जवान एक औसत मसाला फिल्म है जिसमें भरपूर हिंसा है, हॉलीवुड की फिल्मों जैसा तेज रफ्तार एक्शन है, कसा हुआ स्क्रीन प्ले है, कमजोर संगीत है , उसमें जिस तरह से मौजूदा सियासी-समाजी मुद्दों को उठाया गया है वह भी बेशक बहुत ड्रामाई और अवास्तविक है फिर भी मौजूदा दौर में सिस्टम के खिलाफ चतुराई से बुनी एक कहानी के जरिये एक हथौडामार पॉलिटिकल स्टेटमेंट की हिम्मत दिखाने के लिए शाहरुख खान बधाई के पात्र हैं।
हिंदी सिनेमा का हीरो अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन अवतार के साथ ही समूचे सिस्टम के खिलाफ वन मैन आर्मी की तरह दिखाया जाता रहा है। पिछले कुछ समय से मुख्यधारा का हिंदी सिनेमा मुख्यधारा के मीडिया की ही तरह सरकार के आगे सरेंडर नजर आ रहा था। ऐसे दौर में सत्ता की पोलखोल और जनता को संदेश देने का जो काम न्यूज चैनलों को करना चाहिए, वह काम अगर कोई व्यावसायिक सिनेमा कर रहा है तो उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
हम फिल्म की कहानी, उसके ट्रीटमेंट और तमाम बातों से असहमत हो सकते हैं लेकिन फिल्म जो कह रही है, उसको खारिज नहीं कर सकते। शाहरुख खान एक चतुर व्यवसायी हैं, मार्केटिंग की बढ़िया समझ रखते हैं लेकिन इस सबसे बड़ी बात है कि अपने बूते पर तन कर खड़े रहने की हिम्मत है उनमें।
- अमिताभ श्रीवास्तव की वॉल से