रामधनी द्विवेदी
26 सितंबर को सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह वृहस्पति पृथ्वी से सबसे निकट था। पृथ्वी से वृहस्पति की सामान्य दूरी लगभग 10 हजार लाख किलोमीटर है जब कि कल यह इसकी लगभग आधी दूरी पर 5900 लाख किलोमीटर पर था। इसे नंगी आंखों से भी देखा जा सकता था लेकिन बाइनाकुलर से इसे बेहतर तरीके से देखा जा सकता था। फोटो खींचने के लिए बेहतर कैमरों और टेलिस्कोप की जरूरत होती। फिर भी कई अच्छे फोटोग्राफरों ने इसकी फोटो खींचने की कोशिश की। वरिष्ठ फोटो संपादक जगदीश यादव ने भी इसकी फोटो खींची। आइए कुछ वृहस्पति और कुछ जगदीश यादव की फोटो की चर्चा की जाए।
भारतीय खगोलशास्त्र और ज्योतिष में इस ग्रह का नामकरण देवगुरु वृहस्पति के नाम पर किया गया है और फलित ज्योतिष में जातक को बहुत प्रभावित करने वाले ग्रहों में माना जाता है। शरीर का आकार, शिक्षा- ज्ञान की स्थिति, वैवाहिक संबंध, पुत्र- कलत्र, जीवन आदि इससे तय किया जाता है। यूरोपीय ज्येातिष में इसका जुपिटर नाम यूनानी देवता जूइस के नाम पर किया गया है। आधुनिक खगोलशास्त्रियों ने भी इसके महत्व को समझते हुए इसका नामकरण इसी देवता के नाम पर किया।
जुपिटर या वृहस्पति सौर मंडल का पांचवां ग्रह है और आकार में सबसे बड़ा। इसका मॉस भी अधिक है। यदि अन्य सभी ग्रहों को मिला जाय तो यह सबके मॉस से पांच गुना अधिक है। यह मुख्यत: गैसों का बना है जिसमें हाइड्रोजन और हीलियम प्रमुख हैं। इसमें कुछ चट्टानी रचनाएं भी हैं लेकिन गैस अधिक होने से इसकी सतह स्थिर नहीं यह 11 साल से कुछ अधिक समय में सूर्य का एक चक्कर लगाता है और अपनी कक्षा में एक चक्कर लगाने में इसे 398 दिन लगते हैं। गैस होने के कारण इसकी सतह की चक्रीय गति भी अलग अलग होती है।
इसका व्यास 69911 किमी है जबकि पृथ्वी का 10973 किमी ही है। इससे इसके आकार का अनुमान लगाया जा सकता है। पृथ्वी से दिखने वाले चमकीले ग्रहों में यह चंद्रमा(उपग्रह) और शुक्र के बाद तीसरे नंबर पर आता है और पृथ्वी से नंगी आंखों से देखा जा सकता है। इस समय यह सूर्यास्त के साथ ही पूर्व दिशा में उदित हो रहा है।
जैसे हमारी पृथ्वी का चंद्रमा है उसी तरह वृहस्पति के भी चंद्रमा हैं लेकिन इनकी संख्या बहुत अधिक है। 2021 तक ऐसे 80 चंद्रमा का पता चल चुका था। इनमें से चार तो प्रसद्धि खगोलशास्त्री गैलीलियो ने ही पता लगा लिया था। यह चार आकार में बड़े हैं और गैलीलियों ने 1610 में ही अपने सामान्य टेलिस्कोप से ही इन्हें देख लिया था। इनमें भी गैनेमेड सबसे बड़ा है जिसकी छाया जुपिटर पर पड़ती रहती है। यह एक तरह से ग्रहण ही है लेकिन चूंकि जुपिटर का आकार बहुत बड़ा है,इसलिए इसकी छाया से पूरी तरह ढकता नहीं सिर्फ बड़े से काले धब्बे की तरह दिखता है। अभी कुछ दिन पहले नासा ने इसकी अच्छी फोटो भी खींची है। यह धब्बा आकार में 3540 किमी का है।
जगदीश यादव ने फोटो खींची है,उसमें ग्रह की सतह बहुत साफ दिखती है। यह पपड़ीदार जमीनी सतह की तरह दिख रही है। गैसीय रचना होने के कारण ऐसा है। इसकी परिधि भी बहुत स्पष्ट नहीं है। एक खास बात इसमें दिख रही है कि कई काले धब्बे से हैं। ये क्या हैं,यह अभी नहीं कहा जा सकता। हो सकता हो कि ये अन्य चंद्रमा की छाया हों या और किसी कारण से कुछ स्थानों की सतह अधिक गहरी हो गई है।
चूंकि ये आकार में काले है और गोल हैं इससे ये छाया ही हो सकते हैं। हो सकता है सतह का तापमान बदलने से भी ये आकृतियां बनी हों। जो भी हो अंतरिक्ष के पिंडों का अध्ययन हमेशा मानव की जिज्ञासा का विषय रहा है। अभी तक न्यूज फोटोग्राफर सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण की फोटो ही खींचते थे। इस तरह ग्रहों की फोटो बिना टेलिस्कोप के खींचना कठिन है। जगदीश जी का प्रयास स्तुत्य है। उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल पर्फेक्ट पिक्चर में इस बारे में कई जानकारी भी दी है और इसे शूट करने में आई दिक्कतों को बताया है।