हिंडनबर्ग रिपोर्ट से हर्षद मेहता जिंदा हो गया

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जी के चक्रवर्ती

अमेरिका की हिंडनबर्ग कम्पनी की एक रिपोर्ट से अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आ जाने से अचानक से शेयर होल्डरों ने फटा -फट अपने शेयर बेचने शुरू कर दिए जिससे इस कम्पनी के शेयरों में भारी गिरावट के कारण 4 लाख करोड़ का घाटा हुआ है, इस अचानक से हुए घटनाक्रम से शेयर बाजार में अचानक खलबली मचना स्वभाविक है।

यहां आपको बता दें कि अखिर हिंडनबर्ग कम्पनी किसकी है और यह क्या काम करती है? दरअसल अमेरीका स्थित हिंडनबर्ग कम्पनी के मालिक नाथन एंडरसन ने अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल बिजनेस में ग्रेजुएशन करने के बाद वे नौकरी की तलाश कर ही रहे थे, कि इस बीच उन्हें एक डेटा रिसर्च कंपनी में काम करने का मौका मिला वहां उन्हें रुपये-पैसे से जुड़े काम करना होता था। वहां काम करते- करते उनके दिमाग में स्वयं की एक वित्त कंपनी खोलने का ख्याल आया और उसने हिंडनबर्ग नाम की एक कंपनी खोली इस कम्पनी का मुख्य कार्य शेयर मार्केट से जुड़ी गतिविधियां का अनुसंधान करना है कि क्या कोई कम्पनी शेयर बाजार में रुपये से जुड़े कोई हेरा फेरी तो नहीं कर रही है। कोई कम्पनी अपने फायदे के लिए किसी तरह की रुपयों का गलत प्रबंधन तो नहीं कर रही है? जिसे हम शेयर बाजार की  भाषा में Short position कहते हैं।

फॉरेंसिक फाइनेंशियल रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी ग्रुप की कंपनियों पर कई सवाल खड़े किए गए हैं। जिसके बाद गौतम अडानी की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली, ऐसे में प्रश्न यह है कि अडानी ग्रुप के भविष्य क्या होगा? दूसरा प्रश्न यह है कि हिंडनबर्ग कम्पनी की रिपोर्ट के दावों में कितनी सच्चाई है?

यहाँ आपको याद दिलाते हैं कि वर्ष 1992 में हर्षद मेहता जिसका पूरा नाम हर्षद शांतिलाल मेहता था, वह अपने दौर में शेयर मार्केट का एक  ब्रोकर हुआ करता था उसने शेयर मार्केट के बड़े-बड़े शेयरों को खरीद कर अपने पास रखता रहा, लेकिन इतने शेयर खरीदने के लिये बहुत बढ़ी धनराशि की जरूरत की पूर्ति के लिये उसने बैंकों  के प्रबंधकों को अपने साथ मिला कर बैंक के खजाने से धन लेकर बड़ी संख्या में एक ही कम्पनी के शेयरों को बाजार   से खरीद लेता था जिसे शेयर बाजार में मैनुपुलेशन (पंप एंड डंप) के नाम से जाना जाता है, जिससे बाजार में जिस शेयर की कमी हो गई उसके भाव बढ़ना स्वाभाविक था। दाम खूब ऊपर चढ़ने के बाद उस शेयर को फिर से बाजर में बेंच दिया जाता था। इस खरीद-फरोख्त को हम ऐसे समझ सकते हैं कि मान लीजिये आज किसी शेयर की कीमत 100 रुपये हैं जैसे-जैसे उस शेयर की उपलब्धता बाजार में कम होगी उसका दाम बढ़ना तय सी बात है और जब बाजार मे उसका दाम बढ़ना बंद हो जाये तो उसे उस समय के दाम में हम बेंच दे तो हमें उस शेयर के 110 रुपये मिलेंगे अर्थात 10 रुपये हमे मुनाफा हुआ इसके ठीक विपरीत यदि यही चीज़ उल्ट दिया जाय तो तब क्या हो?

मान लीजिये  कि किसी ने किसी कम्पनी का शेयर खरीदा या किसी ने अपने रुपये किसी कम्पनी को कारोबार बढ़ाने के लिये रुपये दिए और फिर उस कम्पनी के शेयरों के दाम एक दम से नीचे आ जाये तों उस कम्पनी के शेयरों को खरीदने वाले को उसमे मुनाफा तो छोड़िये मूल धन  से भी नीचे या रुपये की मूल्य लगभग शून्य हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं यह भी रुपये कमाने का एक जरिया होता है।

इसी प्रकार का स्कैम अडानी ग्रुप के शेयरों के साथ भी हुआ क्योंकि अडानी ग्रुप की कंपनियों में देश के जीवन बीमा कम्पनी का पैसा लगा हुआ है।

वैसे देखा जाए तो ऐसे ही लोग धन कमाते हैं इस पर सरकार या किसी व्यक्ति पर आरोप लगा कर उसे बदनाम करने की कोशिशें करना कहां तक जायज है यह तो आप स्वंम ही इसका आकलन कीजिये।

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