नवेद शिकोह
भारत में गांधीगीरी ट्रेंड राष्ट्रपिता महत्मा गांधी के आचरण, व्यवहार और मोहब्बत से नफरत को हराने की नीति से पैदा हुआ था। लेकिन अमन-चैन की छाया देने वाले गांधी जैसे शांति के वट वृक्ष श्रीं राम, श्री कृष्ण, नानक, ईसा, बुद्ध, महावीर और मोहम्मद साहब की शिक्षा के बीज से ही पैदा हुए थे।
चौदह सौ साल पहले मोहम्मद साहब और उनके नाती हज़रत इमाम हुसैन ने सिर्फ उपदेश से नहीं बल्कि अपने आचरण और व्यवहार से दुश्मन से भी मोहब्बत से पेश आने का दुनिया को पैग़ाम दिया था।
फिर भी यदि चंद मुसलमान अपने रसूल हज़रत मोहम्मद मुस्तफा(s.w) की मोहब्बत के जज्बात की रौ में उग्र प्रदर्शन करने पर मजबूर हो जाते हैं.. या गर्दन काटने वालों का समर्थन करते हैं तो वो मुसलमान मोहम्मद साहब के अनुयायी तो नहीं हो सकते। उनको चाहने का मतलब है उसकी तालीम को अपनाना। उनके चरित्र का अनुसरण करना। मोहम्मद साहब की सबसे बड़ी खूबी इनका इखलाक (व्यवहार) थी। वो सिर्फ उपदेश नहीं देते थे, भाषण ही नहीं देते थे, खुतबे ही नहीं देते थे बल्कि नेक अमल अपने किरदार में ढाल कर इंसानियत के रास्ते पर चलने का पैग़ाम देते थे।
उन्होंने कहा था कि वो शख्स सबसे ज्यादा बहादुर और ताकतवर होता है जो अपने गुस्से और जज्बात़ो को काबू कर ले।
तो जाहिर सी बात है कि अच्छे व्यवहार वाले.. जज्बातों और गुस्से पर काबू करने वाले और उग्रता से दूर रहने वाले ही मोहम्मद साहब के अनुयायी होते होंगे। उग्र प्रदर्शनकारी, निर्दोषों का गला काटने वाले और ऐसी अमानवीय हरकतों का समर्थन करने वाले मुसलमानों के रसूल के विरोधी तो हो सकते हैं पर उनके मानने वाले नहीं हो सकते। रसूले पाक की जितनी ज्यादा चाहत पेश करना है तो उतना अच्छा व्यवहार कुशल होना पड़ेगा। इंसानियत का दामन पकड़कर मानवता की रक्षा करनी पड़ेगी। यही रसूल और इस्लाम का पैग़ाम है।
आप उग्रता पर विश्वास रखते हैं और जज्बातों पर काबू नहीं कर सकते तो मोहम्मद साहब का जन्मदिन बारावफात मनाने का भी आपको कोई हक़ नहीं।
अल्लाह के रसूल हों, इमाम हों,पैगम्बर, औलिया या सूफी संत हों, हम इनके किरदार से प्रभावित होकर इनके करीब जाते हैं। इनके सिद्धांतों को फॉलो करते हैं, अपनाते हैं, इसे अमली (प्रयोगात्मक) जिन्दगी की गाइड लाइन मानते हैं। इनका किरदार अपने किरदार में ढालने की कोशिश करते हैं।
हजरत मोहम्मद मुस्तफा पर लम्बे समय तक एक महिला कूड़ा फेकती रही। वो दौर था जब अरब मोहम्मद साहब के किरदार, आचरण और व्यवहार से प्रभावित होकर ईमान ला रहे थे। पैगम्बर मोहम्मद अपने तमाम सहाबा-ए-कराम से घिरे रहते थे। रसूले पाक पर गंदा कूड़ा फेकने वाली महिला पर क्या कोई सहाबा (रसूल के अनुयायी) उग्र हुआ ! क्या रसूल के किसी सहाबी ने महिला की गर्दन काटी या सर काटने की कोशिश की ! क्या उस गुस्ताख महिला के इलाके में मोहम्मद साहब पर जान देने वालों ने कोई उग्र प्रदर्शन किया था !
नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि बहुत दिनों तक रोज कूड़ा फेकने वाली महिला ने जिस दिन कूड़ा नहीं फेका तो हजरत मोहम्मद को चिंता हुई। उन्होंने खैरियत जानने की कोशिश की तो पता चला कि उस महिला की तबियत खराब है। ये जानकर रसूल परेशान हो गये और कूड़ा फेकने वाली महिला को देखने पंहुचे। जो रोज़ उन पर कूड़ा फेकती थी उसकी सेहत के लिए उन्होंने दुआ की।
ये थे पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा। और ऐसे ही उनके सहाबी थे।
यही कारण है कि रसूले पाक की यौमे विलादत के मौके पर उनके सहाबियों को भी याद किया जाता है। और इनके बताये इंसानियत के रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं।
लेकिन अफसोस कि कुछ ऐसे भी ह़ै जो हिंसा और नफरत का प्रदर्शन कर रसूल की चाहत साबित करते हैं जबकि ये सब मोहम्मद साहब और इस्लाम के पैग़ाम के विपरीत है।
सच ये है कि नफरत के खिलाफ गांधीगीरी का इंडियन कंसेप्ट भी इस्लामी किरदारों से निकल कर आया है।
मोहम्मद साहब के नाती इमाम हुसैन ने अपने नाना के चरित्र का अनुसरण करते हुए कत्ल करने आये प्यासे दुश्मन को भी अपने हिस्से का पानी पिलाने जैसे अमल पेश किए थे। और महत्मा गांधी ने कहा था कि मैं हजरत इमाम हुसैन के किरदार से काफी प्रभावित हूं। और गांधी के चरित्र को लेकर गांधीगीरी का कान्सेप्ट एजाद हुआ। मोहब्बत के साथ विरोध जताने का एक ऐसा तरीका कि आपके साथ बुरा करने वाला आपके मोहब्बत से भरे व्यवहार से शर्मिंदा हो जाये।
इंडियन गांधीगीरी की शुरुआती चेन का जन्म रसूल और कूड़ा फेकने वाली महिला जैसे किस्सों से होता है।
इसलिए तमाम बातों का लब्बोलुआब ये है कि यदि मुसलमानों के रसूल को लेकर कोई गलत बयानी करे भी तो इसका जवाब हिंसा से नहीं मोहम्मदी ओर हुसैनी विचारधारा यानी गांधीगीरी से दिया जाना चाहिए।
आए ईद मिलादुन्नबी यानी बारावफात का मुबारक दिन है। हर त्योहार की परंपराओं का एक सौंदर्य होता है। इस त्योहार में भी नात-मीलाद,मेले-ठेले, हलवा-पराठे, डंडे-झंडे और जुलूस की परंपराओं के खुशरंग देखने को मिलते हैं। हम भारतीयों की ये भी अदा है कि हम जब किसी को याद करने वाला पर्व मनाते हैं तो उस शख्सियत की खूबियों, उपदेशों, तालीम, नसीहत,पैग़ाम, आचरण और व्यवहार की बातें खूब करते हैं। पर दुखद और चिंतनीय ये है कि हम जिनको अपना पैगम्बर-रसूल, भगवान, देवता या आदर्श मानते हैं उनकी कही बातों पर बिल्कुल भी नहीं अमल करते। जन्मोत्सव मनाते हैं, त्योहार मनाते हैं, मेले लगाते हैं, जुलूस निकालते हैं.. और फिर झंडे-डंडे और हलवा- पराठों खत्म होते ही दूसरे दिन हम अपने आदर्श के सारे आदर्श भूल जाते हैं।
मानवीय व्यवहार की ऐसी विसंगतियां हर धर्म-समुदाय और हर अनुयाई में होती है।
अपनी सारी कमियां खत्म करके कोई आदमी से फरिश्ता तो नहीं बन सकता पर हर धर्म हर आदमी को इंसान बना दे, अपने धर्मावलंबियों मे इंसानियत पैदा कर दे तो वो धर्म एक आदर्श समाज का निर्माण ज़रूर पैदा कर सकता है।
ईद मिलादुन्नबी की मुबारकबाद।