गंगा दशहरा का पर्व भारत में तब आता है जब सूर्य दक्षिणायन होने को होता है अर्थात कर्क संक्राति के नजदीक का समय होता है। गंगा स्नान का महत्व तब भी है जब सूर्य उत्तरायण होने को होता है अर्थात मकर संक्राति के पास का समय।
विषुवत रेखा से साढ़े तेईस डिग्री ऊपर की ओर कर्क रेखा तथा नीचे की ओर मकर रेखा पर सूर्य के चमकने का परिवर्तन ही संक्रांति है। इस अध्यात्म प्रधान देश के ऋषि-मुनियों को बहुत पहले से ही विज्ञान का विस्तृत ज्ञान जरूर था। इस बात को समय-समय पर विश्व भी स्वीकार करता है। दोनों संक्रांतियों के पास गंगा में स्नान के बहुत से वैज्ञानिक कारण भी हो सकते हैं जो हमें परोक्ष रूप में प्राप्त होते हैं। विज्ञान भी आज यह मानता है कि नदी में स्नान करते वक्त सूर्य को अर्घ्य देने पर शरीर में बहुत से सकारात्मक प्रभाव देखे जाते हैं।
कुछ मान्यताओं के अनुसार स्कंद पुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है, इस दिन स्नान और दान विशेष तौर पर करना चाहिए। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को दशहरा कहते हैं। कहा जाता है गंगा दशहरा के दिन दान देने से देने वाले का खजाना और भरता है इसके साथ ही उसके यश में भी वृद्धि होती है।
वराह पुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी, वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ के सूर्य इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है। गंगा दशहरा पर स्नान करने से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं।
भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि, जो मनुष्य इस दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार इस स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो वह भी प्रयत्नपूर्वक गंगा की पूजा कर उस फल को पाता है। यह दशहरा के दिन स्नान करने की विधि पूरी हुई।
कहा जाता हैं कि आज के दिन गंगा शिव की जटाओं से निकलकर हरिद्वार पहुंची थी। इस दिन स्नान का पहला पर्व हरिद्वार में मनाया जाता है। हरिद्वार से निकलकर गंगा जिन-जिन तीर्थों पर जाती उन सभी में गंगा अवतरण दिवस और अगले दिन निर्जला एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। गंगा दशहरे के दिन सभी दस योग सदा नहीं मिलते। गंगा दशहरा के दिन स्नान और दान की परंपरा है। माना जाता है इस दिन दिया गया दान कई गुना फल देता है।
कैसे हुई मां गंगा धरती पर प्रकट:
पौराणिक कथा के अनुसार कपिल मुनि ने राजा सगर के 60,000 पुत्रों को श्राप देकर भस्मीकृत कर दिया था। जिसके बाद राजा भगीरथ के वंशजों ने गंगा जी की घोर तपस्ता की लेकिन मां गंगा ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और एक -एक करके उनके वंशजों ने अपना देह त्याग दिया। अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए राजा भगीरथ ने भी घोर तपस्या की और उनकी इस तपस्या से मां गंगा प्रसन्न हो गई और राजा भगीरथ से वरदान मांगने को कहा फलस्वरूप राजा भगीरथ ने उनसे पृथ्वी पर अवतरण की अपेक्षा की जिसके बाद गंगा नदी के रूप में देश में बहने लगीं।