अंशुमाली रस्तोगी
बीवी संग होली कितना खेली जाए। सच बताऊं, मैं तो बोर हो चुका हूं बीवी संग होली खेल-खेलकर। होली भी खेलो और नखरे भी झेलो। बाद में ताने सुनो, ‘तुम्हें होली भी खेलनी नहीं आती। देखो कितना रंग लगाया है कि छुटाना मुश्किल।’ ये हाल एक मेरी बीवी का ही नहीं लगभग सभी बीवियों का रहता है।
अरे, होली पर यह थोड़े न देखा जाता है कि रंग कितना और कहां-कहां लग रहा है। उसे तो बस लगा दिया जाता है। किंतु बीवियों के साथ यह बड़ी समस्या है कि रंग भी उनकी मर्जी के मुताबिक ही खेला और लगाया जाए। जबकि वे यह नहीं समझती कि होली के रंग से उनकी ब्यूटी दबती नहीं, बल्कि निखरती है। रंग में डूबे चेहरे अलग ही छाप छोड़ते हैं। जिसे रंगों से एलर्जी हो उसके लिए क्या होली, क्या वसंत।
इसीलिए मैंने तय किया है कि इस बार बीवी संग होली खेलूंगा ही नहीं। अपनी पूर्व प्रेमिका संग खेल लूंगा पर बीवी संग खेलने से मुक्ति मिलेगी। पूर्व प्रेमिका ने तो जाने कितनी बार मुझे चांस दिया उसके संग होली खेलने का लेकिन मैं ही राजी न हुआ। राजी इसलिए न हुआ कहीं बीवी को पता लग गई तो बवाल न हो जाए। उसे तो बहाना चाहिए मुझसे भिड़ने का। बहरहाल, चाहे कुछ हो जाए पर इस बार होली पूर्व प्रेमिका के घर जाकर ही मनेगी।
हालांकि इससे पहले भी कई दफा उसके संग होली खेल चुका हूं पर वो दौर ही अलग था। तब न बीवी का झंझट था न जमाने की फिक्र। तब के रंग और आज के रंग में भी फर्क था। तब होली डिजिटल न थी। घर-घर जाकर प्रेम पूर्वक खेलो। न कहने वाला कोई न कोई शक करने वाला।
कुछ ऐसा ही समां इस होली पर भी बनाना चाहता हूं पूर्व प्रेमिका संग होली खेल। उसके संग होली खेलने का फायदा यह है कि वो कितना ही रंग लगाओ बुरा नहीं मानती। कितनी ही देर होली खेलो घड़ी नहीं देखती। रंग चाहे उसके चेहरे पर लगाओ या बदन पर कभी दिल पर नहीं लेती। और तो और उसके संग दो-दो जाम भी हो जाते हैं लगे हाथ।
दरअसल, मेरी पूर्व प्रेमिका मेरे जैसे ही टेस्ट की है। स्वच्छंद और बिंदास। जमाने की परवाह न करने वाली। यही कारण है उसके संग होली छिप-छिपाकर नहीं सीधा उसके घर जाकर खेलता हूं। वैसे, मेरा मानना रहा है कि होली हमेशा प्रेमिका या पड़ोसन या फिर दोस्त की बीवी संग ही खेलनी चाहिए। इससे कुछ ‘डिफरेंट फिलिंग’ आती है। रंग पर रंगत चढ़ी मालूम देती है। नजदीकियां बढ़ती हैं। दिल मिलते हैं। फ्लर्ट करने का चांस मिलता है सो अलग।
होली खेलने का मजा तब ही है जब दिल से खेली जाए। उसके साथ खेली जाए जो बुरा न माने। बुरा मानने वाले को होली पर कमरे से बाहर निकलना ही नहीं चाहिए। इतने बरस मुझे होली खेलते हो गए मजाल है जो कभी बुरा माना हूं। रंगों से जिन्हें इश्क नहीं, उनका जीवन ही नीरस है।
बताता चलूं, पूर्व प्रेमिका को रंगों से खास मोहब्बत है। होली ही नहीं उसके साथ रंगों से कभी खेला जा सकता है। बुरा कभी नहीं मानती। खूब याद है, दो साल पहले उसके संग खेली होली की तस्वीरें और चोली अभी भी उसके पास हैं। ऐसा आनंद कभी बीवी संग होली खेलकर मिल सकता है क्या! नहीं कभी नहीं मिल सकता।
इसीलिए तो मैं कहता हूं, अपने इश्क को कभी बीच रास्ते में न छोड़िए। पकड़े रहिए। शादी के बाद भी दिल में जवानी और उमंग बरकरार रखिए। हल्का-फुल्का इश्क और फ्लर्ट करते रहिए। बीवी संग होली न खेल पा रहे हैं तो पूर्व प्रेमिका संग तो खेल ही सकते हैं न। किस्मत के धनी हैं वे लोग जो आज भी अपनी पूर्व प्रेमिकाओं संग होली खेल रहे हैं। उनमें से एक मैं भी हूं।
अच्छा, निकलता हूं पूर्व प्रेमिका संग होली खेलने। इस दफा उसके संग होली खेलने की थीम ‘भांग विथ होली’ रखी गई है। तो रंगों से खेलते रहिए। मुस्कुराते रहिए। हां, बुरा कतई न मानिए, होली है। होली मुबारक।
- चिकोटी से