सामयिक व्यंग: नवेद शिकोह
कल देर रात तेंदुए से मुलाकात
मैंनै उसका इंटरव्यू किया। पहला सवाल था-
आप कहां से तशरीफ लाएं हैं और क्या चाहते हैं ?
तेंदुए ने जवाब दिया –
कुकरैल के जंगल का रहने वाला हूं।
चुनाव लड़ना है, इसलिए टिकट मांगने राजधानी लखनऊ आया हूं।
उसने अपना मकसद बताया-
पहले दहशत फैलाएंगे और फिर सुरक्षा की गारंटी के नाम पर चुनाव लड़ेंगे।
धर्म वाली पार्टी से टिकट नहीं मिला तो जाति वाली पार्टी से टिकट मांगेंगे। इसके लिए अपनी जाति के साथ हो रहे अन्याय की बात करेंगे।
बिल्ली जाति में शेर-चीता हमेशा तेंदुओं के साथ भेदभाव करते है, जिसके कारण तेंदुओं को जंगल से पलायन कर शहर की आबादी के खतरे सहने पड़ रहे हैं।
इंटरव्यू देने के बाद तेंदुए ने कहा कि इंटरव्यू छापने के कितने पैसे लोगे।
मैंने कहा तुम्हे कैसे पता कि हम लोग पैसा लेकर कभी किसी के फेवर में तो कभी किसी के खिलाफ लिखते हैं।
तेंदुआ ज़ोर से हंसा और बोला- हमें नहीं पता होगा।
अबे तुम्हारे शहर का हर कामयाब शख्स हमारे ही जंगल राज के धन-बल, जाति-प्रजाति माडल पर ही तो काम करता है। तुम धन पर बिकते हो और हम बल और हिंसा के बूते पर बादशाहत करते हैं।