गौतम चक्रवर्ती
मोदी सरकार के सख्त होने के बाद से केंद्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार पर एक बहुत बड़ी लगाम अवश्य लगी है लेकिन जहां तक बात राज्य सरकारों की जाये तो उन्हें अभी और गंभीर होने की आवश्यकता है। यदि हम देश के नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना चाहते है तो सर्वप्रथम ऐसी व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है कि जिससे उनके मामलों की सुनवाई न केवल प्राथमिकता के आधार पर की जाये, बल्कि तीव्र गति से भी निपटारा किया जाये क्योंकि देश मे अक्सर यह देखने मे आता है कि अपराधी अपने ऊपर चल रहे मुकद्दमे को बहुत लंम्बा खींचकर उस मामले के गवाहों से लेकर प्रमाणों को हमेशा के लिये खत्म कर देते हैं जिससे मामला दिशा हीन हो कर शिथिल हो जाने से निष्क्रिय हो समाप्त हो जाता है। जिससे इन भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों को सही संदेश या सजा मिलने के स्थान पर उनका हौसला और बुलन्द हो जाता है।
ऐसी अवस्था मे सबसे उचित तो यही होगा कि केंद्र सरकार और सीबीआइ, ईडी सरीखे देश की एजेंसियों के साथ न्यायपालिका इसके लिए किसी ऐसी ठोस व्यवस्था का निर्माण करे कि नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों का निपटारा एक सीमित अवधि में ही निपट जाए। यह किसी भी स्थिति में ठीक नहीं है कि कई दफे विशेष अदालतों में भी ऐसे मामलों का निपटारा होने में अनावश्यक देरी होती रहती है।
इसके साथ ही एक समस्या यह भी है कि यदि कभी निचली अदालतों की ओर से मुकद्दमे पर फैसला समय से सुना भी दिया जाता है लेकिन इन मुकद्दमो में उच्चतर न्यायपालिकाओं की ओर से मुस्तैदी नहीं दिखाई जाती है जिसके परिणामस्वरूप अंतिम फैसला आने में लगभग एक से लेकर डेढ़ दशकों तक का समय लग जाता हैं।
सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 27 मई 2022 के दिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले पर चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई साथ ही उन पर 50 लाख का जुर्माना भी लगाया है और उनकी चार संपत्तियों को भी जब्त कर लिया।
चौटाला को मिले चार साल की सजा ने देश के नेताओं के बेलगाम होते भ्रष्टाचार को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। चौटाला पर आय से 189 गुना अधिक रुपये कमाने का आरोप है। इससे एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि नेता सत्ता का मनमाना इस्तेमाल अपने पक्ष में करते हैं। चौटाला के भ्रष्टाचार का यह दूसरा मामला है, इससे पहले उन्हें शिक्षक भर्ती घोटाले में संलिप्त पाये जाने के बाद उन्हें सजा मिली थी। वे सजा काटकर ही लौटे थे कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में भी वे दोषी पाये गये हैं।
आज भ्रष्टाचार और तरह-तरह से संपत्ति अर्जित करने की ललक विशेष कर नेता नगरी के लोगों में अपनी पैठ बना चुका है, ऐसे में यदि इसे अभी नही रोका गया तो आने वाले समय मे एक भी नेता का दामन पाक साफ नही होगा, खैर यह स्थिति तो अभी से ही दिखने लगी है। अब तो आए दिन किसी न किसी नेता के खिलाफ सीबीआइ अथवा ईडी की कार्रवाई की खबरें आती रहती हैं।
कुछ राजनीतिक दलों ने तो अपने मंत्रियों के भ्रष्टाचार को लेकर इतने निर्लजय होकर ढीठ हो गए हैं कि उनकी गिरफ्तारी होने के बाद भी पार्टि अध्यक्ष उनसे त्यागपत्र मांगने तक की हिम्मत नही जुटा पाते हैं। ऐसी स्थिति में नेताओं के समस्त कामकाज की निगरानी करने एवं उनके द्वारा किये गये भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर से कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।