आशा शैली
उसको यूँ उलझनों ने घेरा था
दिल न तेरा था और न मेरा था
झूठ को बल दिया हवाओं ने
सच से भी दूर अब सवेरा था
एक संसार मुझको मिल जाता
पर बहुत दूर उसका डेरा था
वो गली से मेरी ही गुज़रे है
क्या करें घर में ही अंधेरा था
उसकी आहट कहाँ हमें मिलती
हाय शातिर बहुत लुटेरा था
नाचते सब रहे हैं संग उसके
बीन छेड़े कोई सपेरा था