अंशुमाली रस्तोगी
शेर के शॉल पर देशभर में हल्ला मचा है। लोग शॉल की कीमत जान दांतों तले उंगली दबाए हैं। कोई कुछ तो कोई कुछ और ही कह रहा है। जितने कान, उतनी बातें।
लेकिन कहने वाले समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे कि हमारा शेर क्या नहीं पहन सकता? वो अपने नाम वाले सूट से लेकर डिजाइनर शॉल तक पहन सकता है। जिस राज्य में चुनाव का जोर होता है, वो अपनी ड्रेस भी उसी हिसाब से निर्धारित करता है। ड्रेस में शेर की अकड़ देखने लायक होती है।
लुफ्त यह है कि जनता (दस–पचास सिरफिरों को छोड़ कर) भी खुश है। लगातार शेर के शॉल भी बात कर रही है। टीवी चैनल्स भी शॉल भी बहस करवा रहे हैं। विपक्ष का कोई वक्त्ता अगर शॉल या शेर पर कोई तीखी प्रतिक्रिया देता है तो एंकर उसे वहीं चुप करवा देता है। एंकर को कतई पसंद नहीं कि कोई उसके (आका) शेर पर किसी भी तरह की टिका–टिप्पणी करे।
मोहल्ले के एक शेर–प्रेमी से कहते सुना– “70 सालों का रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए, जिसने ऐसी स्वच्छ शॉल पहनी हो। ये शॉल पूर्णता भारतीय है। इसमें से राष्ट्रवाद की खुशबू आती है। ये शॉल देश को ही नहीं बल्कि प्रत्येक भारतीय को आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा देती है। हमारे शेर ने एक दफा फिर से आपदा के बीच अवसर को साधना बता दिया है।”
मैं शेर–प्रेमी की बात से सौ फीसद सहमत हूं। शॉल की धमक बहुत दूर तलक जा रही है। चीन अपने घुटनों पर आ गया है। पाकिस्तान की घिग्गी बंध गई है। अमरीका भयभीत है। रूस और यूक्रेन हाथ जोड़े नतमस्तक की मुद्रा में हैं। और हों भी क्यों न, शेर ने अभी हाल जी20 की उपलब्धि का सेहरा भी अपने सिर बांधा है।
एक शॉल के साए में देश की हर समस्या का समाधान हो गया है। शॉल ने गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महामारी के दंश से पूर्णता मुक्ति दिलवा दी है। शेर की शॉल दुनिया का सातवां अजूबा बन गई है।
मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि विवेक अग्निहोत्री आगे चलकर इस पर एक फिल्म भी बनाएंगे– शॉल फाइल्स!