एक सेठ जी थे। उन्होंने अपने कारोबार के लिए कुछ रुपये किसी से उधार लिये। वह समय पर उन रुपयों को नहीं लौटा पाये। कर्ज देने वाले ने बार-बार मांग की तो वह मुंह छिपाने लगे। उन्होंने अपने लड़के को सिखा दिया कि जब वह आदमी आये तो कह देना कि पिताजी घर पर नहीं हैं। वह आदमी जब-जब अपने रुपये मांगने आया, लड़के ने कह दिया, पिताजी घर पर नहीं है।
कई दिन निकल गये। एक दिन सेठ ने देखा कि उनकी जेब से दस रुपये गायब है बड़ी हैरानी में पड़े। उन्होंने बारबार रुपये गिने, पर हर बार दस कम निकले। उन्होंने घर के एक-एक आदमी से पूछा, सबने इन्कार कर दिया। कोट घर में टंगा था और बाहर का कोई-आदमी आया नहीं था। तब रुपये गये तो कहां गये।
उन्होंने लड़के से पूछा तो उसने भी मना कर दिया। लेकिन अब सेठ ने बहुत धमकाया, तो लड़के ने मान लिया कि रुपये उसने ही निकाल थे। सेठ को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने लाल-पीले होकर लड़के के गाल पर जोर से चांटा मारा और कहा, कायर तू झूठ बोलता है। लड़के ने तपाक से कहा, पिताजी, झूठ बोलना आपने ही तो सिखाया है। सेठ ने अपनी भूल समझी और लज्जा से सिर झुका लिया।