करवाचौथ’ का शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बर्तन’ और ‘चौथ’ यानि ‘चतुर्थी’। इस त्यौहार पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां वर्ष भर इस त्यौहार का बड़े बेसब्री से इंतजार करती हैं और इसको मनाने की सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से सम्पूर्ण करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
अनेको प्राचीन लोक कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मा के पास गए और उनके प्राणों की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे।
ब्रह्मा ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रख कर सच्चे दिल से उनकी विजय श्री के लिए प्रार्थना करना पड़ेगा। ऐसा कहते हुये ब्रह्मा ने यह वचन भी दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की ही जीत होगी। ब्रह्मा के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
ब्रह्मा के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना-स्तुति की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की ही जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देवगण के पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय नभ में चांद भी निकल चुका था। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से ही करवाचौथ के व्रत के परम्परा की शुरूआत हुई है। -प्रस्तुति: जी के चक्रवर्ती