दोस्त चार हज़ार नौ सौ सतासी थे
पर अकेलापन भी कम न था
वहीं खड़ा था साथ में
दोस्त दूर थे
शायद बहुत दूर थे
ऐसा कि रोने-हँसने पर
अकेलापन ही पूछता था क्या हुआ
दोस्त दूर से हलो, हाय करते थे
बस स्माइली भेजते थे….
– हरे प्रकाश उपाध्याय
देख कर आँगन, छतें
फिर याद घर आने लगा
आग दिल में और कसक
आँखों में बादल
फिर घना छाने लगा।
एक चिड़िया जिसने जंगल को
किया आबाद था
चीखना रोना उसी का
दिल को धड़कने लगा
– डॉ लक्ष्मीकांत पाण्डेय
आग दिल में और कसक
आँखों में बादल
फिर घना छाने लगा।
एक चिड़िया जिसने जंगल को
किया आबाद था
चीखना रोना उसी का
दिल को धड़कने लगा
– डॉ लक्ष्मीकांत पाण्डेय