ा। कभी मौका मिले, तो यहां जरूर आइए। वन की रानियों को उनके इलाके में उनके राजा, राजकुमारों या राजकुमारियों के साथ देखने का दृश्य अलौकिक होता है।
- पायस