कृषि विशेषज्ञों का दावा, आय दोगुना करने की क्षमता है प्राकृतिक व आर्गेनिक खेती में
उपेन्द्र नाथ राय
समय चक्र है। यहां जो बीता, वह पुन: नया बनकर आना है। वर्तमान में हम बात कर रहे हैं, आर्गेनिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक खेती की। जो कभी हुआ करती थी, अब थक हारकर पुन: उसी ओर लौटने का सरकार प्रयास कर रही है। इसके लिए बहुत किसान आगे भी आ चुके हैं। कम लागत की खेती मतलब आर्गेनिक, शून्य लागत की खेती मतलब प्राकृतिक, शून्य लागत के साथ ही मंत्रों से शरीर को ऊर्जा देने वाली खेती आध्यात्मिक है। यदि विशेषज्ञों की मानें तो किसानों की आमदनी दोगुना करने में आर्गेनिक और प्राकृतिक खेती ही है।
पद्मश्री भारत भूषण ने कहा:
इस संबंध में प्रगतिशील किसान आर्गेनिक खेती के लिए मशहूर बुलंदशहर निवासी पद्मश्री भारत भूषण त्यागी का कहना है कि तीनों खेती को मूल सिद्धांत एक है। प्रकृति के नियम व व्यवस्था के अनुसार खेती ही प्राकृतिक, आर्गेनिक और आध्यात्मिक खेती की जाती है। प्राकृतिक खेती आर्गेनिक की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा प्रकृति के नजदीक चली जाती है।
सहफसली में है फायदा:
उन्होंने बताया कि भोजन हो या खेती, दोनों का नियम है विविधता को लाने से उसकी क्षमता बढ़ती है। यदि खाने में विविधता है तो आपको हर तरह के तत्व उपलब्ध हो जाएंगे। वैसे ही यदि बुआई में विविधता लाते हैं तो पैदावार बढ़ जाएगी। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि गन्ने के साथ प्याज, लहसून और आलू को सहफसली के रूप में लगाते हैं उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ ही किसानों की आय में भी काफी इजाफा होगा। इसका कारण है प्याज, लहसून और आलू की जड़ों से जमीन को पुष्ट बनाने वाले रस निकलते हैं। इससे गन्ने की फसल को रासायनिक तत्व प्राप्त हो जाएगा। ऐसे ही दलहन की फसल की जड़ों में गांठ के रूप में नाइट्रोजन बनता है। इससे अगले वर्ष उस खेत में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाएगी।
खेत एक-फसल अनेक:
भारत भूषण त्यागी ‘खेत एक-फसल अनेक’ के सिद्धांत को अपनाया है। इस आधार पर वे सह फसली खेती को प्राकृतिक खेती के रूप में करते हैं। भारत भूषण ने सह फसली खेती को अपनाया तो उनकी जमीन की उर्वरकता सुधरी, जमीन में कार्बनिक तत्व बढ़े और सूक्ष्म जीव बढ़े, उपज बढ़ी और पानी, खाद में बचत हुई. सहफसली खेती से भारत भूषण त्यागी के खेतों में पानी का उपयोग आधा हो गया।
111 पुरस्कार पा चुके रामकिरत मिश्र ने कहा:
वहीं भारत सरकार के नेशनल गोल्डेन अवार्ड, राष्ट्रीय स्वर्ण पदक, भारतीय नवोन्मेषी कृषक पुरस्कार सहित अब 111 पुरस्कार पा चुके आर्गेनिक और प्राकृतिक खेती करने वाले सुलतानपुर जिले के प्रगतिशील किसान रामकिरत मिश्र का कहना है कि आर्गेनिक में थोड़ा-बहुत कम्पोस्ट की तरह की खादों का प्रयोग होता है, लेकिन प्राकृतिक में यह सब बंद कर दिया जाता है। आध्यात्मिक में प्रकृति के साथ ही बीज सोधन के लिए मंत्रों का भी आह्वान किया जाता है।
एक ग्राम मिट्टी में एक करोड़ से कम वैक्टिरिया यानि मिट्टी बीमार:
उन्होंने बताया कि एक ग्राम मिट्टी में 1 करोड़ जीवाणु होते हैं। यदि इससे कम हैं तो मिट्टी बीमार मानी जाती है। आज की तिथि में देखा जाय तो अधिकांश खेत बीमार हैं। रासायनिक खादों के अंधाधुध प्रयोग के कारण जीवाणुओं की संख्या तेजी से घट रही है। जैसे-जैसे जीवाणु कम होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे उर्वरा शक्ति भी घटती जा रही है।
बरगद के पेड़ के नीचे की एक ग्राम मिट्टी में मिलते हैं एक अरब बैक्टिरिया:
उन्होंने इसके लिए जीवामृत का प्रयोग करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी में एक ग्राम मिट्टी में एक अरब वैक्टिरिया पाये जाते हैं। गाय के गोबर में भी वैक्टिरिया की मात्रा एक करोड़ के आस-पास होती है। इस कारण यह खाद मिट्टी को बीमारियों से मुक्त करती हैं।
गेंदा का फूल शोषित कर लेता है हानिकारक वैक्टिरिया को:
उन्होंने कहा कि किसी भी फसल के चारों तरफ गेंदा का फूल रोपण कर दिया जाय तो उस फसल में हानिकारक कीटों का प्रकोप न के बराबर हो जाता है, क्योंकि कीट गेंदे के फूल पर ही चले जाते हैं। इसके अतिरिक्त एक एलो रंग का कार्ड आता है। उस पर गोंद चिपका रहता है। यदि एक एकड़ खेत में 25 कार्ड लगा दिया जाय तो उस कीट आकर्षित होकर जाते हैं और उसी पर चिपक कर मर जाते हैं।
जिसमें बीजों को मंत्र से शोधित किया जाता है:
उन्होंने आध्यात्मिक खेती के बारे में बताया कि इसमें पंचगव्य से बीज को शोधित करते हैं। खेत में ले जाने पर बीज के पास गाय का उपला और गाय का घी लेकर महामृत्युंजय की आहूति देते हैं। इसके बाद उसको बोते हैं। इससे उसमें सकारात्मक उर्जा पैदा होती है। इससे बीज मंत्रोच्चारित होकर पुष्ट हो जाता है। इसमें बीज के मन: स्थिति पर भी ध्यान दिया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि मन: स्थिति पर बीज पर भी प्रभाव पड़ता है।
प्रकृति के नजदीक का मतलब आर्गेनिक, पूर्णतया प्रकृति पर निर्भर मतलब प्राकृतिक खेती
चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डा. मुनीष का कहना है कि आर्गेनिक खेती प्रकृति के नजदीक है, जबकि प्राकृतिक खेती पूर्णतया प्रकृति पर निर्भर है। इसमें थोड़ा भी प्रकृति ने इतर किसी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता। प्राकृतिक खेती के भी कई विधाएं हैं। इसमें सह फसली का कांसेप्ट बेहतर है।
बाजार से हटकर चलिए, फिर मिलेगा फायदा:
पूर्वांचल में पहली बार कश्मीरी केसर उगाने वाले और आर्गेनिक पद्धति से खेती करने वाले पंकज का कहना है कि इस पद्धति में एक-दो साल तक खेती करने पर फायदा नहीं हो पाता। आज के समय में लोग तुरंत लगाओ, तुरंत पाओ की पद्धति पर चल रहे हैं। इस कारण आर्गेनिक खेती की ओर ज्यादा लोग नहीं बढ़ पाते, वरना आर्गेनिक खेती कम लागत में, ज्यादा फायदा देने वाली खेती है। उन्होंने कहा कि किसी भी बिजनेस का वसूल है, यदि आप बाजार से हटकर चलेंगे तो आपके पास ज्यादा ग्राहक आएंगे। आर्गेनिक फसलों के ग्राहकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।
आर्गेनिक में तत्काल फायदा नहीं दिखता:
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू के प्रधान वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार राय का कहना है कि एक ग्राम मिट्टी में लगभग एक करोड़ वैक्टिरिया होते हैं। इसमें कुछ हानिकारक और कुछ लाभदायक होते हैं। रासायनिक खादों के प्रयोग से वैक्टिरिया मर रहे हैं। पोषक तत्वों की भी कमी हो रही है। किसान आर्गेनिक खेती की ओर इस कारण जल्द उन्मुख नहीं होता कि उसको तत्काल फायदा चाहिए। आज यूरिया डाला, कल उसकी फसल हरी दिखनी चाहिए। आर्गेनिक खादों में तुरंत फायदा नहीं दिखता।
आर्गेनिक खेती में भी आ गई हैं कई तरह की खादें:
उन्होंने कहा कि आज कल आर्गेनिक में भी कई तरह की खादें आ गयी हैं। आपको नाइट्रोजन चाहिए तो उसके लिए भी ऐसी खाद है, जो नाइट्रोजन को बनाने के लिए होते हैं, उस खाद में वे जीवाणु होते हैं। कंसोसिया खाद भी आर्गेनिक में आ गयी है, जो नाइट्रोजन, कैल्सियम और अन्य तत्वों को पैदा करने वाले जीवाणुओं से बनी है। वैसे उन्होंने समेकित खेती को सर्वाधिक बेहतर बताया। उन्होंने कहा कि इससे हमारे वायुमंडल पर बिना दुष्प्रभाव डाले, किसानों को अच्छा फायदा मिलता है।