नवेद शिकोह
घोसी का छोटा सा चुनाव हारना भाजपा की बड़ी चुनौती के संकेत हैं। लोकसभा चुनाव के सात-आठ महीने पहले ऐसे संकेतों को सुधार का मौका मिल जाने का सौभाग्य भी कहा जा सकता है। पैट्रोल कम बचा हो। गाड़ा रिजर्व में हो, आगे चलना है तो इंतेज़ाम कर लीजिए। ये जानकारी या चेतावनी भी महत्वपूर्ण होती है।
घोसी के नतीजों ने बताया है कि भाजपा का पारंपरिक वोटर खासकर ब्राह्मण क्षत्रिय सामाज के अच्छे खासे लोगों ने किन्हीं कारणों को लेकर भाजपा को वोट ना देकर अपनी नाराज़गी का इजहार किया है।
बसपा सुप्रीमो मायावती के मना करने के बाद भी दलित समाज के एक हिस्से ने समाजवादी पार्टी या इंडिया गठबंधन का समर्थन किया। पिछले करीब नौ-दस वर्षों के दरम्यान दलित समाज दो हिस्सों में बंटा है। बसपा और भाजपा पर इन्हें विश्वास है। मैनपुरी और फिर घोसी के उप चुनाव की बड़ी जीत के बाद लगने लगा है कि सपा ने बसपा और भाजपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में सफलता हासिल करना शुरू कर दी है।
दल बदबदलुओं और आयात किए हुए नेताओं पर भाजपा विश्वास ना करे। छोटे-छोटे दलों के अलग-अलग जातियों के नेताओं के जाति केंद्रित बयानों से पिछड़ी जातियों की जनता प्रभावित नहीं होती। बल्कि सवर्ण समाज दलबदलुओं के बड़बोलेपन से भाजपा का साथ छोड़ने पर मजबूर हो सकता हैं।
घोसी का नतीजा देखकर दलबदलुओं और बड़बोले नेताओं से जनता की नाराज़गी देखकर सुभासपा चीफ ओमप्रकाश राजभर को आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा साइड लाइन करती है तो पूर्वांचल को खतरा होगा। और अगर राजभर पूर्वांचल का मोर्चा संभालते हैं तब भी खतरा। भाजपा को कोई बीच का रास्ता अपनाना पड़ेगा। बेहतर है कि जातावादी नेताओं को अलग-अलग क्षेत्रों में कमान देने के बजाय हिन्दुत्व और विकास के बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ पर ही केन्द्रीय नेतृत्व भरोसा करे।
यूपी की जनता ने योगी का बुल्डोजर मॉडल पसंद किया है। दंगा मुक्त, माफिया मुक्त यूपी और अतीक, मुख्तार जैसे माफियाओं के खिलाफ शिकंजा भाजपा की बड़ी यूएसपी रही।
किंतु इसका उपयोग करने में पार्टी प्रचारकों को सहजता नहीं रही। कारण ये कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा है ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा, और इस पार्टी का विधायक मुख्तार अंसारी का बेटा है। यानी तकनीकी तौर से माफिया मुख्यमंत्री अंसारी का बेटा एनडीए का हिस्सा हो गया।
इंडिया गंठबंधन का स्वरूप और माहौल भी घोसी में भाजपा की हार का कारण बना। इंडिया के तयशुदा पैटर्न पर सही मायने में यहां भाजपा के दारा सिंह चौहान के सामने सपा के सुधाकर सिंह मजबूती से लड़े।
कुछ लोगों की धारणा रही है कि भाजपा को कोई हरा नहीं सकता, भाजपा को जीतना ही है। इसलिए वो भाजपा को वोट देते रहे। यूपी में कांग्रेस और बसपा बेहद कमजोर है। सपा सुप्रीमों कई उप-चुनावों में निकले तक नहीं। चाचा-भतीजे तक में कलह है तो ऐसे में भाजपा को सपा कैसे हरा सकेगी ?
घोसी के चुनाव और इससे पहले मैनपुरी में प्रचार मे सपा ने ऐसी धारणाएं तोड़ दी। अखिलेश यादव और शिवपाल ने मिलकर जमीनी संघर्ष किया। इंडिया गठबंधन के सभी दल एकजुट हुए तो भाजपा को भारी मतों से हराना संभव हो गया।
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर साफ हो गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए कम से कम हलवा तो नहीं हैं।
कई राज्यों में कई-कई बार की सरकारें, दस साल से केंद्र की सरकार, जनता की खूब सारी अपेक्षाएं और अति अपेक्षाएं, एंटी-इनकम्बेंसी के खतरों का पहाड़ … मंहगाई, बेरोजगारी और मुकाबले के लिए सामने खड़ा विपक्षी एकता वाला इंडिया गंठबंधन।
फिर भी भाजपा नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए आश्वस्त हैं। इस आत्मविश्वास के दो सबसे बड़े कारण हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लोकप्रिय चेहरा। दूसरा कारण योगी के उत्तर के अस्सी लोकसभा सीटें। भाजपा,भाजपा प्रशंसक और राजनीतिक पंडित मानते रहे हैं कि यदि विपरीत कारणों से आगामी लोकसभा चुनाव में अन्य राज्यों से भाजपा की लोकसभा सीटें कम भी हो जाती हैं तो अस्सी सीटों वाली यूपी की बड़ी जीत इसे कवर कर लेगी।
यूपी को रिजर्व कोटा या इमरजेंसी/आपात कोटा माना जा रहा है। गाड़ी पंचर होने की स्थिति में स्टेपनी रखी जाती है। स्टेपनी भी डेंट लगी हुई हो तो गाड़ी कभी भी रुक सकती है। इस डेंट को पेट करना बेहद जरूरी है। क्योंकि उत्तर प्रदेश भाजपा का मजबूत किला है। सबसे बड़ी ताकत है। भाजपा शरीर है तो यूपी इसकी आत्मा है। सनातनियों की भावनाएं और आस्था के केंद्र उत्तर प्रदेश को ये गौरव प्राप्त है कि यहां श्री रामजन्म स्थल भी है श्री कृष्ण स्थली मथुरा भी है और भोलेनाथ की काशी भी है। भव्य राम मंदिर का निर्माण रामभक्तों के अरमानों को पूरा कर रहा है।
भगवानों की जन्मस्थली की पवित्र भूमि भाजपा की सियासत के लिए बेहद उर्वरक है। यही कारण हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौ साल पहले गुजरात छोड़ काशी के लोकसभा श्रेत्र को अपनाया। सनातन धर्म के प्रहरी कहे जाने वाले एक संत,महंत योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली तो सोने पर सुहागा हो गया। सूबे की अच्छी-खासी आवाम मानती है कि योगी सरकार ने पुरानी जटिल समस्याएं और खतरे समाप्त कर दिए। दंगा मुक्त, माफिया मुक्त प्रदेश में लव जेहाद, तुष्टिकरण समाप्त हो गया। महिलाएं-बेटियां सुरक्षित हो गईं।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यदि लगता है कि यूपी लोकसभा चुनाव में नैया पार कर लेगी तो फिर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फ्री हैंड करना होना। बिना किसी दखल अंदाजी के पार्टी ज्वाइनिंग से लेकर टिकट बंटवारे में यूपी नेतृत्व पर सबकुछ छोड़ देना चाहिए है। यूपी बदल गया है,यहां जातियों के नेताओं के गुलदस्ते से कहीं ज्यादा आकर्षित योगी आदित्यनाथ का चेहरा है। विभिन्न जातियों के विश्वास को जीतकर सनातनियों की एकता का गुलदस्ता तैयार करने वाले योगी यूपी पूरब, पश्चिम से लेकर उत्तर, दक्षिण, अवध, बुंदेलखंड …पर विजय के लिए सक्षम है। चर्चाएं है कि दारा सिंह चौहान और ओमप्रकाश राज की वापसी केंद्रीय नेतृत्व ने कराई थी। इनकी वापसी ही घोसी की हार का कारण बनी।