लखनऊ । उप्र ही नहीं देश में कोयले की कमी के चलते विद्युत उत्पादन प्रभावित हो रहा है। उत्पादन कम होने के कारण विद्युत आपूर्ति सीधे-सीधे प्रभावित हुई है और प्रदेश के लगभग सभी जिलों में अघोषित बिजली कटौती हो रही है। इस बीच केंद्र सरकार ने तापीय परियोजनाओं के लिए 10 प्रतिशत विदेशी कोयला खरीदने का आदेश दिया है। लेकिन सरकार के इस आदेश का सीधा असर बिजली उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा। एक अनुमान के मुताबिक सालभर विदेशी कोयला खरीदने से तकरीबन 11 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्ययभार हो सकता है। जिसके चलते विद्युत उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट बिजली के लिए एक रुपए और ढीले करने पडेंगे।
दरअसल उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने शासन को विस्तृत रिपोर्ट भेजते हुए विदेशी कोयला खरीदने पर अनुमति मांगी है। विदेशी कोयले से बिजली महंगी होने के मद्देनजर विद्युत उपभोक्ता परिषद द्वारा पहले ही विद्युत नियामक आयोग में याचिका दाखिल की जा चुकी है। परिषद अध्यक्ष का कहना है कि केंद्र का यह फैसला पूरी तरह से जनविरोधी है। विदित हो कि तापीय परियोजनाओं के पास पर्याप्त घरेलू कोयला न होने पर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को उनकी जरूरत का 10 प्रतिशत कोयला आयात करने के लिए 31 मई तक विज्ञापन निकाल खरीद की प्रक्रिया शुरू करने को कहा है। केंद्र के आदेश पर निजी क्षेत्र के ज्यादातर बिजली उत्पादकों द्वारा विदेशी कोयला खरीदने का विज्ञापन निकाला जा चुका है।
पॉवर कारपोरेशन के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अध्यक्ष एम. देवराज का कहना है कि विदेशी कोयले के संबंध में अभी शासन स्तर पर विचार चल रहा है। शासन स्तर पर जो भी निर्णय होगा उसी के अनुसार कोयला खरीदने के संबंध में आगे की कार्यवाही की जाएगी। दरअसल घरेलू कोयला तीन हजार रुपए प्रति टन है तो वहीं विदेशी कोयला 17 हजार रुपए प्रति टन पड़ता है।
घरेलू कोयला तीन हजार तो विदेशी 17 हजार रुपये टन रू वर्तमान में कोल इंडिया का घरेलू कोयला भाड़े सहित लगभग तीन हजार रुपये टन है। विदेशी कोयले की न्यूनतम दर 17000 रुपये प्रति टन है। इसी आधार पर कुल जरूरत का मात्र 10 प्रतिशत विदेशी कोयला मंगाने पर तकरीबन 11 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय भार आने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे में साफ है कि सरकार द्वारा विदेशी कोयला खरीदने की अनुमति दिए जाने पर उपभोक्ताओं को मौजूदा बिजली की दर पर एक रुपये यूनिट और देना होगा।