केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक ने बाग मालिकों को दी सलाह
उत्तर भारत की सभी महत्वपूर्ण आम की किस्में, जैसे दशहरी, चौसा और लंगड़ा, अनियमित रूप से फलती हैं। एक साल जब फसल भरपूर होती है तो किसान अच्छा पैसा कमाते हैं, लेकिन अगले साल कम फसल के कारण उन्हें नुकसान होता है। इसलिए किसान नियमित रूप से फल पैदा करने के लिए पैक्लोब्यूट्राजाल नामक रसायन का तेजी से उपयोग कर रहे हैं। उचित मात्रा में प्रयोग किसान के लिए हितकर है, परन्तु अधिक मात्रा का प्रयोग हानिकारक है। ये बातें केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डाक्टर शैलेश राजन ने कही।
उन्होंने बताया कि संस्थान आम के बागों में पैक्लोब्यूट्राजाल के उचित उपयोग करने को सलाह देता है और मिट्टी और पौधों की प्रणाली में पैक्लोब्यूट्राजाल के अवशेषों का पता लगा सकता है। संस्थान के एमेरिटस वैज्ञानिक डॉ. वी.के. सिंह रसायन की न्यूनतम संभव मात्रा के साथ नियमित फसल पैदा करने की तकनीकों पर शोध कर रहे हैं।
डा. राजन ने बताया कि पैक्लोब्यूट्राजाल के अत्यधिक उपयोग से पौधों और मनुष्यों दोनों के लिए स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। जब पेड़ों पर उचित मात्रा में रसायन प्रयोग किया जाता है, तो फलों में अवशेष नगण्य होता है। शोध से ज्ञात हुआ है कि जब किसान अधिक मात्रा में रसायन का उपयोग करते हैं, तो फलों में अवशेष न्यूनतम मान से अधिक पाये जा सकते हैं।
संस्थान के निदेशक डा. शैलेन्द्र राजन ने बताया कि भारत में पैक्लोब्यूट्राजाल का व्यावसायिक उपयोग पिछली शताब्दी के अस्सी के दशक में शुरू हुआ, विशेष रूप से कोंकण क्षेत्र में जहां अल्फांसो प्रमुख किस्म है। अल्फांसो एक अनियमित फलने वाली किस्म है और किसानों को एकान्तर वर्षों में अच्छा लाभ मिलता है लेकिन पैक्लोब्यूट्राजाल ने नियमित फलन को प्रेरित करके इस समस्या को हल किया। वर्तमान में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु के आम के बागों में पैक्लोब्यूट्राजाल का बहुत से बागों में प्रयोग किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि पैक्लोब्यूट्राजाल का उचित उपयोग महत्वपूर्ण है, क्योंकि असामयिक और अनुचित प्रयोग से पौधों के लिए स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। इसका समय से पहले उपयोग फसल के नुकसान का मुख्य कारण है, क्योंकि जल्दी बौर का निकलना मलिहाबाद और अन्य क्षेत्रों में पाया जा रहा है। लखनऊ जैसे उपोष्ण क्षेत्रों में आम के बागों के लिए दिसंबर और जनवरी में जल्दी बौर निकलना एक समस्या बन रहा है। किसान अनजाने में अनुचित समय पर रसायन का प्रयोग कर रहे हैं।
बागवानों की समस्याओं को देखते हुए संस्थान द्वारा मलिहाबाद क्षेत्र के अन्तर्गत भरावन में आज आम के बागों में पैक्लोब्यूट्राजाल के प्रयोग पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मलिहाबाद क्षेत्र के लगभग 30 किसानों ने भाग लिया। इस गोष्ठी में संस्थान के एमेरिटस वैज्ञानिक डॉ. वी.के. सिंह ने आम की बागवानी में पैक्लोब्यूट्राजाल का उचित समय पर प्रयोग एवं उपयोग पर किसानों से विस्तृत रूप से चर्चा की। डा. गुंडप्पा, कीट वैज्ञानिक ने कीट का प्रकोप एवं इसके रोकथाम पर चर्चा की। किसानों ने चर्चा में बहुत रुचि ली।