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    Home»ब्लॉग»Hot issue

    विवादित फिल्मों का जिम्मेदार तो सरकार का सेंसर बोर्ड है !

    ShagunBy ShagunDecember 15, 2022 Hot issue No Comments5 Mins Read
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    नवेद शिकोह

    चर्चाएं, संवाद, चिंतन-मनन और मंथन किसी भी देश या समाज की दिशा तय करता है। भविष्य में हम विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं या हमारी फिक्र और बेदारी (जागरूकता) हमें तरक्की और विकास की तरफ ले जा रही है। ये बात तो हमारी फिक्र का वज़न या फिक्र के मायने तय करेंगे।
    दुर्भाग्य है कि हमारा भारतीय समाज गंभीर विषयों पर चिंतित या जागरुक नहीं होता। बे-सिर-पैर के मुद्दों का हल्ला ज्यादा मचता है। राजनीतिक स्वार्थ वाले क शई मुद्दों के बीज को मीडिया का एक वर्ग सींचता है। और फिर टीवी-सोशल मीडिया के जरिए समाज का एक बड़ा वर्ग ज़रूरी मुद्दों और बुनियादी ज़रुरतों को भुलाकर इसमें अपना वक्त बर्बाद करने लगता है। हर साल-डेढ़ साल बाद किसी फिल्म के किसी दृश्य को लेकर ऐसे विवाद खूब पैदा होते हैं।

    नया शगूफा बनी है शाहरुख ख़ान की फ़िल्म “पठान”। इसमें इस बात का विरोध हो रहा है कि फिल्म में शाहरुख और दीपिका पादुकोण एक गीत पर डांस कर रहें। डांस में तमाम तरह के और अलग-अलग किस्म के जो दृश्य दर्शाए गए हैं उसमें एक दृश्य में दिखाए गए ड्रेस का रंग गेहुंआ यानी भगवान है। विरोध का हल्ला मचा है कि अश्लील गीत में भगवा रंग के ड्रेस का उपयोग क्यों हुआ। इस विवाद को नई सूरत देते हुए कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी भी इस बहती गंगा में हाथ धोने लगे। सोशल मीडिया पर कई नौजवान लिख रहे हैं कि पठान के गीत पर दीपिका ने अलग-अलग रंगों के कम कपड़ों में डांस किया हैं। इसमें डांस की शुरुआत हरे रंग के कपड़ों से हुई हैं। हरा रंग हमारे लिए(मुसलमानों के लिए) मुकद्दस (पवित्र और धार्मिक) है। इसलिए हम भी पठान फिल्म के इस दृश्य का विरोध करते हैं।

    इधर सोशल मीडिया पर बायकाट पठान का हैशटैग चलाकर कट्टरवादी हिन्दूवादियों की तरफ से एक पोस्ट वायरल हो रही है-
    “फ़िल्म का नाम है पठान। अभिनेत्री है जेएनयू के टुकड़े टुकड़े गैंग की सदस्य दीपिका पादुकोण। अभिनेता है शाहरुख़ ख़ान।
    अब आता हूँ मुद्दे पर। दीपिका के नाम मात्र के कपड़ों का रंग है भगवा और जिस गाने का ये सीन है उस गाने का नाम है “बेशर्म रंग”…..
    अब आप ही बताएँ इनको ……… पड़ने चाहिए या नहीं ? ”

    पठान के विवाद के बाद एक बात और निकल के सामने आने लगी है कि धार्मिक भावनाओं को लेकर उठे फिल्मों के विवाद को आगे बढ़ाने वाले अधिकांश भाजपा समर्थक/ कार्यकर्ता/भाजपा मंत्री/विधायक/सांसद होते हैं। जबकि लगातार इस तरह की फिल्मों का विरोध एक तरह से सत्तारूढ़ भाजपा का विरोध है। क्योंकि ऐसी फिल्म को भी मोदी सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाला सेंसर बोर्ड ही पास करता है। धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप यदी सही हैं तो एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन बार नहीं.. बार बार ऐसी फल्मों को सेंसर बोर्ड पास क्यों करता है ! यानी देश के करोड़ों हिन्दू भाइयों की भावनाओं को आहत करने का सबसे बड़ा जिम्मेदार मोदी सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाला फिल्म सेंसर बोर्ड है।

    बताते चलें कि केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड या भारतीय सेंसर बोर्ड भारत में फिल्मों, टीवी धारावाहिकों, टीवी विज्ञापनों और विभिन्न दृश्य सामग्री की समीक्षा करने संबंधी विनियामक निकाय है। यह भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन है।

    विपक्ष और सरकार विरोधी आरोप लगाते हैं कि सरकारी एजेंसियां भाजपा के इशारे पर काम करती हैं। एजेंसियों को स्वतंत्र होकर काम करना चाहिए। भाजपा तो छोड़िए एजेंसियों के काम में सरकार का दख़ल भी ग़लत है। लेकिन कोई सरकारी एजेंसी, बोर्ड या आयोग यदि जनहित और जनभावनाओं के ख़िलाफ़ काम करें तो सरकार के ऊपर ही बात आएगी। क्योंकि किसी भी सरकारी संस्था का गठन सरकार ही करती है। फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भी केंद्र सरकार ही करती है।

    जनप्रतिनिधि सरकार चलाते हैं और यदि कोई सरकारी संस्था जनविरोधी काम करें तो सरकार को सख्त कदम उठाने पड़ेंगे। नहीं तो नाराज़ जनता सरकार के खिलाफ हो जाएगी। चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

    इसलिए अब ये जरूरी हो गया है कि केंद्र सरकार फिल्मों पर आए दिन होते विवादों को गंभीरता से ले। यदि आरोप सहीं हैं और धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली फिल्मों को फिल्म सेंसर बोर्ड पास करने की हिमाकत करता है तो बोर्ड को भंग करे या कोई सख्त गाइड लाइन लागू हों। और यदि सेंसर बोर्ड धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले किसी दृश्य को पास नहीं करता, फिल्मों पर बेबुनियादी ऐसे आरोप लगते हैं तो ऐसे आरोपों का हल्ला मचा कर फिल्मों के प्रदर्शन में बांधा डालने वालों के खिलाफ सरकार को सख्त कारवाई करनी होगी।

    ख़ासकर सत्तारूढ़ भाजपा को अपने विधायकों, सांसदों,मंत्रियों को बे-सिर-पैर के विवाद छेड़ने से रोकना होगा। यदि सरकार का फिल्म सेंसर बोर्ड सही है और फिल्मों को बेवजह विवादों की आग में ढकेला जाता है तो ऐसे विवाद पैदा करना, फिल्म प्रदर्शन में बांधा डालना, सोशल मीडिया पर फिल्म बायकाट हैशटैग चलाना अपराध है। क्योंकि फिल्में (मनोरंजन इंडस्ट्री) सरकार को सार्वाधिक टैक्स देती है और ये टैक्स जनहित और देशहित में काम आता है।

    Shagun

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